इलेक्टोरल बॉण्ड का महाघोटाला: एक बार फिर भाजपा का “चाल-चेहरा-चरित्र” आया सामने!

इलेक्टोरल बॉण्ड का महाघोटाला: एक बार फिर भाजपा का “चाल-चेहरा-चरित्र” आया सामने!

भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI) द्वारा जारी

इलेक्टोरल बॉण्ड महाघोटाले के सामने आने के बाद रामनामी दुपट्टा ओढ़े, “मन्दिर-मन्दिर” चिल्लाते, और “नैतिकता” और “चाल-चेहरा-चरित्र” की डुगडुगी बजाते घूम रहे मोदी-शाह, भाजपा और संघ परिवार की असलियत एक बार फिर सामने आ गयी। यह दिन के उजाले की तरह साफ़ हो गया कि भाजपा-संघ विशालकाय फ़ासीवादी फिरौती गिरोह है।

सुप्रीम कोर्ट के स्‍पष्‍ट आदेशों के बावजूद सूचना छिपाने का बार-बार प्रयास करने और डाँट खाने के बाद मोदी सरकार के इशारों पर काम करने वाले स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया को इलेक्टोरल बॉण्ड की कुछ सूचनाएँ उजागर करनी पड़ी। मोदी के ही इशारों पर काम करने वाले चुनाव आयोग ने भी इस देरी को अंजाम देने में पूरा साथ दिया। सुप्रीम कोर्ट को ऐसा इसलिए करना पड़ा क्योंकि अगर सुप्रीम कोर्ट व्यवस्था के दूरदर्शी पहरेदार के समान इस निपट नंगे भ्रष्टाचार को जारी रहने देता, तो उसकी स्वीकार्यता और वर्चस्व ही ख़तरे में पड़ जाता जो कि आम तौर पर पूँजीवादी व्यवस्था के भविष्य के लिए अच्छी बात नहीं होती। यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर हस्तक्षेप किया। हालाँकि अन्य कई मसलों पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा सीधे हस्तक्षेप न किया जाना बहुत-से सवाल खड़े करता है: मसलन, मोदी सरकार द्वारा आनन-फ़ानन में दो चुनाव आयुक्तों की चुनाव से ठीक पहले नियुक्ति, ईवीएम का मसला, इत्यादि। अप्रैल 2019 से 15 फ़रवरी 2024 तक ख़रीदे गये चुनावी बॉण्डों की सूचना एस.बी.आई. ने जारी की है, जिसके अनुसार इस अवधि में कुल 12,516 करोड़ रुपये के चुनावी बॉण्ड ख़रीदे गये और इसके ज़रिये चुनावी पार्टियों को चन्दा दिया गया। इसका आधा अकेले रामभक्त मोदी जी और उनके हनुमान अमित शाह की पार्टी भाजपा को गया है।

आइए इस महाघोटाले के बारे में जानने से पहले यह जान लेते हैं कि इलेक्टोरल बॉण्ड को मोदीजी क्यों लेकर आये थे!

इलेक्टोरल बॉण्ड पूँजीपतियों से चन्दा लेने और आना-कानी करने पर चन्दा ऐठने और बदले में उन्हें हज़ारों करोड़ के ठेके देने, टैक्स माफ़ी देने का एक उपकरण है, जिसका मोदी-शाह की जोड़ी ने अपनी तानाशाह किस्म की सरकार को क़ायम रखने के लिए इस्तेमाल किया है। ऊपर से इसमें यह फ़ायदा है कि इस पूरी व्यवस्था को अपारदर्शी बनाकर भाजपा यह छिपा सकती थी कि वह किस प्रकार देश के धनी पूँजीपतियों, व्यापारियों, कुलकों-फार्मरों, दलालों, प्रॉपर्टी डीलरों, ट्राँसपोर्टरों की पार्टी है, उन्हीं के चन्दे पर इनका ‘कमल’ फूलता है और उन्हीं को मुनाफ़ाखोरी का वह मौका देती है। साथ ही इसके ज़रिये कालाबाज़ारू पूँजीपतियों ने अपने लाखों-करोड़ों के काले धन को सफ़ेदधन में तब्दील किया है। मिसाल के तौर पर, एक कम्पनी का कुल शुद्ध मुनाफ़ा ही 2 करोड़ रुपये से कम था, लेकिन उसने 180 करोड़ रुपये से ज़्यादा के चुनावी बॉण्ड ख़रीदे!

भाजपा को कुल इलेक्टोरल बॉण्ड से आने वाले फ़ण्ड का लगभग 55 फ़ीसदी मिला। कांग्रेस को लगभग 13, तृणमूल कांग्रेस को लगभग 11, भारत राष्ट्र समिति को लगभग 10, बीजू जनता दल को लगभग 6, द्रमुक को 5, वाईएसआर कांग्रेस को लगभग 3 और तेलुगु देशम को लगभग 2 प्रतिशत मिला है। कुल 11,450 करोड़ रुपये के चुनावी बॉण्ड में से 6,566 करोड़ भाजपा को, 1123 करोड़ रुपये कांग्रेस को, 1093 करोड़ तृणमूल कांग्रेस को, 774 करोड़ बीजू जनता दल को मिले। स्पष्ट है, भारत के पूँजीपति वर्ग की सबसे चहेती पार्टी भाजपा और सबसे चहेता नेता मोदी है। अब आप स्वयं समझ लें कि जो पूँजीपतियों का सबसे चहेता हो, क्या वह मज़दूरों-मेहनतकशों, आम मध्यवर्गीय लोगों, आम छात्रों-युवाओ के हितों के लिए कुछ कर सकता है? भाजपा के साथ-साथ पूँजीपतियों ने अन्य चुनावबाज़ पार्टियों को भी चन्दा दिया ताकि अगर सत्ता में अन्य पार्टियाँ भी पहुँचती है, तब भी सेवा उन्हीं की करे।

इलेक्टोरल बॉण्ड में सबसे ज़्यादा फ़ण्ड फ्यूचर गेमिंग होटल सर्विसेज़ एण्ड प्रा. लि. कम्पनी ने दिया है। इस कम्पनी ने भाजपा को क़रीब 1,368 करोड़ रुपये दिये हैं। इस कम्पनी के ऊपर भी ईडी व आयकर विभाग के मुक़दमे चल ही रहे थे, तभी चार्ल्स होसे मार्टिन (कम्पनी के मालिक साण्टियागो मार्टिन का बेटा) भाजपा में शामिल हो गया। हाल ही में उसने अन्य लॉटरी पूँजीपतियों के साथ मोदी की वित्त मन्त्री निर्मला सीतारमण से मुलाकात की और फिर अचानक मोदी सरकार ने लॉटरी पर जीएसटी घटा दी। इसी तरह मेघा इंजी. एण्ड इंफ्रा. ली. ने 966 करोड़ का चन्दा दिया। यह कम्पनी तेलंगाना में सिंचाई के लिए बनाये जा रहे कालेश्वरम प्रोजेक्ट में करोड़ों रुपये के घोटाले में फँसी कुख्यात कम्पनी है। इसने प्रोजेक्ट की क़ीमत को बढ़ा-चढ़ाकर हज़ारों करोड़ (38,000 करोड़!) का चूना लगाया है। हर जगह भाजपा की राज्य सरकारों ने इस कम्पनी को भी ख़ूब फ़ायदा पहुँचाया और साथ ही केन्द्र की मोदी सरकार ने भी इस कम्पनी को पर्याप्त लाभ पहुँचाया। जिन 30 कम्पनियों ने सबसे ज़्यादा चुनावी बॉण्ड ख़रीदे उनमें से 14 कम्पनियों पर सीधे-सीधे छापे पड़ चुके थे। भाजपा को चन्दा देने के बाद ये सभी कम्पनियाँ साफ़-सुथरी बन गयी और इसके बाद भाजपा ने इन सभी कम्पनियों को करोड़ों का फ़ायदा पहुँचाया।

इससे समझा जा सकता है कि नरेन्द्र मोदी हमेशा मन्दिरों की चौखटों, हवनकुण्डों के किनारे, योगा करते या ध्यान लगाते टीवी पर क्यों पेश किये जाते हैं? ताकि आप कोई सवाल ही न पूछ पायें। इतना भारी धर्मध्वजाधारी ऐसे भयंकर कुकर्म और घोटाले कैसे कर सकता है? जवाब यह है कि वह इतना भारी धर्मध्वजाधारी बना इसीलिए फिरता है क्योंकि उसने इतने भारी-भरकम घपले और कुकर्म किये हैं।

इसलिए आज के दौर में फ़ासीवाद के खिलाफ़ लड़ाई और भी अहम हो जाती है क्योंकि पूँजीपति वर्ग का कोई भी शासन इतने नग्न, भ्रष्ट और सीनाजोर तरीके से आम मेहनतकश आबादी का हक़ नहीं छीनता है, जिस तरीके से फ़ासीवादी पूँजीवादी शासन छीनता है। हमें एक बात अपने दिमाग़ में बिठा लेनी चाहिए: फ़ासीवाद, यानी हमारे देश में संघ परिवार और भाजपा, आम मेहनतकश जनता के सबसे बड़े दुश्मन हैं। इनका मुकाबला कोई भी अन्य पूँजीवादी पार्टी निर्णायक रूप में नहीं कर सकती है। कोई एक चुनाव हारना और सत्ता से बाहर हो जाना फ़ासीवाद की निर्णायक हार नहीं है। इसलिए आज ज़मीनी स्तर पर वर्गीय एकजुटता बनाकर और क्रान्तिकारी पार्टी गठित करके ही इनका मुक़ाबला किया जा सकता है।