जेएनयू के छात्रों पर फासीवादी हमला

जेएनयू के छात्रों पर फासीवादी हमले का जवाब दो! अब सड़क पर उतरना ही विकल्प है!

साथियो!

5 जनवरी की रात को एबीवीपी, बजरंग दल और आरएसएस की फासिस्‍ट टोली ने पुलिसिया संरक्षण में जेएनयू के अन्‍दर घुसकर छात्रों को मारा। न सिर्फ जेएनयू के छात्र-छात्राओं पर हमला किया गया बल्कि अध्‍यापकों पर भी लोहे की रोड़ और डण्‍डों से वार किया गया। छात्राओं के हॉस्‍टल में एसिड से हमला किया गया और लड़कियों को कमरों में घुसकर पीटा गया। एएमयू और जामिया में छात्रों पर आंसू गैस के गोले और स्‍टेन गन दागने वाली पुलिस जेएनयू में छात्रों पर एसिड हमले और अध्‍यापकों पर 2 घण्‍टे तक लोहे की रोड़ से हमला होने पर मौन रहती है। इस हमले के दौरान कैम्‍पस में और आसपास स्‍ट्रीट लाइट भगा दी जाती है। छात्रों के लिए आई एम्‍बुलेन्‍स पर फासिस्‍टों की टोली ने पुलिस के सामने पत्‍थर से हमला किया। छात्रों पर हमले के खिलाफ़ प्रदर्शन करने आए योगेन्‍द्र यादव व अन्‍य लोगों पर हमला किया गया, पत्रकारों पर हमले हुए और पुलिस खड़ी देखती रही। साफ़ है कि यह हमला राज्‍य प्रायोजित था क्‍योंकि बिना पुलिसिया मदद के इस साजिश को अंजाम नहीं दिया जा सकता था। तमाम वाट्सएप्‍प ग्रुप पर वार्ताएं पुख्‍ता कर रही हैं कि यह हमला एबीवीपी और आरएसएस के द्वारा ही पुलिसिया संरक्षण में अंजाम दिया गया है। इस हमले का हमें मुंह तोड़ जवाब देना होगा और फासीवादी ताकतों के खिलाफ़ निर्णायक संघर्ष छेड़ देना होगा। अगर हमने अभी जवाब नहीं दिया तो फासीवादी अपने मंसूबों में कामयाब हो जाएंगे और इस देश को नाजी जर्मनी और फासीवादी इटली के मुकाम पर ला खड़ा करेंगे। जर्मनी में भी पूरे देश को यातना गृह बनाने से पहले फासीवादी ब्रिगेडों ने राज्‍य के संरक्षण में अल्‍पसंख्‍यकों पर बड़े हमले आयोजित किए थे जिनका प्रतिरोध नहीं हो सका था। जर्मनी में नाइट ऑफ ब्रॉकन ग्‍लासेज़, टूटे शीशों की रात इसका उदाहरण है तो इटली में तूरीन नरसंहार के जरिए फासीवादियों ने अपने विरोधियों पर हमले किए थे और पूरे जर्मनी और इटली में विरोध की हर आवाज़ का गला घोंट दिया था। मोदी सरकार एक-एक करके बचे-खुचे जनवादी अधिकारों को कुचलते हुए खुली तानाशही लागू करने की तरफ बढ़ रही है। सीएए-एनआरसी-एनपीआर के खिलाफ़ चल रहे आंदोलन से बौखलाए फासीवादी दमन चक्र को पूरी तरह अमल में लाने के लिए तैयार बैठे हैं। इस आंदोलन का कुचलने के प्रयास में पहले ही दर्जनों लोगों की जान जा चुकी है और हजारों लोग गिरफ्तार हो चुके हैं परन्‍तु यह आंदोलन अभी तक नहीं रुका है। वहीं जेएनयू के छात्र पिछले 73 दिन से लड़ रहे हैं और फीस वृद्धि के खिलाफ़ आंदोलन को डट कर लड़ रहे हैं परन्‍तु यहां भी सरकार छात्रों को झुकाने में असफल रही है। इसलिए अब सरकार अपनी गुण्‍डा ब्रिगेड़ की राज्‍य प्रायोजित हिंसा के जरिए जनआंदोलनों को तोड़ना चाहती है।

फीस वृद्धि का विरोध करने वालों, रोज़गार मांगने वालों, रोटी मांगने वालों सभी पर टूटेगा कह़र!

नहीं इस मुगालते में कतई न रहें कि इस हमले की आंच आप तक नहीं आएगी। आर्थिक मन्‍दी में डूबी अर्थव्‍यवस्‍था को उबारने के लिए जनता को खून की दलदल में डूबोकर पूंजीपतियों का मुनाफा बचाना फासीवाद की बर्बरता के पीछे छिपा मकसद है। एक तरफ़ एनआसी और एनपीआर के जरिए जनता को साम्‍प्रदायिक आधार पर बांटने का कानून पारित किया जा रहा है। यह कानून गरीबों को करोड़ों की संख्‍या में सस्‍ते श्रम पर खटने वाले गुलामों की फौज में तब्‍दील कर देगा जो डिटेनशन सेंटर में कैदी बन या दोयम दर्जे का नागरिक बन खटेगी। तो दूसरी तरफ़ इस काले कानून के खिलाफ़ उठ खड़े हुए आंदोलन की अग्रिम कतारों पर खड़ी छात्र आबादी पर फासीवादी सरकार ने लाठी गोली बरसायी हैं। मज़दूरों के श्रम कानूनों पर हमले पहले ही जारी हैं और मज़दूरों के आंदोलनों को देश भर में पुलिसिया दमन का सामना करना पड़ रहा है। यह दमन बढ़ने ही वाला है। आप चाहे नौकरी की तलाश कर रहे हों, पढ़ाई कर रहे हों या मज़दूरी कर रहें हों सरकार के खिलाफ़ बात की तो आप सभी फासीवादी गुण्‍डा वाहिनियों के निशाने पर आएंगे। अल्‍पसंख्‍यक, छात्रों, मज़दूरों के बाद आप भी निशाने पर आएंगे। यह चौतरफा हमला तब तक यूं चलता रहेगा जब तक हम मिलकर लड़ते नहीं हैं और जीतते नहीं हैं। इसके अलावा कोई रास्‍ता बचा ही नहीं है। आज देश की हर उस ताकत को एक होना होगा जो फासीवाद के खिलाफ खड़ी है वरना कल बहुत देर हो जाएगी।

अंधकार का युग बीतेगा! जो लड़ेगा वो जीतेगा!!

भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI)