2024 लोकसभा चुनावों से पहले साम्प्रदायिक ज़हर फैलाने की साज़िशें ज़ोरों-शोरों पर!
2024 लोकसभा चुनावों से पहले हिन्दुत्व फ़ासीवाद की नयी प्रयोगशाला उत्तर प्रदेश में साम्प्रदायिक ज़हर फैलाने की साज़िशें ज़ोरों-शोरों पर!
उत्तर प्रदेश के “रामराज्य” में भाजपा और योगी आदित्यनाथ के फ़ासीवादी शासन में न्याय और क़ानून व्यवस्था पूरी तरह से तहस-नहस!
इस भय, आतंक और अराजकता के माहौल के लिए फ़ासीवादी योगी सरकार ज़िम्मेदार है!
अपराधियों पर नकेल कसना बहाना है, आम मुसलमान व मेहनतकश जनता ही निशाना है!
भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI) द्वारा जारी
बीती रात उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में गैंगस्टर व पूर्व समाजवादी पार्टी नेता अतीक़ अहमद और उसके भाई अशरफ़ की सार्वजनिक तौर पर यूपी पुलिस की निगरानी में तीन लोगों ने गोली मारकर हत्या कर दी। इस वारदात को प्रयागराज मेडिकल कॉलेज के पास भारी पुलिस की उपस्थिति में अंजाम दिया गया। दोनों को 10 से अधिक गोलियाँ मारी गयीं। यह घटना योगी आदित्यनाथ की फ़ासीवादी भाजपा सरकार के उत्तर प्रदेश में क़ानून व्यवस्था के बहाल होने के सभी फर्ज़ी दावों को तो ध्वस्त करती ही है, साथ ही अतीक़ अहमद की छवि के ज़रिए आम मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफरती साम्प्रदायिक माहौल पैदा करने की योगी सरकार की नयी कुत्सित कोशिशों को भी उजागर करती है। वैसे सोचने वाली बात यह भी है कि ऐसी वारदात ठीक उस वक्त क्यों घटित हुई जब पुलवामा हमले को लेकर जम्मू कश्मीर के भूतपूर्व गवर्नर और भाजपा नेता सत्यपाल मलिक ने मोदी सरकार को सीधे कठघरे में खड़ा किया? अपने ही भीतरी व्यक्ति के द्वारा किये गये इस खुलासे के बाद मोदी सरकार के लिए जवाब देते नहीं बन पा रहा था!
बहरहाल, अब तक अतीक़ अहमद हत्या मामले में यूपी पुलिस ने 3 लोगों को गिरफ़्तार किया है। यह घटना उस दौरान हुई जब अतीक़ अहमद और अशरफ़ अहमद को मेडिकल चेक अप के लिए पुलिस हिरासत में हथकड़ियाँ पहनाकर ले जाया जा रहा था। तमाम मीडिया और पुलिसकर्मियों की मौजूदगी में हमलावरों ने अतीक़ अहमद और उसके भाई को गोली मार दी। ज्ञात हो कि उमेश पाल हत्याकाण्ड में अतीक़ अहमद को गुजरात जेल से उत्तर प्रदेश लाया गया था और 17 अप्रैल तक उसे पुलिस रिमाण्ड में रखा गया था। सार्वजनिक हत्या का यह पूरा घटनाक्रम ही कई बातों पर सवाल खड़ा कर रहा है, मसलन ऐसे कौन से राज़ थे जो अतीक़ अहमद जानता था और उनका खुलासा होने से किसको नुक़सान होने वाला था। जिस रूप में यह वारदात अंजाम दी गयी है उससे ये सवाल उठना तो लाज़मी है।
पिछले लम्बे समय से अतीक़ अहमद की गैंगस्टर की छवि के ज़रिए योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश में आम मुसलमानों के ख़िलाफ़ भयानक नफ़रती साम्प्रदायिक माहौल तैयार किया जा रहा था। अतीक़ अहमद के बहाने फ़ासीवादियों द्वारा आम जनमानस में मुसलमानों की विशेष छवि के निर्माण की सुनियोजित साज़िश रची जा रही थी। योगी सरकार अपराध को भी एक ख़ास मज़हब और समुदाय से जोड़कर एक ख़तरनाक नैरेटिव गढ़ रही थी। ऐसा क्यों है कि राजा भैय्या, बृजेश सिंह, धनंजय सिंह जैसे ग़ैर मुसलमान अपराधी जिन्हें भाजपा की शह मिली हुई है वे न सिर्फ़ बेख़ौफ़ सड़कों पर घूम रहे हैं बल्कि मंत्री पद तक से भी नवाज़े जा रहे हैं? अपराधियों पर नकेल कसने का यह ढोंग दरअसल उत्तर प्रदेश में आम मुसलमानों के ख़िलाफ़ धार्मिक उन्माद भड़काने का योगी सरकार का नया फ़ासीवादी औज़ार है।
साथ ही, अतीक़ अहमद की सरेआम हुई हत्या उत्तर प्रदेश में योगीराज के तहत “क़ानूनराज” की भी पोल खोलकर रख देती है। एक तरफ़ योगी आदित्यनाथ यह दावा करते हैं कि उत्तर प्रदेश देश के “सबसे सुरक्षित” राज्यों में से एक हैं और वहीं दूसरी तरह भारी पुलिस सुरक्षा के बावजूद तीन हमलावर आकर सरेआम उसकी हत्या कर देते हैं और पुलिस देखती रहती है! यह घटना यह भी दर्शाती है कि उत्तर प्रदेश में क़ानून व्यवस्था बुरी तरह से चरमरा गयी है। क्या यह अनायास है कि कुछ लोग खुलेआम आये और उन्होंने हत्या की कार्रवाई को ऐन पुलिस की निगरानी में अंजाम दे दिया या इसके निहितार्थ कुछ और हैं? अभी तो कुछ रोज़ पहले यही यूपी पुलिस “एनकाउण्टर” में की गयी दो हत्याओं को लेकर अपने गाल बजा रही थी। बताया जा रहा है कि अतीक़ अहमद और उसके भाई की हत्या करने के बाद हमलावरों ने ‘जय श्री राम’ के नारे भी लगाये।
जहाँ तक अतीक़ अहमद का प्रश्न है तो समाजवादी पार्टी से किनारे होने के बाद 2018 का विधानसभा चुनाव उसने फूलपुर से निर्दलीय लड़ा था, जिससे सपा बसपा कांग्रेस गठबन्धन को नुक़सान भी हुआ, जिसका सीधा फ़ायदा भाजपा को मिला। अतीक़ अहमद को जानबूझकर भाजपा द्वारा ही डमी उम्मीदवार के तौर पर खड़ा किया गया था ताकि मुसलमान वोट बँट जाये और भाजपा उस सीट से जीते ।
योगी सरकार का दावा है कि वह गैंगस्टरों को “मिट्टी में मिला रही है” हालाँकि यह एक धर्म विशेष के अपराधियों के साथ ही हो रहा है। इसके ज़रिए 2024 चुनावों से पहले उत्तर प्रदेश में भयंकर साम्प्रदायिकता का ज़हरीला माहौल बनाया जा रहा है जिसमें आम मुसलमानों को हिन्दू आबादी के सामने “ख़लनायक”, “अपराधी” के तौर पर चित्रित किया जा रहा है। इस फ़ासीवादी मुहिम को अंजाम देने के लिए बिना किसी संवैधानिक क़ानून सम्मत प्रक्रिया का पालन किए ज़ुर्म पर सीधा “एनकाउण्टर” करके रोक लगाने की न्यायेत्तर वारदातों को अंजाम दिया जा रहा है।
वास्तव में पूँजीवादी व्यवस्था में अपराध और सत्ता का गठजोड़ फेविकॉल के मज़बूत जोड़ जैसा होता है। सत्तारूढ़ पार्टी अपने हितों के हिसाब से अपराधियों को शह देती है और ज़रूरत पूरा होने के बाद उन्हें रास्ते से हटा भी देती है। योगी सरकार तो ख़ैर इस मामले में अव्वल स्थान पर है। 2018 में इसी अतीक़ अहमद का इस्तेमाल स्वयं भाजपा ने किया था, तब उसके गैंगस्टर होने से फ़ासीवादियों को कोई गुरेज़ नहीं था! आज फ़ासीवादियों द्वारा हिन्दुत्व फ़ासीवाद की नयी प्रयोगशाला के रूप में उत्तर प्रदेश को उदाहरण के तौर पर स्थापित किया जा रहा है जहाँ क़ानून, अदालत, न्यायिक प्रक्रिया सिर्फ़ जुमले हैं। दरअसल सत्तारूढ़ भाजपा इस वक्त निर्विवाद रूप से एक संगठित आपराधिक माफ़िया के तौर पर ख़ुद काम कर रही है। विकास दुबे से लेकर ऐसे तमाम अपराधियों को रास्ते से हटा दिया गया, जो योगी सरकार के लिए रास्ते का रोड़ा बन सकते थे क्योंकि वे कई अन्दरूनी बातें जानते थे। हालिया अतीक़ अहमद प्रकरण भी जिस हिसाब से घटित हुआ है, इसके आगे गैंग्स ऑफ वासेपुर जैसी बॉलीवुड की चलताऊ फ़िल्में भी फीकी हैं! मध्यम वर्ग का एक हिस्सा जो मुसलमानों के प्रति अपनी घृणा के चलते और फ़ासीवादी प्रचार के कारण राज्यसत्ता द्वारा “एनकाण्टर” के रूप में हत्या करने के विशेषाधिकार के लिए तालियाँ पीट रहा है, उसे भी यह बात समझ लेनी चाहिए कि हिंसा और हत्या का ऐसा कोई भी वैधीकरण एक दिन उसकी जान भी ख़तरे में डाल देगा और वह भी इसके शिकंजे से बच नहीं पायेगा।
उत्तर प्रदेश में “एनकाउण्टर राज” को शासन और “क़ानून व्यवस्था” के नये मॉडल के तौर पर पेश किये जाने के पीछे असल मंशा आम मुसलमान आबादी और साथ ही आम मेहनतकश जनता के बीच ख़ौफ़ और आतंक का माहौल पैदा करना है। अगर इस प्रकार की न्यायेत्तर कार्रवाइयाँ ख़ुद राज्यसत्ता द्वारा अंजाम दी जा रही हैं तो गैंगस्टरों और पुलिस व सरकार में अन्तर ही क्या है? उत्तर प्रदेश में “विजिलाण्टे जस्टिस” के तहत पुलिस द्वारा एनकाउण्टर हत्याएँ करके योगी आदियानाथ एक “मज़बूत नेता” के तौर पर अपनी छवि गढ़ने का जो प्रयास कर रहे हैं वह “मज़बूती” यूपी में पूँजीपति वर्ग की नंगी तानाशाही स्थापित करने के लिए आवश्यक है। फ़ासीवादी राज्यसत्ता द्वारा “ऑन द स्पॉट” फ़ैसले करने के ऐसे न्यायेत्तर तरीक़े का कोई भी समर्थन दरअसल पूँजीवादी राज्यसत्ता की हर हिंसा और अपराध को वैधिकरण प्रदान करना है। अगर हर किस्म की संवैधानिक न्यायिक प्रक्रिया को ख़त्म करके खुली तानाशाही, “एनकाउण्टर राज” और जंगलराज ही क़ायम करना है तो फिर किसी गवाह, सबूत, वकील या अदालत की कोई ज़रूरत ही क्या है? अगर पुलिस द्वारा सड़कों पर ही इस प्रकार हत्या कर “न्याय” किया जाना सही है, तो फिर आज फिर इस “न्याय व्यवस्था” का दिखावा ही क्यों किया जा रहा है? यह बात सही है की आम तौर पर भी पूँजीवादी व्यवस्था के भीतर आम मेहनतकश आबादी को क़ानून और न्याय व्यवस्था से इंसाफ अपवादस्वरूप स्थितियों में ही मिलता है लेकिन फ़ासीवाद के दौर भी इस औपचारिकता को भी फ़ासीवादी हुक्मरान ख़त्म करने की कोशिशों में निरन्तर प्रयासरत रहते हैं। उत्तर प्रदेश के योगी शासन में भी यही हो रहा है।
ग़ौरतलब है कि 2017 के बाद से उत्तर प्रदेश में 10,900 एनकाउण्टर हुए हैं, जिसमें 183 “अपराधियों” को अब तक मारा जा चुका है। भाजपा नेता बता रहे हैं, यही “नया भारत” हैं जहाँ क़ानून, अदालतें और न्याय व्यवस्था बस काग़ज़ों की शोभा बढ़ाने के लिए हैं! दरअसल यूपी में इस आतंक राज को स्थापित करने के पीछे फ़ासीवादी योगी आदित्यनाथ की सरकार की वास्तविक मंशा आम मुसलमानों समेत मेहनतकश आबादी के बीच डर और आतंक का ऐसा माहौल बनाना है कि लोग प्रतिरोध करना भूल जाएँ। यह बात उत्तर प्रदेश समेत देश की मेहनतकश आबादी जीतनी जल्दी समझ जायेगी उसके वर्तमान और भविष्य के लिए उतना बेहतर होगा। साथ ही, यह बात भी समझनी होगी कि 2024 के लोकसभा चुनावों की तैयारी के लिए उत्तर प्रदेश समेत भारत के अलग अलग हिस्सों में साम्प्रदायिकता की आग भड़काने की साज़िशें तेज़ हो रही हैं। अतीक़ अहमद का प्रकरण इसी की एक बानगी है। भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI) आम मेहनतकश जनता को आगाह करना चाहती है कि अपनी बढ़ती हुई अलोकप्रियता के चलते चुनावी हार को सामने आता देख फ़ासीवादी भाजपा सरकार फिर कोई बड़ा दंगा भड़काने या फिर कोई पुलवामा जैसी अन्धराष्ट्रवादी साज़िशों को अंजाम देने की पुरज़ोर कोशिशें कर सकती है। जनता को ऐसे फ़ासीवादी साज़िशों के ख़िलाफ़ अभी से ही सचेत और सावधान रहने की ज़रूरत है।