मनमाने तरीक़े से धारा 370 को ख़त्म करना कश्मीर की जनता के साथ ऐतिहासिक विश्वासघात — RWPI
भाजपा सरकार के निरंकुश क़दम से कश्मीर में ऐसी आग लगायी जा रही है जो कालान्तर में पूरे देश को प्रभावित करेगी
भारतीय जनता पार्टी सरकार द्वारा कश्मीर में धारा 370 समाप्त करने तथा जम्मू-कश्मीर को दो टुकड़ों में बाँटने के घनघोर निरंकुश और तानाशाहाना क़दम की भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI) कठोरतम शब्दों में भर्त्सना करती है। RWPI आगाह करती है कि भाजपा सरकार द्वारा मनमाने ढंग से उठाये इस क़दम से कश्मीर घाटी में ऐसी आग लगायी जा रही है जो कालान्तर में पूरे देश को प्रभावित करेगी।
RWPI सभी संघटक राष्ट्रों की स्वेच्छा के आधार पर अधिकतम संभव बड़े राज्य के गठन की समर्थक है और कश्मीर के अलग होने की चाहत नहीं रखती है। लेकिन प्रश्न किसी के चाहने या ना चाहने का नहीं है। यह तय करना कश्मीरियों का हक़ है कि उनकी नियति क्या हो इसलिए उन्हें आत्मनिर्णय का अधिकार मिलना चाहिए। मनमाने तरीक़े से धारा 370 को ख़त्म करके कश्मीर की जनता के साथ ऐतिहासिक विश्वासघात किया गया है। जम्मू-कश्मीर के विशेष राज्य के दर्जे को ख़त्म कर जम्मू-कश्मीर को दिल्ली व पुदुचेरी की तरह अधूरे अधिकारों वाली विधानसभा के साथ और लद्दाख को चण्डीगढ़ जैसे विधानसभा रहित केन्द्र-शासित प्रदेशों में बदल दिया गया है। इसका अर्थ यह है कि वहाँ पर सीधे केन्द्र का शासन होगा जो आम अवाम के अलगाव को और बढ़ायेगा तथा नाके-नाके पर सेना की तैनाती के ज़ोर पर ही यह शासन चल सकेगा। इतिहास बताता है कि सेना के बूते पर किसी छोटे-से इलाक़े की भी पूरी आबादी को लम्बे समय तक दबा-कुचल कर नहीं रखा जा सकता। कश्मीर भी इसका अपवाद नहीं होगा।
इस क़दम के ज़रिए भाजपा और संघ परिवार पूरे देश में धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण को तेज़ करेंगे और धार्मिक अल्पसंख्यकों के अलगाव को और बढ़ायेंगे और इसी जुनून की आड़ में अपनी सरकार की नाकामियों को छिपाने के लिए पूरा ज़ोर लगा देंगे। कश्मीर मसले से पाकिस्तान के जुड़े होने के कारण यह एक ऐसा मसला है जिसका इस्तेमाल करके धार्मिक जुनून भड़काने के साथ ही पाकिस्तान-विरोधी अन्ध राष्ट्रवाद की लहर उभारने की मुहिम भी ज़ोर-शोर से चलायी जायेगी।
ग़ौरतलब है कि पाकिस्तान का शासक वर्ग भी इस समय गम्भीर संकट और आन्तरिक अन्तरविरोधों का शिकार है और उसे भी इस तनाव की उतनी ही ज़रूरत है जितनी भारत के शासक वर्गों को है। कश्मीर का मसला दोनों देशों के शासक वर्गों के लिए अपने संकटों को टालने और बुनियादी मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए काम आता रहा है। और इसके लिए कश्मीर के अवाम के हितों की बलि बार-बार चढ़ाई जाती रही है।
धारा 370 को ख़त्म करके कश्मीर की जनता के साथ फिर ऐतिहासिक विश्वासघात किया गया है। 1947 के बँटवारे के समय कश्मीर की जनता ने जिन्ना की राजनीति और कश्मीर के तत्कालीन राजा की साज़िशों को दरकिनार करके सेकुलरिज़्म की राजनीति का पक्ष लिया था। कबायलियों के हमले के समय की विशेष परिस्थितियों में एक प्रॉविज़नल व्यवस्था के तहत कश्मीर का भारत के साथ विलय हुआ था जिसमें उसका अपना अलग संविधान और झण्डा भी था और उसे विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त था। इस विशेष स्थिति को धारा 370 प्रकट करती थी और भारत के साथ कश्मीर के रिश्तों को परिभाषित करती थी। धारा 370 को रद्द करने के साथ ही कश्मीर का वह संविधान भी अपनेआप ही रद्द हो गया और धारा 35ए भी अपने आप ही निष्प्रभावी हो जायेगी। धारा 370 को एकतरफ़ा ढंग से रद्द करने के साथ ही सैद्धांतिक तौर पर कश्मीर का भारतीय संघ में एकीकरण भी निष्प्रभावी हो जाता है। 26 अक्तूबर 1947 को जिस ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन’ पर हस्ताक्षर के ज़रिए कश्मीर का विलय हुआ था उसमें कश्मीरी अवाम के साथ किये गये वायदों को भारतीय राज्य ने कभी पूरा नहीं किया और आज भाजपा सरकार ने घनघोर निरंकुश तरीक़े से उसे ख़ारिज कर दिया। न तो इसके लिए कश्मीर की जनता की सहमति ली गयी और न ही शेष भारतीय जनता के साथ व्यापक संवाद और सहमति क़ायम करने की कोशिश की गयी। कश्मीर घाटी की मुस्लिम आबादी को अलग-थलग करने के साथ ही इस निरंकुश क़दम का दूसरा प्रभाव यह होगा कि जम्मू और लद्दाख के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में रहने वाली आबादी का भी अलगाव बढ़ेगा। सेना का दमन जितना बढ़ेगा, हताशा और दिशाहीनता के माहौल में उस पूरे क्षेत्र में आतंकवाद को और बढ़ावा मिलेगा जिसका ख़ामियाजा कश्मीरी अवाम के साथ ही पूरे देश की जनता को भी भुगतना होगा। घाटी से विस्थापित कश्मीरी पंडित परिवारों की वापसी का रास्ता भी इस क़दम के बाद और कठिन हो जायेगा।
इसके साथ ही साम्राज्यवादी शक्तियों को भारतीय उपमहाद्वीप में हस्तक्षेप करने और दोनों देश के बीच तनाव की आँच पर अपनी रोटियाँ सेंकने का मौक़ा मिल जायेगा। हथियारों की होड़ और सैन्य ख़र्च में भारी बढ़ोत्तरी के कारण संकट से चरमराती अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाला बोझ भी आम जनता की टूटी कमर पर ही पड़ेगा।
अब यह बात बिल्कुल उजागर हो चुकी है कि आर्थिक मन्दी चरम रूप में है और अर्थव्यवस्था ध्वस्त होने के कगार पर पहुँच चुकी है। आज़ाद भारत के गम्भीरतम आर्थिक संकट का असर भयंकर बेरोज़गारी और उत्पादक गतिविधियों के ठहराव के रूप में सामने दिख रहा है और आने वाले समय में इस संकट का कहर भीषण रूप में आम जनता पर टूटेगा। देशी-विदेशी पूँजी की सेवा में इस सरकार का हर क़दम संकट को और गम्भीर बना रहा है। ऐसे में इस सरकार के पास धार्मिक ध्रुवीकरण करने, अन्धराष्ट्रवाद भड़काने और युद्ध का माहौल पैदा करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है। आने वाले कुछ महीनों के भीतर कई राज्यों में विधानसभा चुनाव भी होने हैं और मोदी सरकार अंधराष्ट्रवाद की लहर पर सवार होकर इन विधानसभा चुनावों में वोटों की फसल काटने की कोशिश भी कर रही है। कश्मीर में अचानक उठाये गये इस निरंकुश क़दम के पीछे यही बदहवासी है जिसके चलते पूरे उपमहाद्वीप की जनता को एक भयंकर उथल-पुथल की ओर धकेल दिया गया है।
RWPI का मानना है कि अब इस देश के आम अवाम और क्रान्तिकारी वाम शक्तियों पर यह ज़िम्मेदारी है कि वे पूरे देश में गृहयुद्ध जैसी स्थिति पैदा होने और कश्मीरी जनता के दमन को रोकने के लिए एकजुट होकर आवाज़ उठायें। जनता को फ़ासिस्ट प्रचार के प्रभाव में आने से रोकने के लिए सभी प्रगतिशील-जनवादी शक्तियों को व्यापक जनता के बीच जाकर हिन्दुत्ववादी फ़ासिस्टों के इस बेहद ख़तरनाक षड्यंत्र की असलियत उजागर करनी होगी। साथ ही, हमें कश्मीरी लोगों तथा धार्मिक अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ किसी भी तरह की हिंसा और दुष्प्रचार को नाकाम करने के लिए सचेत और सक्रिय रहना होगा।