सावधान! मोदी और भाजपा कहीं ईवीएम के भरोसे चुनाव जीतने की फिराक में तो नहीं?

वोटिंग के पहले चरण में देश भर से ईवीएम मशीनों में खराबी की खबर

11 अप्रैल को पहले चरण की वोटिंग में ईवीएम मशीनों में खराबी की खबरें पूरे देश से आती रहीं। सहारनपुर में ही करीब 56 मशीनें खराब होने की शिकायत के बाद उन्‍हें बदला गया। चुनाव आयोग के अनुसार ही करीब साढ़े तीन सौ से ज्‍यादा ख़राब मशीनों की ख़बरें आयी हैं। आन्‍ध्र प्रदेश के मुख्‍यमन्त्री चन्‍द्रबाबू नायडू ने तो कहा कि 30 प्रतिशत ईवीएम सही काम नहीं कर रही हैं। मज़ेदार बात यह है कि अभी कुछ ही दिनों पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा सभी ईवीएम के साथ वीवीपैट के प्रयोग की मांग किये जाने पर चुनाव आयोग ने रूठकर पूछा था कि क्‍या सुप्रीम कोर्ट को ईवीएम पर भरोसा नहीं है! लेकिन पहले चरण के मतदान में ही साफ हो गया कि इन ईवीएम मशीनों पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। दूसरी मज़ेदार बात यह है कि सभी ईवीएम मशीनों में एक ही प्रकार की ख़राबी आ रही है: बटन किसी भी पार्टी का दबाओ मगर वोट भाजपा को जा रहा है। एक वोटर ने तो बाकायदा वीडियो बनाकर डाला कि किस प्रकार किसी अन्‍य पार्टी के आगे का बटन दबाने के बावजूद भाजपा को वोट जा रहा है। इसके बाद भी क्‍या किसी शक की गुंजाइश है कि भाजपा और मोदी-शाह की जोड़ी पूरी चुनावी प्रक्रिया को ही बरबाद करके चुनाव जीतने की जुगत भिड़ा रहे हैं? क्‍या अब भी सुप्रीम कोर्ट को स्‍वयं संज्ञान लेकर इस मुद्दे पर कार्रवाई नहीं करनी चाहिए? क्‍या चुनाव आयोग को पहले चरण के अनुभव के बाद स्‍वयं ही सभी ईवीएम के वीवीपैट वेरिफिकेशन की व्‍यवस्‍था नहीं करनी चाहिए? लेकिन कोई नहीं चाहता कि उसका हश्र भी जज लोया जैसा होा मोदी सरकार के कार्यकाल में न्‍यायपालिका और चुनाव आयोग जैसी संस्‍थाओं का हाल दयनीय हो गया है। इनसे उम्‍मीद करना भी बेकार है कि वे कोई कदम उठाएंगे। वहीं अन्‍य पूंजीवादी पार्टियों में भी इतना भी दमखम नहीं बचा कि इस मुद्दे पर एकजुट होकर मांग उठाएं कि ईवीएम को छोड़कर बैलट पेपर की व्‍यवस्‍था पर वापस जाया जाय। भारत की क्रान्तिकारी पार्टी की प्रवक्‍ता शिवानी कौल ने बताया कि भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी चुनाव की व्‍यवस्‍था के में सुधार के अपने एजेण्‍डा के अंग के तौर पर मानती है कि ईवीएम की व्‍यवस्‍था, जिसे दुनिया के तमाम उन्‍नत पूंजीवादी देश अपनाने के बाद छोड़ चुके हैं, को त्‍यागकर वापस बैलट पेपर की व्‍यवस्‍था को लाया जाना चाहिए। ज़रूरत पड़ने पर भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी इस मसले पर सर्वोच्‍च न्‍यायालय में एक पुनर्विचार याचिका भी दायर करेगी, हालांकि न्‍यायपालिका की जो स्थिति है, उसमें बहुत उम्‍मीद तो नहीं की जा सकती है। फासीवादी मोदी सरकार ने इक्‍कीसवीं सदी के फासीवाद के असली गुणों को प्रदर्शित किया है, जिसमें कि पूंजीवादी लोकतन्त्र का नकाब कायम रहता है, लेकिन सभी पूंजीवादी जनवादी संस्‍थाएं और प्रक्रियाओं की आत्‍मा निकाल ली जाती है और उन्‍हें खोखला बना दिया जाता है। हिटलर की नात्‍सी पार्टी के समान इक्‍कीसवीं सदी का फासीवाद औपचारिक तौर पर पूंजीवादी लोकतंत्र और उसके चुनावों व अन्‍य संस्‍थाओं को समाप्‍त नहीं करेगा। लेकिन उन्‍हें ऐसी स्थिति में पहुंचा देगा कि उनका रहना न रहना कमोबेश एकसमान हो जायेगा। मोदी-शाही की जोड़ी यही कर रही है और इसका मुकाबला सिर्फ न्‍यायपालिका में नहीं बल्कि सड़क पर उतरकर भी करना होगा। जनता को चुनावों की प्रक्रिया में हो रही हेराफेरी के प्रति जागरूक बनाना होगा और उन्‍हें गोलबन्‍द और संगठित करना होगा। सुश्री शिवानी ने बताया कि भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी का निर्णय है कि यदि चुनाव आयोग और सर्वोच्‍च न्‍यायालय ईवीएम की गड़बडि़यों पर ठोस कदम उठाकर स्‍वतन्‍त्र और निष्‍पक्ष चुनावों को सुनिश्चित नहीं करते, तो पार्टी इसके खिलाफ सड़कों पर भी उतरेगी।