मोदी सरकार में बेरोज़गारी दर फ़िर से नये कीर्तिमान रचते हुए।

कुछ दिनों पहले आयी सेण्टर फ़ॉर मॉनिटरिंग इण्डियन इकोनॉमी (CMIE) की रिपोर्ट के आँकड़े मोदी के “अच्छे दिनों” की हक़ीक़त पेश कर रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार भारत की बेरोज़गारी दर फ़रवरी 2023 में 7.5% से बढ़कर मार्च 2023 में 7.8% हो चुकी है। वहीं दूसरी ओर रोज़गार की दर फ़रवरी 2023 में 36.9% से घटकर मार्च 2023 में 36.7% हो गयी है। प्रतिशत में देखने पर यह गिरावट महज़ 0.2% की दिखायी देती है लेकिन 0.2% को संख्या में बदलने पर यह 22 लाख होता है, यानी कि मार्च महीने में 22 लाख लोगों का रोज़गार छिन गया। साथ ही देश में बेरोज़गारी की स्थिति इस क़दर बढ़ गयी है कि कई लोगों ने थककर काम की तलाश करना भी बन्द कर दिया है, नतीजतन देश की श्रम बल भागीदारी दर (labour force participation rate) फ़रवरी 2023 में 39.9% से गिरकर मार्च 2023 में 39.8% पर आ गयी है।

इन आँकड़ों के मद्देनज़र यह बात याद रखने की ज़रूरत है कि यह सब उस सरकार के शासन के दौरान हो रहा है जो हर साल 2 करोड़ रोज़गार देने का वायदा करते हुए सत्ता में आयी थी। लेकिन असलियत यह है कि पिछले आठ सालों के दौरान केन्द्र सरकार द्वारा दिये जाने वाले नौकरियों के लिए 22 करोड़ आवेदन दिये गये, जबकि नौकरी महज़ 7 लाख लोगों को मिली। बाक़ी कई लोग हताशा का शिकार हुए और कई नौजवान आत्महत्या करने को मजबूर हो गये। ये कुछ ही आँकड़े मोदी सरकार के रोज़गार के वायदों की हक़ीक़त बयाँ कर देते है। आज भाजपा सरकार सारे “अच्छे दिनों” के वायदे केवल अम्बानी-अडानी के लिए पूरा कर रही है, और ताकि आम जनता अपने असल मुद्दों पर बात न कर सके, इसके लिए उनके बीच धार्मिक कट्टरपन्थ फ़ैलाने का काम कर रही है। जनता इन हालतों से त्रस्त होकर अपने असली दुश्मन के ख़िलाफ़ एकजुट न हो जाये, इसलिए आज पूँजीपति वर्ग को आरएसएस-भाजपा जैसे फ़ासिस्टों की ज़रूरत होती है जो जनता के आक्रोश को नकली दुश्मन की तरफ़ मोड़ उन्हें आपस में लड़ा सके। वैसे इनका यह जनविरोधी चरित्र तो शुरू से ही रहा है।

इन्ही फ़ासिस्टों का पसन्दीदा चेहरा प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी आज जनता को शिक्षा-रोज़गार देने की बात नहीं करते, बल्कि यह सरकार बेरोज़गारी, महँगाई और लागातार बदतर हो रहे हालातों से जूझ रहे युवाओं के हाथों में तलवार-त्रिशूल देकर धर्म के नाम पर उन्हें आपस में लड़वाने का काम कर रही है। जिस तरह आज भाजपा और इनके आक़ाओं मोदी-अडानी के घोटाले सामने आ रहे हैं, इनकी विफ़लताओं की सूचि लम्बी हो रही है, उससे बचने के लिए और आने वाले 2024 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुई साम्प्रदायिक उन्माद को तेज़ी से बढ़ावा दिया जा रहा है और पुलवामा जैसी घटनाओं को अंजाम देने की पूर्ण सम्भावना है।

भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI) केन्द्र सरकार से यह माँग करती है कि फ़ौरन भगतसिंह राष्ट्रीय रोज़गार गारण्टी क़ानून पारित किया जाये, जिसके तहत हर काम करने योग्य व्यक्ति को पक्का काम मुहैया करवाया जाये, और ऐसा न कर पाने की सूरत में हर बेरोज़गार युवाओं को 10,000 रुपये बेरोज़गारी भत्ता दिया जाये। आज यह बेहद ज़रूरी है कि जनता शिक्षा, रोज़गार, चिकित्सा और आवास जैसे असली मुद्दों पर एकजुट हो और एक व्यापक जन-आन्दोलन खड़ा किया जाये ताकि आरएसएस-भाजपा की फ़ासीवादी सरकार को निर्णायक तौर पर परास्त किया जाये।