गुजरात में भाजपा सरकार द्वारा मज़दूरों के काम के घण्टे बढ़ाने का विरोध करो!

गुजरात में भाजपा सरकार द्वारा मज़दूरों के काम के घण्टे बढ़ाने का विरोध करो!

भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI) द्वारा जारी

बीते 1 जुलाई को गुजरात सरकार द्वारा फैक्ट्री (गुजरात संशोधन) विधेयक, 2020 के तहत अध्यादेश जारी किया गया, जिसमें फैक्ट्री एक्ट, 1948 की धारा 54 में संशोधन किया गया है। इस संशोधन के तहत अब मज़दूरों से 12 घण्टे की शिफ़्ट में काम करवाने और महिलाओं से भी रात की शिफ़्ट में काम करवाने की अनुमति दी गयी है। इसी के साथ मज़दूरों को अब बिना ब्रेक के 5 से 6 घण्टे लगातार काम करना होगा। साथ ही एक तिमाही में कुल ओवरटाइम कार्य के घण्टों की सीमा को 75 घण्टे से बढ़ाकर 125 घण्टे कर दिया गया है। यानी अब गुजरात में मज़दूरों को प्रतिदिन 8 घण्टे के बजाय 12 घण्टे काम करना होगा और उसमें भी 6 घण्टे तक मशीन की तरह बिना रुके काम करना होगा। गुजरात सरकार दावा कर रही है कि काम के घण्टे बढ़ाने से राज्य का विकास होगा और मज़दूर भी अधिक पैसा कमा पायेंगे। सरकार की इस “विकास की नौटंकी” को हर मज़दूर समझता है। असल में इस अध्यादेश के ज़रिये गुजरात में भाजपा सरकार ने पूँजीपतियों को मज़दूरों को लूटने की खुली छूट दी है और मज़दूरों को क़ानूनी तौर पर भी ग़ुलाम बना दिया है।

काम के घण्टे बढ़ने से कम्पनियों में तीन शिफ़्ट की जगह दो शिफ़्ट में ही काम होगा, जिससे कि अभी काम कर रहे कुल मज़दूरों के एक-तिहाई हिस्से को बाहर कर दिया जायेगा। बेरोज़गारों की ‘रिजर्व आर्मी’ में बढ़ोतरी होगी, जिसका दूरगामी फ़ायदा भी इन्हीं पूँजीपतियों को होगा। इसके साथ ही कम्पनियाें में मज़दूरों को ओवर टाइम का डबल रेट से भुगतान किये बिना ही उनसे अतिरिक्त काम करवाया जायेगा। महिला मज़दूरों से भी इसलिए रात की शिफ़्ट में काम करवाने की अनुमति दी गयी है, ताकि मालिकों को सस्ता से सस्ता श्रम 24 घण्टे उपलब्ध हो सके। यह जग-ज़ाहिर है कि पहले से ही बने श्रम क़ानून 94 प्रतिशत असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों के लिए लागू नहीं होते थे। काम के घण्टों, न्यूनतम मज़दूरी, ओवरटाइम, सामाजिक सुरक्षा आदि के लिए बने क़ानून मज़दूरों के लिए भद्दे मज़ाक के अलावा कुछ नहीं थे, पर कभी-कभी वह मालिकों के लिए रुकावट बन जाते थे। अब गुजरात सरकार ने अध्यादेश जारी कर पूँजीपतियों की यह समस्या भी हल कर दी है। यही गुजरात मॉडल की सच्चाई है, जहाँ मज़दूरों को कोल्हू के बैल की तरह निचोड़कर, पूँजीपतियों के मुनाफ़े को बढाया जा रहा है।

इसी गुजरात मॉडल को चार लेबर कोड के माध्यम से मोदी सरकार अब पूरे देश में लागू करने की तैयारी कर चुकी है। पूँजीपति वर्ग भी चाहता है कि नयी श्रम संहिताएँ जल्द से जल्द पूरे देश में लागू हो जाएँ, जिससे कि मज़दूरों के काम के घण्टे क़ानूनी तौर पर 8 घण्टे से अधिक किये जा सकें, फ्लोर लेवल मज़दूरी के नाम पर उनसे न्यूनतम मज़दूरी का हक़ ही छीन लिया जाये, किशोर व बाल श्रम के शोषण की किसी न किसी पर्दे के पीछे से इजाज़त दे दी जाये, पूँजीपतियों के लिए मज़दूरों को ‘हायर एण्ड फ़ायर’ की नीतियों के आधार पर फिक्स्ड टर्म कॉण्ट्रैक्ट के आधार पर रखना सम्भव हो जाये, इत्यादि। चार लेबर कोड को लागू करने का असल मक़सद ही है कि मुनाफ़े की गिरती औसत दर के संकट से पूँजीपति वर्ग को निजात मिल सके। इन चार लेबर कोड के लागू होने के साथ ही मज़दूर वर्ग के कई ऐसे अधिकारों को छीन लिया जायेगा, जिन्हें दशकों के संघर्ष के बाद हासिल किया गया था।

इस ग़ुलामी को ख़त्म करने के लिए गुजरात से लेकर पूरे देश के मज़दूरों के पास अब एक ही रास्ता बचा है। गाँवों और शहरों की व्यापक मेहनतकश आबादी को उनके विशिष्ट पेशों की चौहद्दियों से आगे बढ़कर, नयी श्रम संहिताओं के ख़िलाफ़ एकजुट होना होगा। साथ ही सेक्टरगत व इलाकाई पैमाने पर भी एकता बनानी होगी। तभी मज़दूर विरोधी चार लेबर कोड को पूरे देश में लागू होने से रोका जा सकता है और फ़ासीवादी मोदी सरकार को झुकाया जा सकता है। हमें भूलना नहीं चाहिए कि इतिहास में मज़दूर वर्ग की फ़ौलादी मुट्ठी ने हमेशा ही फ़ासीवाद को चकनाचूर किया है, आने वाला समय भी इसका अपवाद नहीं होगा। मगर इसके लिए हमें अपनी भरपूर ताक़त के साथ तैयारी में जुटना होगा।

भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी गुजरात सरकार द्वारा काम के घण्टे बढ़ाने और महिला मज़दूरों से रात की शिफ़्ट में काम करवाने के लिए जारी अध्यादेशों की भर्त्सना करती है। RWPI यह माँग करती है कि फैक्ट्री अधिनियम में किये गये संशोधन और अध्यादेश को तत्काल रद्द किया जाये।

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