लगातार बढ़ते ट्रेन हादसे! ज़िम्मेदार मोदी सरकार!!

लगातार बढ़ते ट्रेन हादसे! ज़िम्मेदार मोदी सरकार!!
बढ़ती रेल दुर्घटनाओं का ढाँचागत कारण है निजीकरण, छँटनी और ठेकाकरण की नीतियाँ और रेलवे कर्मचारियों पर बढ़ता काम का अमानवीय बोझ!

भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI) द्वारा जारी

जलपाईगुड़ी में दो ट्रेनों के बीच 17 जून की सुबह को हुए दर्दनाक हादसे में 12 लोगों की मौत हो गयी और 25 लोग घायल हुए हैं। मोदी सरकार ने मृतकों के परिवारों को 2 लाख रुपये और घायलों को 50 हज़ार रुपये देकर अपना पल्ला झाड़ लिया है। रेल मन्त्री हमेशा की तरह या तो घड़ियाली आंसू बहा देते हैं या ऐसे दिखाते है कि सब ठीक हो जायेगा। लेकिन सवाल यह है कि इस हादसे के लिए कौन ज़िम्मेदार है? किसी भी जाँच द्वारा यह बात सामने आयेगी ही कि किसी स्तर पर मानवीय चूक हुई है। बात वहीं समाप्‍त हो जायेगी। लेकिन इन मानवीय चूकों की बढ़ती बारम्बारता के पीछे कई ढाँचागत कारण ज़िम्मेदार हैं। इसलिए सवाल उन ढाँचागत कारकों का है।
मोदी सरकार के पिछले 10 वर्षों में, रेलवे में नौकरियों को घटाया जा रहा है, जो नौकरियाँ हैं उनका ठेकाकरण और कैज़ुअलीकरण कर दिया गया है। भारतीय रेलवे में 78 हज़ार लोको एवं असिस्टेंट लोको पायलट हैं। रेलवे में लोको पायलट और सहायक लोको पायलट के कुल 1,27,644 पद हैं जिनमें से 18,766 पद (14.7 फीसदी) एक मार्च 2024 को रिक्त थे। लोको पायलट के 70,093 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से 14,429 (लगभग 20.5 फीसदी) खाली पड़े हैं, जबकि सहायक लोको पायलट के 57,551 पद स्वीकृत हैं जिनमें से 4,337 (लगभग 7.5 फीसदी) खाली हैं। नतीजतन, ड्राइवरों पर काम का भयंकर बोझ है। कई जगहों पर ड्राइवरों को गाड़ियाँ रोककर झपकियाँ लेनी पड़ रही हैं क्योंकि 18-20 घण्टे लगातार गाड़ी चलाने के बाद बिना सोये दुर्घटना की सम्भावना बढ़ जाती है। पश्चिम रेलवे के अहमदाबाद डिवीजन द्वारा मई 2023 में तैयार एक आधिकारिक नोट में कहा गया था कि लोको पायलट की कमी के कारण अप्रैल 2023 में 23.5 प्रतिशत लोको पायलट ने काम करने के अधिकतम समय 12 घण्टे से अधिक काम किया। इसी प्रकार, लगातार 6-6 दिन रात की ड्यूटी करवाये जाने के कारण भी रेल दुर्घटनाओं की संख्या बढ़ रही है। 2021-22 से 2022-23 के बीच नुकसानदेह रेल दुर्घटनाओं की संख्या में 37 प्रतिशत की भारी बढ़ोत्‍तरी हुई। कई बार ड्राइवरों को बिना शौचालय विराम के 10-10 घण्टे तक काम करना पड़ता है।
इसी प्रकार सिग्नल प्रणाली में लगे स्‍टाफ़ को भी या तो बढ़ाया ही नहीं गया या पर्याप्‍त रूप में नहीं बढ़ाया गया। नतीजतन, वहाँ भी काम के बोझ के कारण त्रुटियों और चूकों की सम्भावना बढ़ जाती है। यही हाल ग्रुप सी व डी के रेलवे कर्मचारियों का भी है। 2015 से 2022 के बीच ग्रुप सी व डी के 72,000 पदों को रेलवे ने समाप्‍त कर दिया। एक लिखित जवाब में रेल मन्त्री ने अलग-अलग जोन में मौजूद भर्तियों के बारे में बताया कि, ग्रुप सी में कुल 2,48,895 पद खाली हैं और ग्रुप ए और बी में 2070 पद खाली पड़े हैं। वहीं पूरे देश में करीब 3,04,143 पद खाली हैं। एक ओर रेलवे स्टेशनों, ट्रैकों की संख्या बढ़ रही है, वहीं पदों को कम कर और ठेकाकरण कर निजी कम्पनियों को मुनाफ़ा कूटने की आज़ादी दी जा रही है और रेलवे कर्मचारियों पर बोझ को बढ़ाया जा रहा है। यह मोदी सरकार की नीतियों का ही नतीजा है। 2007-08 में रेलवे में 13,86,011 कर्मचारी थे। लेकिन आज यह संख्या 12.27 लाख हो चुकी है। यानी करीब 1,85,984 नौकरियों की कटौती।
एक तरफ़ मोदी सरकार वन्दे भारत ट्रेन का खूब प्रचार करती है और इसे “नये भारत” की ट्रेन बताती है और कवच योजना का प्रचार करती है, इससे मध्यमवर्ग की एक आबादी को लग सकता है कि रेलवे तरक्की पर है। अगर कवच की बात करें तो अभी तो देश भर में सिर्फ़ 1,445 किलोमीटर में कवच लगाया गया है, जबकि रेलवे 69,000 किलोमीटर की कुल लम्बाई के मार्ग का प्रबन्धन करती है।वहीं दूसरी तरफ़ आम जनता वन्दे भारत में नहीं स्लीपर या जनरल डिब्बे में सफ़र करती है। आज दुर्घटनाओं में मृतकों की संख्या इतनी बड़ी होने के पीछे एक कारण यह भी है कि जनरल बोगियों में मज़दूर वर्ग और आम मेहनतकशों की जनता को जानवरों और भेड़-बकरियों की तरह सफ़र करने पर मजबूर होना पड़ता है। क़ायदे से सरकार को रेलों और बोगियों की संख्या बढ़ानी चाहिए ताकि हर कोई मानवीय, गरिमामय और आरामदेह स्थितियों में सफ़र कर सके। वहीं गोदी मीडिया भी बड़ी बेशर्मी के साथ सरकार का बचाव कर रही है कि मोदी सरकार के राज में ट्रेन हादसे में कमी आयी है, जबकि सच्चाई यह है कि एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक 2017- 2021 के बीच रेल हादसों में क़रीब 1,00,000 लोगो की मौत हुई है। इसपर यह गोदी मीडिया चुप्पी साध लेती है।
वहीं एक ओर रेलवे का नेटवर्क विस्तारित किया गया है, दूसरी ओर रेलवे में कर्मचारियों की संख्या को लगातार कम करके मोदी सरकार मौजूदा कर्मचारियों पर काम के बोझ को भयंकर तरीके से बढ़ा रही है। ऐसे में, दुर्घटनाओं और त्रासदियों की संख्या में बढ़ोत्‍तरी की सम्भावना नैसर्गिक तौर पर बढ़ेगी ही। ऐसी जर्जर अवरचना के भीतर मोदी सरकार बुलेट ट्रेन के शेखचिल्‍ली के ख़्वाब दिखा रही है, तो इससे बड़ा भद्दा मज़ाक और कुछ नहीं हो सकता। तात्कालिक तौर पर निश्‍चय ही ऐसी दुर्घटनाओं के लिए किसी व्यक्ति की चूक या ग़लती ज़िम्मेदार नज़र आ सकती है। लेकिन यह एक व्यवस्थागत समस्या है जिसके लिए मौजूदा मोदी सरकार की छँटनी, तालाबन्‍दी और ठेकाकरण की नीतियाँ और रेलवे को टुकड़ों-टुकड़ों में निजी धन्नासेठों के हाथों में सौंप देने की मोदी सरकार की योजना ज़िम्मेदार है। यह मोदी सरकार की पूँजीपरस्त और लुटेरी नीतियों का परिणाम है। इस बात को हमें समझना होगा क्योंकि सरकारें ऐसी त्रासदियों की ज़िम्मेदारी भी जनता पर डाल देती हैं और अपने आपको कठघरे से बाहर कर देती हैं।
भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI) जलपाईगुड़ी ट्रेन दुर्घटना में मारे गये लोगों के परिजनों से इस घटना पर ग़हरा शोक व्यक्त करने के साथ ही मोदी सरकार से माँग करती है कि:
• जलपाईगुड़ी ट्रेन दुर्घटना की नैतिक ज़िम्मेदारी लेते हुए केन्‍द्रीय रेल मन्त्री अश्विनी वैष्णव इस्तीफ़ा दें।
• मृतकों के परिवारों को कम से कम रुपये 15 लाख मुआवज़ा और नौकरीशुदा या कमाने वाले सदस्य की मौत की सूरत में परिवार के एक सदस्य को पक्की सरकारी नौकरी दे। साथ ही हादसे में घायल हुए व्यक्तियों को 5 लाख मुआवज़ा दे।
• रेलवे में निजीकरण, छँटनी तथा ठेकाकरण तत्काल बन्‍द किया जाये।
• नियमित प्रकृति के सभी कामों पर स्थायी भर्ती की जाये।
• सभी ख़ाली पदों पर तत्काल पक्की भर्ती की जाये।
• रेलवे लोको पाइलटों की बड़ी संख्या में भर्ती की जाये ताकि उन पर काम के अमानवीय बोझ को खत्म किया जा सके। इससे दुर्घटनाओं की सम्भावना कम होती जायेगी।
• रेलवे सिग्नलिंग तन्त्र और सुरक्षा व्यवस्था को चाक-चौबन्द और सुचारु करने के लिए वहाँ भी बड़े पैमाने पर भर्तियाँ की जायें।
भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी • RWPI