हम कागज़ नहीं दिखायेंगे! – मोदी सरकार की फ़ासीवादी नीतियों का पूर्ण बहिष्कार करो!

राष्ट्रीय जनसँख्या रजिस्टर (एनपीआर/NPR) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी/NRC) के लिए
हम कागज़ नहीं दिखायेंगे!
मोदी सरकार की फ़ासीवादी नीतियों का पूर्ण बहिष्कार करो!

जनविरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ सविनय अवज्ञा आन्दोलन खड़ा करो!!

भाइयो, बहनो और साथियो!
हमारा देश इस समय अभूतपूर्व संकट के दौर से गुजर रहा है। आज़ादी के बाद से देश की जनता ने मोदी राज से खतरनाक दिन कभी नहीं देेेखे। बेरोज़गारी, देशी-विदेशी धन्नासेठों की लूट, आसमान छूती महँगाई और पुुलिसिया दमन के सारे पुराने रिकॉर्ड ध्वस्त हो रहे हैं। 2008 से लगातार जारी आर्थिक मन्दी भयंकर रूप धारण कर चुकी है। करोड़ों लोगों के रोज़गार छीने जा चुके हैं और करोड़ों के रोज़गार अभी छीने जाने हैं। औद्योगिक उत्पादन पहले ही क्षमता से काफ़ी कम हो पा रहा था अब तो धड़ाधड़ मज़दूरों की छटनी और फैक्ट्रियों की तालाबन्दी हो रही है। आर्थिक मन्दी का असली कारण पूँजीवादी उत्पादन की अनियोजित गति और पूँजीपतियों के मुनाफ़े की गिरती दर है लेकिन इसका खामियाज़ा सरकारी खजाने को पूँजीपतियों पर लुटाकर, सार्वजनिक उद्यमों को औने-पौने दामों में बेचकर और लोगों पर करों का पहाड़ लादकर जनता से वसूला जा रहा है। आज हमारे सामने उपस्थित तमाम समस्याओं का असली कारण निजी मालिकाने पर आधारित पूँजीवादी व्यवस्था है। इस व्यवस्था में मालिक वर्ग के लिए बस उसका मुनाफ़ा बचा रहे फ़िर चाहे अस्पतालों में बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी से बच्चे दम तोड़ते रहें, मुनाफ़े की हवस तले पिसकर मज़दूर मरते रहें, असहायता में ग़रीब किसान मौत का शिकार होते रहें, युद्धोन्माद भड़काये जाने के कारण सीमाओं पर जवान जान देते रहें और बेरोज़गारी के चलते पढ़े-लिखे युवा आत्महत्या करते रहें।

बढ़ते शोषण-उत्पीड़न के कारण जनता के असली दुश्मन के तौर पर पूँजीवादी निज़ाम और रक्तचूसक पूँजीवादी जमात को पहचानना कोई मुश्किल काम नहीं होता है और लोग इनकी असलियत समझने भी लगते हैं किन्तु इसी समय पूँजीपति वर्ग फ़ासीवाद के रूप में जंजीर में बन्धे अपने कटखने कुत्ते को जनता के ऊपर छोड़ देता है। फ़ासीवादी संगठन व फ़ासीवादी सरकार जनता के ही अलग-अलग हिस्सों/समुदायों को जनता का दुश्मन ठहरा देते हैं। ये अपने झूठे प्रचार और षडयन्त्रों के द्वारा साम्प्रदायिक कट्टरता, फूट, झगड़ों-दंगों को भड़काकर बर्बादी और फूटपरस्ती का ऐसा ताण्डव रचते हैं कि शिक्षा, रोज़गार, चिकित्सा, आवास जैसे बुनियादी मुद्दे पीछे छूट जाते हैं। असल में तो जनतान्त्रिक पूँजीवादी व्यवस्था भी पूँजीपति वर्ग की तानाशाही ही होती है किन्तु फ़ासीवाद पूँजी की नंगी तानाशाही होता है। यह जनता को मौत और बर्बादी की खाई में ही धकेल देता है। आज हमारे देश में भी मोदी-शाह के नेतृत्व में भाजपा सरकार जनता की बर्बादी का यही फ़ासीवादी एजेण्डा लागू करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाये हुए है।

*सीएए, एनआरसी और एनपीआर क्या हैं?*

सीएए (नागरिकता संशोधन क़ानून), एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर) और एनपीआर (राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर) के मुद्दे पर सरकार में बैठे लोग, भाजपा का आईटी सेल और दलाल गोदी मीडिया झूठों की दुकान सजाये हुए हैं। इनकी बातों पर कत्तई यकीन न करें। असली बात आपको हम बताते हैं।

भाजपा कहती है कि सीएए क़ानून के द्वारा पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान और बांग्लादेश से धार्मिक उत्पीड़न के शिकार होकर आये अल्पसंख्यक हिन्दू, सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई, पारसी लोगों को नागरिकता दी जा सकेगी। मुस्लिमों, नास्तिकों, यहूदियों तथा और भी अन्य मान्यताओं को मानने वालों को सरकार ने इस दायरे से बाहर रखा है। संघ-भाजपा का फ़ासीवादी प्रचार लम्बे समय से मुस्लिमों को घुसपैठिये के तौर पर दर्शाता रहा है लेकिन असम में लागू हुई एनआरसी की अन्तिम सूची के अनुसार करीब 19 लाख लोग नागरिकता साबित नहीं कर पाये, आपको यह जानकार ताज्जुब होगा कि इनमें करीब 13 लाख आबादी हिन्दू है! इसी स्थिति में भाजपा सीएए कानून लेकर आयी है ताकि खासकर मुस्लिमों को छोड़कर अन्यों जिनमें ज़्यादातर हिन्दुओं को नागरिकता देकर हिन्दू मुक्तिदाता की छवि को चमकाया जा सके। यह कानून भारतीय संविधान के थोड़े बहुत भी जनवादी स्वरूप के विरूद्ध है तथा यह मानवाधिकारों के भी विरुद्ध है। भाजपा का कहना है कि इस क़ानून से पड़ोसी मुल्क़ों के अल्पसंख्यक समुदायों को सुरक्षा दी जायेगी जबकि असलियत यह है कि यह सरकार अपने ही देश के अल्पसंख्यकों का बर्बर दमन-उत्पीड़न करने वाले तत्वों के विरुद्ध कार्रवाई करना तो दूर उल्टा उन्हें बढ़ावा देती रही है।

एनआरसी के बारे में सरकार कहती है कि देश से अवैध घुसपैठियों को निकालने के लिए एनआरसी ज़रूरी है। असम में हुए एनआरसी के प्रयोग का अनुभव सरकार की मंशा को नंगा कर देता है। एक छोटे से राज्य असम में 1,600 करोड़ रुपये खर्च हुए, चार साल का समय लगा, 52,000 कर्मचारी इस काम में जुटे रहे और हाथ क्या आया? कुल 19 लाख लोग अन्तिम सूची से बाहर और इनमें से भी बहुत सारे ऐसे जिनके रिश्तेदार सूची में शामिल लेकिन वे खुद बाहर। इस दौरान करीब 100 लोगों की मौत हो गयी। गरीब लोगों ने कागजों के लिए दफ्तरों के चक्कर लगाने में अपने काम-धन्धे छोड़े, रिश्वतें दी और अनगिनत तकलीफ़ें झेली। पूर्व राष्ट्रपति, पूर्व मुख्यमन्त्री के रिश्तेदार और फौज-पुलिस में लगे हुए सैकड़ों लोग अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाये। इस समय बहुत सारे लोग डिटेन्शन कैंपों रूपी जेलों में सड़ रहे हैं। यदि पहुँच वाले लोगों के साथ ही दिक्कत हो सकती है तो फिर हम और आप किस खेत की मूली हैं? एनआरसी की भयावहता को समझने के लिए जब असम का अनुभव हमारे सामने है तब भी नोटबन्दी से भी हज़ारों गुणा तकलीफ़देह इस पागलपन को सरकार देश की जनता पर थोपने पर उतारू है। क्या देश के करोड़ों गरीब लोग जिन्हें दो जून की रोटी के ही लाले पड़े होते हैं वे अपने पुराने दस्तावेज़ सम्हालकर रख सकते हैं? यह कल्पना नहीं होगी कि आपके परिवार के कुछ सदस्यों का नागरिकता रजिस्टर में नाम आ जाये तथा कुछ को इससे बाहर करके डिटेन्शन कैंपों में डाल कर सड़ा दिया जाये और उनसे कारखानों में गुलामों की तरह काम करवाया जाये। सरकार बहुत जल्द ही ग़रीब-विरोधी और जन-विरोधी एनआरसी लाने वाली है। और एनआरसी का पहला आधार होगा एनपीआर जिसके लिए भाजपा 3,941 करोड़ 35 लाख का बजट आबण्टित कर चुकी है। एनपीआर का पायलेट प्रोजेक्ट हो चुका है तथा भाजपा का इसे आने वाले मूर्ख दिवस यानी 1 अप्रैल को लोगों पर थोप देने का इरादा है।

प्रधानमन्त्री मोदी और गृहमन्त्री अमित शाह के लाख झूठ बोलने और बयान बदलने के बावजूद यह तय बात है कि एनपीआर की ही अगली कड़ी एनआरसी है। रावण रूपी भाजपा के अलग-अलग मुँह एनपीआर और एनआरसी पर झूठों के खूब पकोड़े तल रहे हैं लेकिन खुद मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में एनपीआर और एनआरसी के बीच के सम्बन्धों का नौ बार ज़िक्र किया गया था। यही नहीं, भाजपा के नेतागणों के पुराने बयान भी इनके झूठ का पर्दाफाश करते हैं। एनपीआर सबसे पहले वाजपेयी सरकार में तब अस्तित्व में आयी जब नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन कर ‘अवैध प्रवासी’ की नयी श्रेणी जोड़ी गयी थी। 10 दिसम्बर 2003 को गृह मन्त्रालय की ओर से जारी किए गये पत्र से साफ़ है कि एनपीआर एनआरसी का आधार है। यह अलग बात है की एनपीआर पहली बार 2010 में बनाया गया व फ़िर 2015 में अपडेट किया गया। एनपीआर में भले ही किसी को काग़ज़ात दिखा कर अपनी नागरिकता साबित न करनी पड़े, लेकिन एनपीआर के लिए इकट्ठी की गयी सूचनाओं को देखने अधिकारी/कर्मचारी आपको सन्दिग्ध चिन्हित करने की पूरी आज़ादी रखेंगे। एनपीआर में चिन्हित होने की हालत में आपसे पूछताछ और सत्यापन की प्रक्रिया चलाई जायेगी। कहना नहीं होगा कि असल में गरीब जनता के लिए बन्दीगृहों और यातनागृहों का रास्ता एनपीआर से ही होकर जाता है।

एक था हिटलर और एक था मुसोलिनी!

मानव इतिहास हमें बहुत से सबक देता है जिन्हें हमें बेहतर भविष्य के लिए याद रखना होता है। एक समय जर्मनी में हिटलर का राज़ था। अर्थव्यवस्था तबाह होने और लोगों की मूलभूत ज़रूरतें पूरी करने में नाकाम हिटलर सरकार ने जर्मनी में यहूदियों को हर चीज़ का जिम्मेदार ठहराया और उन्हें निशाना बनाकर मौत के घाट उतारना शुरू कर दिया था। इस नफरती आँधी में कोई नहीं बचा। आगे चलकर उसकी नाज़ी सरकार ने मज़दूरों, जनता को जागरूक करने वाले कम्युनिस्टों, राजनीतिक बन्दियों, विकलांगों, बुजुर्गों, बीमारों तक को अपना शिकार बनाया। फूट-झूठ और लूट की आँधी में करीब एक करोड़ 20 लाख लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। यही काम मुसोलिनी की फ़ासीवादी पार्टी ने इटली में किया।

एनपीआर और एनआरसी का करो जन-बहिष्कार!
शान्तिपूर्ण नागरिक अवज्ञा हमारा जन्मसिद्ध अधिकार!

दोस्तो! देशभर में सीएए, एनआरसी और एनपीआर का शान्तिपूर्ण ढंग से विरोध हो रहा है। सत्ता की लाठी-गोली का भी जवाब लोग बेहद एकजुटता और रचनात्मकता के साथ दे रहे हैं। गलियाँ-सड़कें, नुक्कड़-चौराहे और विश्वविद्यालय-कॉलेज गीतों और नारों से गूँज रहे हैं। हमारे देश में शान्तिपूर्ण नागरिक अवज्ञा का गौरवशाली इतिहास रहा है। सरकारें यदि जनता पर जनविरोधी नीतियाँ थोपने के लिए हठधर्मिता पर उतर आयें तो ऐसी नीतियों का सामूहिक जन-बहिष्कार करना हमारा कर्त्तव्य बन जाता है। इसलिए एनपीआर और एनआरसी के लिए कोई भी कागज़ ना दिखायें।

यदि हमें अशफ़ाक-बिस्मिल, आज़ाद-भगतसिंह के अपने प्यारे देश को बर्बाद होने से बचाना है; यदि हमें अपने साथी देशवासियों को यातनागृहों में मरते हुए नहीं देखना है तो हमें संघ परिवार और भाजपा की नापाक हरक़तों को समझना होगा। हमें इनकी नफ़रती आँधी के सामने जन-एकजुटता का हिमालय खड़ा कर देना होगा। यदि हमने मौत के सौदागरों को कामयाब होने दिया तो आने वाली नस्लें हमें कभी माफ़ नहीं करेंगी।

हम कागज़ नहीं दिखायेंगे!

अशफ़ाक-बिस्मिल का सन्देश,
हिन्दुस्तान सबका देश!

सीएए, एनआरसी, एनपीआर मुर्दाबाद,
जनता का भाईचारा ज़िन्दाबाद!

भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI)