देश की संघर्षरत जनता के नाम एक ज़रूरी अपील
साथियो! भाइयो और बहनो!
कोरोना वायरस से पैदा होने वाली महामारी से हमारा देश और दुनिया के तमाम देश जूझ रहे हैं। अब तक दुनिया भर में इस वायरस के कारण हज़ारों मौतें हो चुकी हैं। यह एक बेहद संक्रामक और ख़तरनाक वायरस है। यह छूने से, खांसी-छींक आदि के ज़रिये फैल सकता है। इसके लक्षण कई बार दो हफ़्तों बाद नज़र आते हैं। कई लोगों को इसका संक्रमण नहीं होता है, लेकिन वे इसके वाहक बन दूसरों तक इसे पहुँचा सकते हैं। ज़ाहिर है, ऐसे में बड़े जलसों, जमावड़ों, जुटानों, जुलूसों, आदि से बचना एक मजबूरी बन जाता है। केवल सामाजिक दूरी बनाकर ही कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोका जा सकता है। जिन देशों में स्वास्थ्य व्यवस्था भारत से कहीं बेहतर है, जहाँ जनसंख्या का घनत्व और सघन बसावटें भारत से कहीं कम हैं, वहाँ भी इस वायरस ने हज़ारों जानें ले ली हैं। भारत में अगर इसका संक्रमण व्यापक तौर पर फैलता है, तो उसके नतीजों की भयावहता की केवल कल्पना ही की जा सकती है। कहने की ज़रूरत नहीं कि अगर यह महामारी हमारे देश में बड़े पैमाने पर फैली तो इसके सबसे ज़्यादा शिकार ग़रीब, मेहनतकश लोग, और तमाम ऐसे समुदाय होंगे जिनके साथ चिकित्सा और देखरेख की सेवाओं तक में भेदभाव होता है।
ऐसे में, हमारे सामने एक मुश्किल सवाल उठ खड़ा हुआ है : सीएए-एनआरसी को वापस लेने के लिए देशभर में जो धरना-प्रदर्शन चल रहे हैं, उनके बारे में क्या फ़ैसला लिया जाये? मोदी सरकार के बर्बर दमन, तमाम क़िस्म की गन्दी हरकतों, अफ़वाहों और झूठे ज़हरीले प्रचार के बावजूद हमारी बहादुर माँओं-बहनों की अगुवाई में आम अवाम ने तीन महीनों से बिना रुके इन धरनों को जारी रखा है। इनकी बदौलत ही सीएए-एनआरसी-एनपीआर का विरोध पूरे देश में संघर्ष का मुद्दा बन गया है और लाखों लोग इस आन्दोलन से जुड़े हैं।
लेकिन इन धरनों में सैकड़ों या कई बार हज़ारों की संख्या में औरतें, बच्चे, बुज़ुर्ग इकट्ठा होते हैं। यह भी साफ़ है कि सारी सावधानियाँ बरतने के बावजूद इन जगहों पर संक्रमण (इन्फ़ेक्शन) दूसरों तक फैल सकता है। मोदी सरकार ने वायरस की जाँच में जैसी आपराधिक लापरवाही बरती है, उससे यह ख़तरा और भी ज़्यादा बढ़ गया है। यह संक्रमण न सिर्फ़ इन धरना स्थलों पर फैलेगा बल्कि उनसे बाहर बसावटों, रिहाइशों तक भी जायेगा, इसकी पूरी गुंजाइश है। ऐसे किसी हालात का फ़ायदा उठाकर फ़ासिस्टों को इस आन्दोलन के ख़िलाफ़ प्रचार करने और घटिया ध्रुवीकरण का अपना खेल खेलने का एक और मौक़ा मिल जायेगा।
ऐसे में, हमें क्या करना चाहिए?
भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी के कार्यकर्ता शाहीन बाग़ सहित देश के कई राज्यों और अनेक शहरों-क़स्बों में इन धरनों में सक्रिय भागीदारी करते रहे हैं। लेकिन आज के हालात में हमारा मानना है कि हमें कुछ कठिन फ़ैसले लेने होंगे। हमें :
1) अस्थायी तौर पर इन धरनों को रोक देना चाहिए। कोरोना वायरस के ख़तरे के टलते ही हमें ये धरने दोबारा शुरू कर देने चाहिए। यदि अवाम की ताक़त हमारे साथ है, तो हम ऐसा करने में निश्चित तौर पर कामयाब होंगे।
2) जब तक कोरोना का ख़तरा टलता नहीं और जब तक हम अपने धरनों को फिर से शुरू नहीं करते, तब तक हमें संघर्ष के नये और रचनात्मक तरीक़े अपनाने चाहिए। वैसे भी, धरनों को दोबारा शुरू करने के बाद भी हमें इन नये तरीक़ों को जारी रखना होगा। जहाँ एक तरफ़ इन धरनों ने देश भर में सीएए-एनआरसी को समूची जनता के लिए एक अहम मुद्दा और संघर्ष का मसला बना दिया है, वहीं अब संघर्ष के दूसरे दौर में प्रवेश के साथ यह भी साफ़ हो चुका है कि सिर्फ़ धरना-प्रदर्शनों से आगे जाने की ज़रूरत है, क्योंकि असली काम अब यह है कि 1 अप्रैल से प्रस्तावित एनपीआर की प्रक्रिया को नाकामयाब बनाने के लिए अपनी सिविल नाफ़रमानी तहरीक यानी नागरिक अवज्ञा आन्दोलन को कामयाब बनाया जाये। इसके लिए हमें धरनों के अलावा घर-घर, गली-गली और मुहल्ले-मुहल्ले छोटी-छोटी टोलियाँ बनाकर जाना होगा, हर मज़हब की मेहनतकश जनता को समझाना होगा कि किस तरह से एनपीआर-एनआरसी मुसलमान-विरोधी नहीं बल्कि सारी जनता का विरोधी है और इसका बहिष्कार करने के लिए लोगों को तैयार करना होगा। एनपीआर-बहिष्कार समितियाँ बनानी होंगी। यह ऐसा काम है जिसे कि सीमित तौर पर, अपने आसपास छोटी टोलियों के ज़रिये और सारी सावधानियाँ बरतते हुए हम अब भी कर सकते हैं और कोरोना के ख़तरे के टलने के बाद पूरे देश में बड़े पैमाने पर इसे आगे बढ़ा सकते हैं।
3) इसके अलावा, ब्राज़ील की जनता से सीखते हुए (जिसकी उल्टी नकल मारकर फ़ासिस्ट मोदी ने भी एक दिन 5 मिनट ताली-थाली बजाने को कहा है!), हमें हर रोज़ शाम को एक तय समय पर (यह समय शाम के 7 बजे से 7:30 बजे तक हो सकता है) अपनी छतों और बालकनियों से मोदी सरकार के विरोध में तालियाँ, थालियाँ बजानी चाहिए। ब्राज़ील की जनता ने अपने अर्द्धफ़ासिस्ट और दक्षिणपन्थी राष्ट्रपति बोल्सोनारो, जो मोदी जितना ही अज्ञानी और मूर्ख है, के विरोध के लिए हाल ही में यह तरीक़ा अपनाया था। हमें भी मोदी सरकार द्वारा कोरोना वायरस से निपटने के ज़रूरी इन्तज़ाम करने के बजाय घनघोर लापरवाही से करोड़ों देशवासियों की जान जोखिम में डालने के विरोध में और साथ ही एनपीआर-एनआरसी-सीएए का विरोध करने के लिए यह तरीक़ा अपनाना चाहिए, जो ब्राज़ील की आम जनता ने अपने शासकों के विरोध में निकाला है।
इसके अलावा भी आन्दोलन को जारी रखने और लोगों तक अपनी बातों को पहुँचाने के लिए ऐसे तरीक़े अपनाये जा सकते हैं जिन्हें फ़िलहाल भीड़ इकट्ठा किये बिना चलाया जा सकता है। इस आन्दोलन के दौरान जनता ने बहुत से रचनात्मक और असरदार तरीक़े निकाले हैं।
लेकिन फ़िलहाल हमें अपने धरना-प्रदर्शनों को स्थगित कर देना चाहिए। स्थगित करने का मतलब यह क़तई नहीं है कि हमारा धरना हमेशा के लिए ख़त्म हो गया या हमारा आन्दोलन ख़त्म हो गया। इसका सिर्फ़ और सिर्फ़ यह मतलब है कि हम कोरोना वायरस की वजह से पैदा हुई आपातस्थिति का दौर गुज़रते ही इसे पहले से भी ज़्यादा ताक़त और ज़ोर-शोर के साथ शुरू करेंगे। इस बीच, हम दूसरे तरीक़ों से अपने आन्दोलन को और मोदी की फ़ासिस्ट सरकार के विरोध को जारी रखेंगे।
क्रान्तिकारी अभिवादन के साथ,
समन्वय समिति, भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी – RWPI