ब्लिंकिट के मनमाने तरीक़े से तनख़्वाह घटाने के ख़िलाफ़ डिलीवरी पार्टनर सड़कों पर!
आज से क़रीब दो हफ़्ते पहले ब्लिंकिट जो कि ऐप के माध्यम से राशन समेत अन्य सामानों को डिलीवरी पार्टनर्स के ज़रिए घरों तक पहुँचाने वाली कम्पनी है, ने एक नोटिस जारी किया जिसमें यह कहा गया कि डिलीवरी पार्टनर्स को अब प्रति डिलीवरी 25 रुपयों की जगह 15 रुपये का ही भुगतान किया जायेगा। दिल्ली और एनसीआर के कई क्षेत्रों में इस नोटिस के बाद डिलीवरी पार्टनर्स ने काम बन्द कर दिये। ज़ाहिरा तौर पर इतनी महँगाई में जब पहले ही डिलीवरी पार्टनरों के लिए इतने कम तनख़्वाह में घर चलाना मुश्किल होता है, तो इसके घटने पर अपना प्रतिरोध दर्ज़ कराना बिल्कुल जायज़ है। लेकिन ब्लिंकिट द्वारा पार्टनरों से बातचीत के नाम पर बार-बार इस घटे हुए तनख़्वाह को जायज़ ठहराने की कोशिश की गयी। और जब डिलीवरी पार्टनरों ने ब्लिंकिट का यह फ़रमान नामंज़ूर कर दिया तो ब्लिंकिट ने उनकी आइडी निष्क्रिय कर दी, उन्हें काम से निकाल दिया गया और दिल्ली और गुड़गाँव के कई डार्क स्टोर्स बन्द कर दिये। हालाँकि पिछले दो-तीन दिनों से ये स्टोर्स फिर से खुलने लगे हैं और डिलीवरी पार्टनर्स 15 रूपये प्रति डिलीवरी पर ही वापस काम पर लौटने लगे हैं, क्योंकि बिना तनख़्वाह के लम्बे समय तक गुज़ारा करना उनके लिए मुश्किल है।
ग़ौरतलब है कि पिछले 10 सालों में सेवा क्षेत्र (Service Sector) में अन्य क्षेत्रों के मुक़ाबले तेज़ी से वृद्धि हुई है। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के पिछले 10 वर्ष के आँकड़ों (2011-2020) के अनुसार कृषि क्षेत्र में 3.5%, उत्पादन क्षेत्र में 5.7% और सेवा क्षेत्र में 7.8% की वृद्धि हुई है। लेकिन इसके साथ ही इस क्षेत्र में काम करने वाली एक बड़ी आबादी का अतिशोषण होता है। मेट्रोपॉलिटन शहरों में एक बड़ी आबादी बिहार, यूपी, उड़ीसा और अन्य जगहों से आकर डिलीवरी पार्टनर, कैब चालक समेत अन्य काम करती है। इन लोगों को स्थायी तनख़्वाह के बजाय प्रति डिलीवरी या प्रति राइड के पैसे मिलते हैं। ब्लिंकिट की तरफ़ से इन डिलीवरी पार्टनरों को केवल 25 रुपये प्रति डिलीवरी मिलता था, जिसे घटाकर 15 रुपये कर दिया गया था। इसके अलावा इन पार्टनरों के ऊपर 10 मिनट के भीतर सामान पहुँचाने का भी दबाव होता है, जो सड़कों पर दुर्घटनाओं का कारण बनता है। अत्यधिक कामों के दबाव के समय उनपर अत्यधिक दबाव डालकर काम कराया जाता है। इन हालातों में भी काम करने के बाद उन्हें कभी भी काम के छूट जाने और इस प्रकार तनख़्वाह कम कर दिये जाने का डर होता है।
हर प्रकार की मन्दी का सबसे बड़ा और बुरा असर आम मेहनतकश आबादी को ही झेलना पड़ता है। ठेकाकरण की वजह से आज सेवा क्षेत्र समेत अन्य क्षेत्रों में भी रोज़गार की कोई गारण्टी नहीं है। इकोनॉमिक टाइम्स की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक़ स्विगी ने हाल में अपने 380 और डेंज़ो ने क़रीब 300 कर्मचारियों को ‘ले ऑफ़’ दिया है। इसके साथ ही इन कर्मचारियों के लिए श्रम क़ानून भी लागू नहीं किये जाते हैं। और सरकार इन तमाम मसलों पर खुलकर इन पूँजीपतियों और धन्नासेठों के पक्ष में न सिर्फ़ खड़ी है बल्कि उनके पक्ष में नीतियाँ भी बना रही है।
भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी यह माँग करती है कि निकाले गये कर्मचारियों को ब्लिंकिट तुरन्त वापस ले और प्रति डिलीवरी घटाये गये तनख़्वाह को तुरन्त प्रभाव में बढ़ाये। इसके अलावा उनके लिए 6 घण्टे का कार्यदिवस लागू किया जाये, उन्हें ईएसआई, पीएफ़ की सुविधाएँ दी जाये और न्यूनतम वेतन का भुगतान किया जाये। साथ ही ब्लिंकिट यह सुनिश्चित करे कि काम के दौरान कर्मचारियों पर किसी भी प्रकार का दबाव न हो।