RWPI छत्‍तीसगढ़ में सीपीआई (माओवादी) के महासचिव एन. केशव राव, अन्‍य माओवादियों एवं आम आदिवासियों की हत्‍याओं की निन्‍दा करती है!

‘‘माओवादियों’’ से लड़ने के नाम पर मोदी-शाह सरकार द्वारा शुरू किया गया ‘ऑपरेशन कगार’ वास्‍तव में भारतीय तथा विदेशी पूँजी द्वारा मध्‍य भारत के खनिज-समृद्ध क्षेत्रों के शोषण व लूट के लिए रास्‍ता तैयार करने का ऑपरेशन है। माओवादियों और आम आदिवासियों से मुठभेड़ें और न्‍यायेतर हत्‍याएँ इन्‍हीं पूँजी-परस्‍त और जनव‍िरोधी लक्ष्‍यों को हासिल करने के लिए की गई हैं।

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सरकार युद्धोन्माद फैलाना तत्काल बन्द करे!

भारत और पाकिस्तान दोनों ही मुल्कों की आम मेहनतकश जनता को गम्भीरता से यह सोचना होगा कि अगर इन हमलों से युद्ध की शुरुआत होती है तो उसके नतीजे क्या होंगे। जान-माल के होने वाले नुक़सान के साथ ही इस युद्ध में परमाणु हमले का भी ख़तरा है जो अकथनीय तबाही व यंत्रणा का सबब बनेगा। इसके अलावा, दोनों मुल्कों की बुर्जुआ राज्यसत्ताएँ जो इन अनुत्पादक युद्ध अभ्यासों पर करोड़ों-करोड़ रुपये बर्बाद कर रही है, अन्ततः इसका आर्थिक बोझ आम लोगों पर ही पड़ने वाला है। इसके अलावा, ऐसे युद्धों में “मातृभूमि की रक्षा के लिए” अग्रिम मोर्चे पर लड़ने वाले लोग हमेशा ही आम शहरी और ग्रामीण मेहनतकश जनता के घरों से ही आते हैं, न कि अम्बानी और अडानी जैसों के घरों से। आम मेहनतकश जनता बुर्जुआ राज्यसत्ताओं के बीच पूँजीवादी युद्ध के खेल में मोहरा बन जाती है। ऐसे में कोई भी समझदार व्यक्ति किसी भी समस्या के समाधान के रूप में भारत और पाकिस्तान के बीच किसी भी तरह के युद्ध का समर्थन नहीं कर सकता। यह स्पष्ट है कि अभी जो युद्धोन्माद की भावना भड़कायी जा रही है उसके पीछे असली इरादा आतंकवाद की समस्या को हल करना नहीं है, बल्कि लोगों का ध्यान उनकी जीवनयापन की वास्तविक समस्याओं से हटाकर एक “नक़ली दुश्मन” की ओर मोड़ना है।

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नैनीताल में बलात्कार की बर्बर घटना पर साम्प्रदायिक उन्माद फैलाता संघी गिरोह!

बलात्कार की घटना के ख़िलाफ़ जहाँ एक तरफ़ नैनीताल की जनता बच्ची के लिए न्याय माँगते हुए सड़कों पर उतर रही थी वहीं दूसरी तरफ भाजपा और आरएसएस के लोग स्त्री-विरोधी और मुस्लिम-विरोधी नारे लगाते हुए सड़कों पर हिंसा को अंज़ाम दे रहे थे। ख़ैर, इन गुण्डा तत्वों से किसी और चीज़ की अपेक्षा करना हमारी मूर्खता होगी!!

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पहलगाम हमले में हुई मौतों के लिए फ़ासीवादी मोदी सरकार जवाबदेह है! साम्प्रदायिक फ़ासीवादियों की नफ़रती राजनीति का शिकार मत बनो!

सरहद के दोनों ओर शासक वर्ग और धार्मिक कट्टरपन्‍थी एक-दूसरे के पूरक हैं। इस्लामिक कट्टरपन्थियों द्वारा पाकिस्तान का इस्लामीकरण और हिन्दुत्व फ़ासीवादियों द्वारा भारत का हिन्दुत्वीकरण दोनों ही देशों के शासक वर्गों के हितों को साधने का काम करता है। जो लोग धार्मिक कट्टरपन्थ और फ़ासीवादी राजनीति का किसी भी रूप में समर्थन करते हैं, उनको पहलगाम जैसी आतंकवादी घटना पर आक्रोश ज़ाहिर करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। यह केवल उनके पाखण्ड को ही दिखाता है। आरएसएस और भाजपा की साम्प्रदायिक राजनीति ने कश्मीर समेत सभी मुद्दों को हिन्दू और मुस्लिमों के बीच आग भड़काने का एक ज़रिया बन दिया है। पहलगाम में जो कुछ भी हुआ, वह मोदी-शाह सरकार के पिछले एक दशक के दौरान अपने चरम पर पहुँच चुकी इस घृणित राजनीति की ही परिणति है। यह साम्प्रदायिक फ़ासीवादी सरकार और संघ परिवार अपने गिरेबान पर लगे निर्दोष नागरिकों के ख़ून के धब्बों को मिटा नहीं सकते। वास्तव में, हिन्दू और इस्लामिक कट्टरपन्थी दोनो प्रकार की ताक़तें पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में हिंसा और ख़ून-ख़राबे को बढ़ाने के लिए ज़िम्मेदार है।

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वक़्फ़ (संशोधन) विधेयक-2025: मुस्लिमों की धार्मिक सम्पत्ति के प्रशासन के नाम पर साम्प्रदायिकीकरण द्वारा भाजपा व संघ परिवार का मुसलमान अल्पसंख्यकों पर एक और फ़ासीवादी हमला

जहाँ एक ओर हिन्दुत्व फ़ासिस्टों की गुण्डावाहिनियाँ मुस्लिमों के धार्मिक स्थलों और उनके त्योहारों पर निशाना साधते हुए समाज में लगातार साम्प्रदायिक तनाव का माहौल बना रही हैं, वहीं दूसरी ओर फ़ासिस्ट मोदी सरकार औपचारिक तौर पर उनके अधिकारों को छीनकर उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक बनाने के अपने विचारधारात्मक लक्ष्य पर बेरोकटोक ढंग से आगे बढ़ रही है। इसी के ज़रिये समाज में साम्प्रदायिकीकरण की अपनी जारी साज़िश को भी संघ परिवार आगे बढ़ाने की फ़िराक़ में है।

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लगातार बढ़ते ट्रेन हादसे! ज़िम्मेदार मोदी सरकार!!

मोदी सरकार के पिछले 10 वर्षों में, रेलवे में नौकरियों को घटाया जा रहा है, जो नौकरियाँ हैं उनका ठेकाकरण और कैज़ुअलीकरण कर दिया गया है। भारतीय रेलवे में 78 हज़ार लोको एवं असिस्टेंट लोको पायलट हैं। रेलवे में लोको पायलट और सहायक लोको पायलट के कुल 1,27,644 पद हैं जिनमें से 18,766 पद (14.7 फीसदी) एक मार्च 2024 को रिक्त थे। लोको पायलट के 70,093 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से 14,429 (लगभग 20.5 फीसदी) खाली पड़े हैं, जबकि सहायक लोको पायलट के 57,551 पद स्वीकृत हैं जिनमें से 4,337 (लगभग 7.5 फीसदी) खाली हैं। नतीजतन, ड्राइवरों पर काम का भयंकर बोझ है। कई जगहों पर ड्राइवरों को गाड़ियाँ रोककर झपकियाँ लेनी पड़ रही हैं क्योंकि 18-20 घण्टे लगातार गाड़ी चलाने के बाद बिना सोये दुर्घटना की सम्भावना बढ़ जाती है। पश्चिम रेलवे के अहमदाबाद डिवीजन द्वारा मई 2023 में तैयार एक आधिकारिक नोट में कहा गया था कि लोको पायलट की कमी के कारण अप्रैल 2023 में 23.5 प्रतिशत लोको पायलट ने काम करने के अधिकतम समय 12 घण्टे से अधिक काम किया। इसी प्रकार, लगातार 6-6 दिन रात की ड्यूटी करवाये जाने के कारण भी रेल दुर्घटनाओं की संख्या बढ़ रही है। 2021-22 से 2022-23 के बीच नुकसानदेह रेल दुर्घटनाओं की संख्या में 37 प्रतिशत की भारी बढ़ोत्‍तरी हुई। कई बार ड्राइवरों को बिना शौचालय विराम के 10-10 घण्टे तक काम करना पड़ता है।
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लोकसभा चुनाव – 2024 – राज्‍यसत्‍ता की मशीनरी का दुरुपयोग करने, समस्‍त पूँजीवादी संसदीय विपक्ष को कुचलने के तमाम प्रयासों और जनपक्षधर शक्तियों के व्‍यापक दमन-उत्‍पीड़न के बावजूद फ़ासीवादी भाजपा अपने बूते बहुमत तक पहुँचने में नाकाम

इस नतीजे का मुख्‍य कारण यह था कि बेरोज़गारी, महँगाई, भयंकर भ्रष्‍टाचार, साम्‍प्रदायिकता से जनता त्रस्‍त थी। यही वजह थी कि आनन-फ़ानन में अपूर्ण राम मन्दिर के उद्घाटन करवाने का भी भाजपा को कोई फ़ायदा नहीं मिला और फ़ैज़ाबाद तक की सीट भाजपा हार गयी, जिसमें अयोध्‍या पड़ता है। उत्‍तर प्रदेश के नतीजों ने सभी को चौंकाया, लेकिन चुनावों से पहले आरडब्‍ल्‍यूपीआई के नेतृत्‍व में चली ‘भगतसिंह जनअधिकार यात्रा’ के दूसरे चरण में ही हमने यह महसूस किया था कि उत्‍तर प्रदेश में ऐसे नतीजे आने की पूरी सम्‍भावना है।

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अन्धराष्ट्रवाद का उन्माद फैलाकर और “राष्ट्र की सुरक्षा” के नाम पर चुनाव की वैतरणी पार करने की फ़िराक़ में एक बार फिर जुटी फ़ासीवादी भाजपा सरकार!!

इतिहास इस बात का गवाह रहा है कि चुनाव के समय सीमा पर तनाव या मुठभेड़ की ख़बर आते ही गोदी मीडिया से लेकर फ़ासीवादियों का पूरा प्रचार तंत्र देश में युद्धोन्माद और अन्धराष्ट्रवाद की लहर फैलाने में लग जाता है। “दुश्मन को सबक सिखाओ!”, “हमें नौकरी नहीं बदला चाहिए”, “घर में घुसकर मारो!”, “देशहित के लिए आगे आओ!” जैसे नारों की शोर में लोगों के जीवन की असल समस्याएँ दूर धकेल दी जाती हैं और आख़िरकार इन सैन्य झड़पों और युद्धोन्माद का ख़ामियाज़ा आम मेहनतकश जनता को भुगतना पड़ता है। सीमा पर तनाव हो, युद्धोन्माद हो या फ़िर साम्प्रदायिक दंगे हर जगह मरते आम लोग है जबकि भाजपा के नेता-मंत्री और उनके बेटे-बेटियाँ विदेशों में अय्याशियाँ करते हैं। देश में इस तरह के उन्माद फैलाकर लोगों की लाशों पर वोट बटोरना फ़ासिस्टों की राजनीति का हिस्सा है।

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बलात्कारियों को शरण देने वाली भाजपा सरकार शर्म करो! प्रज्वल रेवन्ना को संरक्षण देना बन्द करो!

इस क़िस्म का घटिया आदमी यदि एनडीए गठबन्धन का कर्नाटक में पोस्टर बॉय बना हुआ है, तो इसमें चकित होने की कोई बात नही हैं। भाजपा बलात्कारियों को पैदा करने और उनका संरक्षण करने में माहिर पार्टी है। भाजपा को दिसम्बर से ही इसके कुकृत्यों के बारे में सब जानकारी थी। ख़ुद इनके राज्य अध्यक्ष को देवराज गोडा ने पत्र लिखकर इसके कुकृत्यों के बारे में बताया था। ऐसे बलात्कारियों को भाजपा द्वारा ना सिर्फ़ टिकट दिया गया बल्कि ख़ुद देश के प्रधानमंत्री मोदी इसकी रैली में इसके लिए वोट मांँगता हुआ यह कहता है कि रेवन्ना को दिये गये वोट का मतलब मोदी को दिया गया वोट है! समझदार को इशारा काफ़ी है। यदि रेवन्ना को दिया गया वोट मोदी को दिया गया वोट है, तो समझ जायें कि मोदी राज में इस देश की महिलाऐं कहीं भी सुरक्षित नहीं होंगी। इसलिए यदि आपको सुरक्षित रहना है तो यह सुनिश्चित करना होगा कि इस बार यह बलात्कारी पार्टी सत्तासीन ना हो।

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इलेक्टोरल बॉण्ड का महाघोटाला: एक बार फिर भाजपा का “चाल-चेहरा-चरित्र” आया सामने!

इलेक्टोरल बॉण्ड पूँजीपतियों से चन्दा लेने और आना-कानी करने पर चन्दा ऐठने और बदले में उन्हें हज़ारों करोड़ के ठेके देने, टैक्स माफ़ी देने का एक उपकरण है, जिसका मोदी-शाह की जोड़ी ने अपनी तानाशाह किस्म की सरकार को क़ायम रखने के लिए इस्तेमाल किया है। ऊपर से इसमें यह फ़ायदा है कि इस पूरी व्यवस्था को अपारदर्शी बनाकर भाजपा यह छिपा सकती थी कि वह किस प्रकार देश के धनी पूँजीपतियों, व्यापारियों, कुलकों-फार्मरों, दलालों, प्रॉपर्टी डीलरों, ट्राँसपोर्टरों की पार्टी है, उन्हीं के चन्दे पर इनका ‘कमल’ फूलता है और उन्हीं को मुनाफ़ाखोरी का वह मौका देती है। साथ ही इसके ज़रिये कालाबाज़ारू पूँजीपतियों ने अपने लाखों-करोड़ों के काले धन को सफ़ेदधन में तब्दील किया है। मिसाल के तौर पर, एक कम्पनी का कुल शुद्ध मुनाफ़ा ही 2 करोड़ रुपये से कम था, लेकिन उसने 180 करोड़ रुपये से ज़्यादा के चुनावी बॉण्ड ख़रीदे!

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