प्रधानमंत्री महोदय, देश की जनता को ताली-थाली की नौटंकी नहीं, बल्कि कोरोना वायरस महामारी से बचने के लिए वास्तविक और प्रभावी क़दम चाहिए!
हर संकट की तरह कोरोना संकट का जवाब भी नरेन्द्र मोदी की फ़ासीवादी सरकार ने एक मीडिया इवेण्ट आयोजित करके दिया है। हमेशा की तरह मोदी ने 19 मार्च को राष्ट्र के नाम सम्बोधन में अपने ‘मन की बात’ कहकर इतिश्री कर ली, जो कि हमेशा की तरह खोखली और बकवास थी। 24 घण्टे के जनता कर्फ्यू और ताली-थाली से कोरोना वायरस का ख़तरा समाप्त नहीं हो जायेगा, यह बात वैज्ञानिक दृष्टि और सामान्य जागरूकता रखने वाले सभी लोग जानते हैं। सरकार की घनघोर लापरवाही के बीच हमारा देश वायरस संक्रमण की तीसरी अवस्था में पहुँच गया है जिसके बाद अगर कोई चमत्कार नहीं हुआ तो एक विस्फ़ोटक स्थिति सामने आ सकती है और लाखों लोगों की जान ख़तरे में पड़ सकती है। दुनिया के कई देशों और विशेषज्ञों से ऐसी चेतावनी आ रही है कि यह महामारी आने वाले कई महीनों तक असर डालती रह सकती है। यह महज़ चन्द दिनों की बात नहीं है।
कोरोना वायरस से निपटने का सही रास्ता सामाजिक विलगाव तो है लेकिन पहली बात यह कि यह काफ़ी नहीं है और दूसरी बात यह कि यदि सरकार तत्काल वाजिब क़दम नहीं उठाती तो इसे लागू करने का ख़र्च उठाना सभी के लिए सम्भव नहीं है। तमाम सेलेब्रिटीज़ देश के उच्च मध्यवर्ग को ‘वर्क ऐट होम’ करने, घर में काम करने वाली घरेलू कामगारों को पगार के साथ छुट्टी देने (हालाँकि यह उनके अपने डर की वजह से ज़्यादा है) के वीडियो सन्देश दे रहे हैं।
लेकिन ज़रा सोचिए : देश के करोड़ों दिहाड़ी और ठेका मज़दूर किस प्रकार ‘लॉक आउट’ जैसी स्थिति में जियेंगे? करोड़ों घरेलू कामगार, स्वरोज़गार करने वाले मज़दूर जैसे कि रेहड़ी-खोमचा लगाने वाले, ठेला-रिक्शा खींचने वाले, ऑटो चलाने वाले, ई-रिक्शा चलाने वाले, हॉकिंग करने वाले कामगार क्या करेंगे? कारख़ाने अगर बिन-पगार छुट्टी देते हैं, तो कारख़ाना मज़दूर क्या करेंगे? करोड़ों निर्माण मज़दूर, जैसे बेलदारी करने वाले, पुताई-रंगाई करने वाले, मिस्त्री, आदि क्या करेंगे? करोड़ों खेत मज़दूर कैसे जियेंगे? ग़रीब किसान कैसे जियेंगे? यह वह आबादी है जो कि रोज़ कुआँ खोदती है और रोज़ पानी पीती है। अगर एक से दो दिन तक काम न मिले तो यह भूखों मरने के कगार पर आ जायेगी।
इसलिए सिर्फ़ सामाजिक विलगाव ही काफ़ी नहीं है, बल्कि देश के 55 करोड़ से ज़्यादा शहरी और ग्रामीण मज़दूरों और क़रीब 27 करोड़ ग़रीब व निम्न मध्यम किसानों के लिए सरकार को पोषणयुक्त भोजन, साफ़-सुथरी रिहाइश, संक्रमण के रोकथाम के लिए निशुल्क मास्क व सैनीटाइज़र, और साथ ही स्वच्छ पीने के पानी की व्यवस्था तत्काल करनी होगी। इसके अलावा, केवल बाहर से आने वाले लोगों की नहीं, बल्कि व्यापक पैमाने पर कोरोना की निशुल्क सरकारी जाँच की व्यवस्था करनी होगी, जिससे कि संक्रमण को फैलने से रोका जा सके और संक्रमित व्यक्तियों को क्वारण्टाइन किया जा सके। इस पर मोदी सरकार चुप है और एक शब्द भी नहीं बोल रही।
कोरोना संक्रमण को जो लोग साज़िश बता रहे हैं, वे मूर्ख ‘कॉन्स्पिरेसी थियोरिस्ट’ हैं, जिनका बौद्धिक स्तर केवल सस्ते जासूसी उपन्यास पढ़ने का है। ऐसे लोगों में एक तरफ़ दक्षिणपन्थी हैं तो दूसरी तरफ़ कई कथित मार्क्सवादी-लेनिनवादी भी शामिल हैं। वायरल संक्रमण मनुष्य और प्रकृति की अन्तर्क्रिया की प्रक्रिया में स्वत:स्फूर्त रूप से पैदा होते हैं। मगर पूँजीवाद प्रकृति का जिस तरीक़े से दोहन करता है और ‘रीजेनरेशन’ की किसी प्रक्रिया को चलाये बग़ैर जिस तरीक़े से ‘डीजनरेशन’ (विनाश) करता है, उसमें ऐसे वायरसों के पैदा होने और संक्रमणों के फैलने की सम्भाव्यता और बारम्बारता बढ़ जाती है। इन वायरसों के फैलने से होने वाली मौतों और बीमारियों का असली कारण होता है इनसे निपटने के लिए वाजिब क़दमों का न उठाया जाना। इस बार चीन में भी शुरुआती दौर में ज़्यादा मौतें इस वजह से ही हुईं क्योंकि सरकार ने तत्काल ज़रूरी क़दम नहीं उठाये। जब ये क़दम उठाये गये तो बीमारी पर काफ़ी हद तक क़ाबू पा लिया गया। दक्षिण कोरिया ने भी शुरुआती कुछ दिनों के बाद ही प्रभावी क़दम उठाये जिससे कि संक्रमण पर काफ़ी हद तक क़ाबू पा लिया गया।
लेकिन भारत में जनवरी से ही अनेक चेतावनियों के बावजूद कोरोना से बचाव और रोकथाम के उपाय नहीं किये गये। हालात बहुत गम्भीर होने के बाद भी वाजिब क़दम नहीं उठाये जा रहे हैं, जिसके परिणाम भयावह हो सकते हैं। न तो बड़े पैमाने पर टेस्टिंग की व्यवस्था की गयी है, न ही रोकथाम के लिए पर्याप्त मास्क व हैण्ड सैनीटाइज़र उपलब्ध हैं। अस्पतालों की बेहद कमी है, जो अस्पताल मौजूद हैं, उनमें बेड्स, डॉक्टरों, नर्सों की कमी है। जो डॉक्टर व नर्सें दिनों-रात मरीज़ों को बचाने में लगे हैं, ख़ुद उनके पास पर्याप्त सुरक्षा उपकरण नहीं हैं, जिससे कि अभी तक संक्रमित लोगों में अच्छी-ख़ासी संख्या डॉक्टरों व नर्सों की है।
ऐसे में नौटंकीबाज़ फ़ासिस्ट मोदी उनकी सराहना के लिए ताली बजाओ-थाली बजाओ की नौटंकी करने की हिदायत दे रहा है और भक्त इस मोदियापे पर हमेशा की तरह नाच रहे हैं। प्रधानमंत्री महोदय, उन्हें ताली-थाली की नहीं पर्याप्त सुरक्षा उपकरणों, टेस्टिंग किटों, बेड्स व अन्य संसाधनों की ज़रूरत है। इस दिशा में मोदी सरकार ने क्या किया है? सरकारी अस्पतालों को इस आपात स्थिति से निपटने के लिए तैयार करने के बजाय, निजी लैबों व अस्पतालों को 5 हज़ार रुपयों में टेस्टिंग करने की इजाज़त दे दी है! भारत में कितने लोग इस परीक्षण का ख़र्च उठा पायेंगे?
पूँजीपतियों की सच्ची सेवक होने के नाते मोदी सरकार ने इस आपात स्थिति को भी मुनाफ़ाखोरी का मौक़ा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। इस समय दवाओं और सभी मूलभूत सामग्रियों की क़ीमतों पर नियंत्रण लागू करने की ज़रूरत है और उसमें पेट्रोल व डीज़ल के दामों को घटाने की बहुत बड़ी भूमिका है। लेकिन दुनिया के बाज़ार में पेट्रोलियम उत्पादों की क़ीमत अभूतपूर्व रूप से गिरने के बावजूद मोदी सरकार ने पेट्रोलियम उत्पादों की क़ीमत में कोई कमी नहीं की है और उस पर करों व शुल्कों को बढ़ाकर जनता को लूट रही है, ताकि नेता-मंत्रियों के ठाठ में कोई कमी न आये।
स्पेन जैसे पूँजीवादी देश ने भी अपने देश में स्वास्थ्य सेवाओं का राष्ट्रीकरण कर दिया ताकि कोरोना वायरस से पैदा हुई आपात स्थिति से निपटा जा सके। इस घटना से यह भी पता चला कि स्वयं पूँजीपति वर्ग यह मान रहा है, कि ऐसी आपात स्थिति से निपटने के लिए निजी स्वास्थ्य सेवाएँ पर्याप्त नहीं हैं। हालाँकि पूँजीपति वर्ग के हाथों में राजकीय स्वास्थ्य सेवाएँ भी अपर्याप्त ही रहेंगी, लेकिन कम-से-कम प्राईवेट अस्पतालों, नर्सिंग होमों आदि ने जो मुनाफ़े और मानव-मांस व्यापार का नंगनाच मचा रखा है, उसमें तो इस प्रकार के वायरल संक्रमण से आबादी का एक अच्छा-ख़ासा हिस्सा मौत के गर्त में समा सकता है। हमारे देश में केरल सरकार ने कुछ क़दम उठाये हैं, जो बेहद सीमित हैं, लेकिन कम-से-कम वे वास्तविक हैं। इसी प्रकार दक्षिण कोरिया की सरकार ने, और थोड़ी देर से ही चीन की सरकार ने कुछ प्रभावी क़दम उठाये, जिनसे संक्रमण पर क़ाबू पाने और मरीज़ों के उपचार में सहायता मिली। लेकिन मोदी सरकार ने एक मीडिया इवेण्ट और नौटंकी करके हाथ साफ़ कर लिए।
भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी की ओर से हम माँग करते हैं कि कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकने और पूर्ण बन्दी (लॉक डाउन) की स्थिति में व्यापक मेहनतकश ग़रीब आबादी की मदद के लिए सरकार को ठोस और वास्तविक क़दम उठाने चाहिए। हम निम्नलिखित क़दमों की माँग करते हैं :
1) सरकार द्वारा कोरोना वायरस के लिए व्यापक व निशुल्क टेस्टिंग की व्यवस्था की जाये। इसके लिए पर्याप्त टेस्टिंग किट व अन्य संसाधन मुहैया कराये जायें।
2) संक्रमित लोगों को क्वारण्टाइन करने के लिए उपयुक्त सुविधाएँ पर्याप्त मात्रा में मुहैया करायी जायें। मौजूदा क्वारण्टाइन सेंटरों की स्थिति अविलम्ब सुधारी जाये।
3) आवश्यकता पड़ने पर पूर्ण बन्दी (लॉक डाउन) कराया जाये और ऐसी स्थिति में जनता को समस्त बुनियादी चीज़ें निशुल्क मुहैया कराने के लिए सार्वजनिक वितरण की व्यवस्था की जाये।
4) दिहाड़ी मज़दूरों, ठेका मज़दूरों, घरेलू कामगारों, निर्माण मज़दूरों, रेहड़ी-खोमचे वालों, ठेला-रिक्शा वालों, व व्यापक मेहनतकश जनता के लिए खाद्य राशनिंग की व्यवस्था की जाय, क्योंकि कोरोना की वजह से उनकी आजीविका सबसे ज़्यादा बाधित हुई है।
5) एनपीआर-एनआरसी को रद्द करके उसके लिए बजट में आवण्टित 4 हज़ार करोड़ रुपये के फ़ण्ड को कोरोना की रोकथाम व उपचार में लगाया जाये।
6) स्पेन सरकार की तर्ज पर सभी निजी अस्पतालों व नर्सिंग होम्स का राष्ट्रीकरण कर दिया जाये और डॉक्टरों, नर्सों व अन्य मेडिकल स्टाफ़ की बड़े पैमाने पर भर्ती करके कोरोना के परीक्षण और उपचार को व्यापक पैमाने पर और निशुल्क रूप में उपलब्ध कराया जाये।
7) बुनियादी सेवाओं को छोड़कर सभी सरकारी व निजी उपक्रमों में काम करने वाले सभी मज़दूरों और कर्मचारियों को पूर्ण वेतन के साथ छुट्टी दी जाये। बुनियादी सेवाओं, विशेषकर वे जो कोरोना के रोकथाम के लिए आवश्यक हैं, के सभी कर्मचारियों व मज़दूरों को पर्याप्त मात्रा में सुरक्षा उपकरण दिये जायें और उनके लिए सुरक्षित कार्य वातावरण सुनिश्चित किया जाये।
8) स्वरोज़गार करने वाली समस्त ग़रीब मेहनतकश आबादी को पर्याप्त जीवनयापन भत्ता दिया जाये।
9) समस्त आम मेहनतकश जनता के लिए निशुल्क भोजन राशनिंग की व्यवस्था की जाये और इसके लिए भारतीय खाद्य निगम के गोदामों में रखे अनाज को उपलब्ध कराया जाये।
10) सभी को साफ़-सुथरे आवास की सुविधा सुनिश्चित करने के लिए सरकार समस्त सरकारी व निजी ख़ाली पड़े फ्लैटों का राष्ट्रीकरण कर उन परिवारों को रहने के लिए दे जिनके पास पक्के मकान नहीं हैं।
11) सभी मज़दूर बस्तियों व मेहनतकश आबादी के मुहल्लों व कालोनियों में स्वच्छ पीने के पानी और पर्याप्त संख्या में स्वच्छ शौचालयों की व्यवस्था की जाये।
12) मेहनतकश जनता के लिए बैंकों और वित्तीय संस्थाओं की सभी उधारी, पानी-बिजली आदि के बिलों, टैक्सों आदि की वसूली तत्काल तब तक के लिए स्थगित की जाये जब तक कि उनकी आय के साधन पहले की तरह स्थिर नहीं हो जाते।
13) इन सभी सुविधाओं के लिए अतिरिक्त संसाधन जुटाने के लिए पूँजीपति वर्ग व धनाढ्य वर्गों पर विशेष कर व शुल्क लगाये जायें; सांसदों, विधायकों, मंत्रियों, नेताओं, नौकरशाहों के ऊपर की जाने वाली बेतहाशा फ़िज़ूलख़र्ची बन्द कर उनके लिए कुशल कामगार जितने वेतन की व्यवस्था की जाये।
14) सभी शॉपिंग मॉलों, बारात घरों (बैंक्वेट हॉल्स), मल्टीप्लेक्सेज़ आदि में अस्थायी स्वास्थ्य केन्द्र खोले जायें जहाँ पर कोरोना की जाँच व उपचार की उपयुक्त व्यवस्था हो।
15) कोरोना वायरस के बारे में झूठी ख़बरों, अन्धविश्वास और अफ़वाहें फैलाने वालों पर कठोर कार्रवाई की जाये और सरकार की ओर से यह प्रचार किया जाये कि केवल विश्व स्वास्थ्य संगठन और मान्यताप्राप्त विशेषज्ञों की राय के अनुसार व्यवहार किया जाये।
ये वे न्यूनतम अनिवार्य क़दम हैं, जिनके ज़रिये हमारे देश में कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से और एक महामारी में तब्दील होने से रोका जा सकता है। हम भारत सरकार से माँग करते हैं कि तत्काल इन क़दमों को उठाये ताकि आम जनता की जीवन की सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके। अन्यथा आने वाले समय में हम एक भयंकर विपदा और जन त्रासदी की ओर बढ़ रहे हैं और इसके लिए पूरी तरह से मोदी सरकार की नौटंकी ज़िम्मेदार होगी।