गुजरात में भाजपा सरकार द्वारा मज़दूरों के काम के घण्टे बढ़ाने का विरोध करो!

काम के घण्टे बढ़ने से कम्पनियों में तीन शिफ़्ट की जगह दो शिफ़्ट में ही काम होगा, जिससे कि अभी काम कर रहे कुल मज़दूरों के एक-तिहाई हिस्से को बाहर कर दिया जायेगा। बेरोज़गारों की ‘रिजर्व आर्मी’ में बढ़ोतरी होगी, जिसका दूरगामी फ़ायदा भी इन्हीं पूँजीपतियों को होगा। इसके साथ ही कम्पनियाें में मज़दूरों को ओवर टाइम का डबल रेट से भुगतान किये बिना ही उनसे अतिरिक्त काम करवाया जायेगा। महिला मज़दूरों से भी इसलिए रात की शिफ़्ट में काम करवाने की अनुमति दी गयी है, ताकि मालिकों को सस्ता से सस्ता श्रम 24 घण्टे उपलब्ध हो सके। यह जग-ज़ाहिर है कि पहले से ही बने श्रम क़ानून 94 प्रतिशत असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों के लिए लागू नहीं होते थे। काम के घण्टों, न्यूनतम मज़दूरी, ओवरटाइम, सामाजिक सुरक्षा आदि के लिए बने क़ानून मज़दूरों के लिए भद्दे मज़ाक के अलावा कुछ नहीं थे, पर कभी-कभी वह मालिकों के लिए रुकावट बन जाते थे। अब गुजरात सरकार ने अध्यादेश जारी कर पूँजीपतियों की यह समस्या भी हल कर दी है। यही गुजरात मॉडल की सच्चाई है, जहाँ मज़दूरों को कोल्हू के बैल की तरह निचोड़कर, पूँजीपतियों के मुनाफ़े को बढाया जा रहा है।

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बिहार विधानसभा चुनाव के ठीक पहले मतदाता सूची संशोधन के पीछे की असली मंशा पिछले दरवाज़े से NRC को लागू करने की है!

कहने की ज़रूरत नहीं है कि चुनाव आयोग की यह हरक़त सीएए और एनआरसी की याद दिलाती है। 6 साल पहले मोदी सरकार जिस “क्रोनोलॉजी” को लागू करने की कोशिश कर रही थी, देशभर में इसके ख़िलाफ़ खड़े हुए जनान्दोलनों के दबाव में उसे पूर्ण तरीक़े से लागू नहीं कर पायी। जिस नीति के तहत बड़ी ग़रीब मेहनतकश आबादी और दलित व अल्पसंख्यक समुदाय से उनके जनवादी और संवैधानिक अधिकार छीनने की कोशिश की जा रही थी, उसे अब पिछले दरवाज़े से चुनाव आयोग के ज़रिये लाने की कोशिश की जा रही है। निश्चित ही पिछले कुछ सालों में राम मंदिर, पाकिस्तान, गाय-गोबर, 5 ट्रिलियन इकोनॉमी आदि की जुमलेबाज़ी जनता देख चुकी है और संघ और भाजपा की पोल- पट्टी खुल चुकी है। ऐसे में भाजपा पिछले कुछ समय से “घुसपैठिए और शरणार्थी” का जुमला उछाल रही है। बिहार में इसे अचानक से लाने का कारण यह है कि यहाँ की जनता में महंगाई, बेरोज़गारी, शिक्षा और स्वास्थ्य सबसे बड़ा मुद्दा है। केन्द्र और राज्य की डबल इंजन की सरकार पूर्ण तरीक़े से इस क्षेत्र में विफल रही है और जनता में भयानक असंतोष व्याप्त है।

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ईरान पर इज़रायली हमले के साथ मध्‍यपूर्व में साम्राज्‍यवादी युद्ध का विस्‍तार – युद्ध, नरसंहार और तबाही: ये साम्राज्‍यवाद द्वारा मानवता को दी जा रही नेमतें हैं

आने वाले दिनों में अमेरिकी साम्राज्‍यवाद अपने गिरते वर्चस्‍व को रोकने के लिए मध्‍य-पूर्व सहित दुनिया के विभ‍िन्‍न हिस्‍सों में युद्ध, नरसंहार, बेपनाह हिंसा का सहारा लेने से बाज़ नहीं आने वाला है। मध्‍य-पूर्व में चल रही मौजूदा उथल-पुथल का असर न सिर्फ़ उस क्षेत्र में होगा बल्कि तेल व गैस का भण्‍डार होने की वजह से उस क्षेत्र मे अस्थिरता का असर समूचे व‍िश्‍व की अर्थव्‍यवस्‍थाओं पर होना लाज़‍िमी है। साथ ही यह उथल-पुथल, अनिश्‍चितता और अस्थिरता जनबग़ावतों की ज्‍वाला को भी भड़काने का काम करेगी। स्‍पष्‍ट है कि साम्राज्‍यवाद का एक-एक दिन मानवता के लिए ज्‍़यादा से ज्‍़यादा तबाही और बरबादी का सबब बनता जा रहा है। इसलिए साम्राज्‍यवाद के ख़ात्‍मे के बिना दुनिया में अमन, चैन और ख़ुशहाली नहीं हो सकती है।

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RWPI छत्‍तीसगढ़ में सीपीआई (माओवादी) के महासचिव एन. केशव राव, अन्‍य माओवादियों एवं आम आदिवासियों की हत्‍याओं की निन्‍दा करती है!

‘‘माओवादियों’’ से लड़ने के नाम पर मोदी-शाह सरकार द्वारा शुरू किया गया ‘ऑपरेशन कगार’ वास्‍तव में भारतीय तथा विदेशी पूँजी द्वारा मध्‍य भारत के खनिज-समृद्ध क्षेत्रों के शोषण व लूट के लिए रास्‍ता तैयार करने का ऑपरेशन है। माओवादियों और आम आदिवासियों से मुठभेड़ें और न्‍यायेतर हत्‍याएँ इन्‍हीं पूँजी-परस्‍त और जनव‍िरोधी लक्ष्‍यों को हासिल करने के लिए की गई हैं।

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सरकार युद्धोन्माद फैलाना तत्काल बन्द करे!

भारत और पाकिस्तान दोनों ही मुल्कों की आम मेहनतकश जनता को गम्भीरता से यह सोचना होगा कि अगर इन हमलों से युद्ध की शुरुआत होती है तो उसके नतीजे क्या होंगे। जान-माल के होने वाले नुक़सान के साथ ही इस युद्ध में परमाणु हमले का भी ख़तरा है जो अकथनीय तबाही व यंत्रणा का सबब बनेगा। इसके अलावा, दोनों मुल्कों की बुर्जुआ राज्यसत्ताएँ जो इन अनुत्पादक युद्ध अभ्यासों पर करोड़ों-करोड़ रुपये बर्बाद कर रही है, अन्ततः इसका आर्थिक बोझ आम लोगों पर ही पड़ने वाला है। इसके अलावा, ऐसे युद्धों में “मातृभूमि की रक्षा के लिए” अग्रिम मोर्चे पर लड़ने वाले लोग हमेशा ही आम शहरी और ग्रामीण मेहनतकश जनता के घरों से ही आते हैं, न कि अम्बानी और अडानी जैसों के घरों से। आम मेहनतकश जनता बुर्जुआ राज्यसत्ताओं के बीच पूँजीवादी युद्ध के खेल में मोहरा बन जाती है। ऐसे में कोई भी समझदार व्यक्ति किसी भी समस्या के समाधान के रूप में भारत और पाकिस्तान के बीच किसी भी तरह के युद्ध का समर्थन नहीं कर सकता। यह स्पष्ट है कि अभी जो युद्धोन्माद की भावना भड़कायी जा रही है उसके पीछे असली इरादा आतंकवाद की समस्या को हल करना नहीं है, बल्कि लोगों का ध्यान उनकी जीवनयापन की वास्तविक समस्याओं से हटाकर एक “नक़ली दुश्मन” की ओर मोड़ना है।

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नैनीताल में बलात्कार की बर्बर घटना पर साम्प्रदायिक उन्माद फैलाता संघी गिरोह!

बलात्कार की घटना के ख़िलाफ़ जहाँ एक तरफ़ नैनीताल की जनता बच्ची के लिए न्याय माँगते हुए सड़कों पर उतर रही थी वहीं दूसरी तरफ भाजपा और आरएसएस के लोग स्त्री-विरोधी और मुस्लिम-विरोधी नारे लगाते हुए सड़कों पर हिंसा को अंज़ाम दे रहे थे। ख़ैर, इन गुण्डा तत्वों से किसी और चीज़ की अपेक्षा करना हमारी मूर्खता होगी!!

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पहलगाम हमले में हुई मौतों के लिए फ़ासीवादी मोदी सरकार जवाबदेह है! साम्प्रदायिक फ़ासीवादियों की नफ़रती राजनीति का शिकार मत बनो!

सरहद के दोनों ओर शासक वर्ग और धार्मिक कट्टरपन्‍थी एक-दूसरे के पूरक हैं। इस्लामिक कट्टरपन्थियों द्वारा पाकिस्तान का इस्लामीकरण और हिन्दुत्व फ़ासीवादियों द्वारा भारत का हिन्दुत्वीकरण दोनों ही देशों के शासक वर्गों के हितों को साधने का काम करता है। जो लोग धार्मिक कट्टरपन्थ और फ़ासीवादी राजनीति का किसी भी रूप में समर्थन करते हैं, उनको पहलगाम जैसी आतंकवादी घटना पर आक्रोश ज़ाहिर करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। यह केवल उनके पाखण्ड को ही दिखाता है। आरएसएस और भाजपा की साम्प्रदायिक राजनीति ने कश्मीर समेत सभी मुद्दों को हिन्दू और मुस्लिमों के बीच आग भड़काने का एक ज़रिया बन दिया है। पहलगाम में जो कुछ भी हुआ, वह मोदी-शाह सरकार के पिछले एक दशक के दौरान अपने चरम पर पहुँच चुकी इस घृणित राजनीति की ही परिणति है। यह साम्प्रदायिक फ़ासीवादी सरकार और संघ परिवार अपने गिरेबान पर लगे निर्दोष नागरिकों के ख़ून के धब्बों को मिटा नहीं सकते। वास्तव में, हिन्दू और इस्लामिक कट्टरपन्थी दोनो प्रकार की ताक़तें पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में हिंसा और ख़ून-ख़राबे को बढ़ाने के लिए ज़िम्मेदार है।

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वक़्फ़ (संशोधन) विधेयक-2025: मुस्लिमों की धार्मिक सम्पत्ति के प्रशासन के नाम पर साम्प्रदायिकीकरण द्वारा भाजपा व संघ परिवार का मुसलमान अल्पसंख्यकों पर एक और फ़ासीवादी हमला

जहाँ एक ओर हिन्दुत्व फ़ासिस्टों की गुण्डावाहिनियाँ मुस्लिमों के धार्मिक स्थलों और उनके त्योहारों पर निशाना साधते हुए समाज में लगातार साम्प्रदायिक तनाव का माहौल बना रही हैं, वहीं दूसरी ओर फ़ासिस्ट मोदी सरकार औपचारिक तौर पर उनके अधिकारों को छीनकर उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक बनाने के अपने विचारधारात्मक लक्ष्य पर बेरोकटोक ढंग से आगे बढ़ रही है। इसी के ज़रिये समाज में साम्प्रदायिकीकरण की अपनी जारी साज़िश को भी संघ परिवार आगे बढ़ाने की फ़िराक़ में है।

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लगातार बढ़ते ट्रेन हादसे! ज़िम्मेदार मोदी सरकार!!

मोदी सरकार के पिछले 10 वर्षों में, रेलवे में नौकरियों को घटाया जा रहा है, जो नौकरियाँ हैं उनका ठेकाकरण और कैज़ुअलीकरण कर दिया गया है। भारतीय रेलवे में 78 हज़ार लोको एवं असिस्टेंट लोको पायलट हैं। रेलवे में लोको पायलट और सहायक लोको पायलट के कुल 1,27,644 पद हैं जिनमें से 18,766 पद (14.7 फीसदी) एक मार्च 2024 को रिक्त थे। लोको पायलट के 70,093 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से 14,429 (लगभग 20.5 फीसदी) खाली पड़े हैं, जबकि सहायक लोको पायलट के 57,551 पद स्वीकृत हैं जिनमें से 4,337 (लगभग 7.5 फीसदी) खाली हैं। नतीजतन, ड्राइवरों पर काम का भयंकर बोझ है। कई जगहों पर ड्राइवरों को गाड़ियाँ रोककर झपकियाँ लेनी पड़ रही हैं क्योंकि 18-20 घण्टे लगातार गाड़ी चलाने के बाद बिना सोये दुर्घटना की सम्भावना बढ़ जाती है। पश्चिम रेलवे के अहमदाबाद डिवीजन द्वारा मई 2023 में तैयार एक आधिकारिक नोट में कहा गया था कि लोको पायलट की कमी के कारण अप्रैल 2023 में 23.5 प्रतिशत लोको पायलट ने काम करने के अधिकतम समय 12 घण्टे से अधिक काम किया। इसी प्रकार, लगातार 6-6 दिन रात की ड्यूटी करवाये जाने के कारण भी रेल दुर्घटनाओं की संख्या बढ़ रही है। 2021-22 से 2022-23 के बीच नुकसानदेह रेल दुर्घटनाओं की संख्या में 37 प्रतिशत की भारी बढ़ोत्‍तरी हुई। कई बार ड्राइवरों को बिना शौचालय विराम के 10-10 घण्टे तक काम करना पड़ता है।
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लोकसभा चुनाव – 2024 – राज्‍यसत्‍ता की मशीनरी का दुरुपयोग करने, समस्‍त पूँजीवादी संसदीय विपक्ष को कुचलने के तमाम प्रयासों और जनपक्षधर शक्तियों के व्‍यापक दमन-उत्‍पीड़न के बावजूद फ़ासीवादी भाजपा अपने बूते बहुमत तक पहुँचने में नाकाम

इस नतीजे का मुख्‍य कारण यह था कि बेरोज़गारी, महँगाई, भयंकर भ्रष्‍टाचार, साम्‍प्रदायिकता से जनता त्रस्‍त थी। यही वजह थी कि आनन-फ़ानन में अपूर्ण राम मन्दिर के उद्घाटन करवाने का भी भाजपा को कोई फ़ायदा नहीं मिला और फ़ैज़ाबाद तक की सीट भाजपा हार गयी, जिसमें अयोध्‍या पड़ता है। उत्‍तर प्रदेश के नतीजों ने सभी को चौंकाया, लेकिन चुनावों से पहले आरडब्‍ल्‍यूपीआई के नेतृत्‍व में चली ‘भगतसिंह जनअधिकार यात्रा’ के दूसरे चरण में ही हमने यह महसूस किया था कि उत्‍तर प्रदेश में ऐसे नतीजे आने की पूरी सम्‍भावना है।

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