जनसंघर्षों के ताप से हुआ भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (#RWPI) का उदय

भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी, RWPI मज़दूर वर्ग के स्वतन्त्र राजनीतिक पक्ष के तौर पर मौजूद है

17वीं #लोकसभा_चुनाव में आरडबल्यूपीआई खड़े करेगी देश भर की सात सीटों पर अपने जन-पक्षधर उम्मीदवार

8 अप्रैल, 2019, नई दिल्ली। आज मज़दूरों तथा मज़दूर संगठनकर्ताओं द्वारा गठित भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी Revolutionary Workers’ Party of India (RWPI) ने अपने चुनावी घोषणापत्र का लोकार्पण किया। आने वाले लोकसभा चुनावों में भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी ने देश भर से सात सीटों पर (दिल्ली से 2, हरियाणा से 2, महाराष्ट्र से 2 और उत्तर प्रदेश से 1) चुनाव में हस्तक्षेप करने का ऐलान किया।

RWPI के राष्ट्रीय संयोजक, सत्यम ने प्रेस वार्ता को सम्बोधित करते हुए कहा कि आज देश भर में ऐसी कोई स्वतन्त्र ताक़त मौजूद नहीं है जो मज़दूर वर्ग और मेहनतकशों के हितों की नुमाइन्दगी कर सके। मौजूदा सभी चुनावबाज़ पार्टियाँ बात तो आम जनता की करती हैं लेकिन असल मायने में पूँजीपति वर्ग की ही सेवा करती हैं। तमाम चुनावबाज़ पार्टियाँ पूँजीपति घरानों के संसाधनों पर चलती हैं तो ज़ाहिर है कि पिछले 70 सालों में इन्होंने सेवा भी इन्हीं की की है। 2017-18 के वर्ष को ही देखें तो सत्ता में बैठी भाजपा को करीब 1,035 करोड़ रुपये का चुनावी चन्दा मिला। इसका 95 फीसदी हिस्सा बड़े पूँजीवादी ट्रस्टों, उदाहरण स्वरूप एयरटेल, डीएलएफ़, हीरो, एस्सार, आदित्य बिड़ला ग्रुप, टोरेण्टज़ पावर, टाटा, अडानी की ओर से था। कांग्रेस को भले ही भाजपा के मुक़ाबले कम चन्दा मिला, यानी 200 करोड़ रूपये लेकिन चन्दा देने वाले चुनावी ट्रस्ट निरमा, गोदरेज और बजाज समेत ऊपरलिखित भी हैं जिन्होंने भाजपा को भी चन्दा दिया है। इन दोनों प्रमुख पार्टियों के अलावा सभी छोटी राष्ट्रीय पार्टियों और क्षेत्रीय दलों जैसे समाजवादी पार्टी, बसपा, आम आदमी पार्टी राकांपा, जदयू, राजद, द्रमुक, अन्नारद्रमुक, इनेलो, शिवसेना आदि के चन्दे का 90 फीसदी से ज़्यादा हिस्सा बड़े पूँजीपति घरानों, छोटे पूँजीपतियों और धनी किसानों के वर्ग से ही आता है। मज़दूर हितों का दावा करने वाली भाकपा, माकपा, भाकपा (माले) लिब्रेशन आदि के फण्ड का बड़ा हिस्सा भी छोटे पूँजीपति, मालिक, धनी व मँझोले किसान, मँझोले व्यापारियों से ही आता है। देश के 83 प्रतिशत यानी 442 सांसद खुद ही करोड़पति हैं। ज़ाहिर है ये सभी पार्टियाँ भारत की दो-तिहाई से ज़्यादा मेहनतकश आबादी के हितों की नुमाइंदगी नहीं करेंगी। मेहनतकश आबादी को सिर्फ गरीबी, बेरोज़गारी, भुखमरी, कुपोषण और असुरक्षा ही मिली है। खास तौर पर मौजूदा भाजपा सरकार के शासन में बेरोज़गारी ने पिछले 5 दशकों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। देश में बेरोज़गारी दर फरवरी 2019 में 7.2 प्रतिशत पहुँच गयी जबकि देश में सरकारी पदों में ही 24 लाख सीटें खाली पड़ी हैं। भाजपा शासन में करीब पौने पांच लाख रोज़गार कम हो गये हैं। ठेका प्रथा ने 94 फीसदी मज़दूर आबादी की कमर तोड़ दी है और मज़दूर हकों पर लगातार हमले किये जा रहे हैं। श्रम क़ानूनों पर हमले करके मज़दूर संघर्षो को कमज़ोर किया जा रहा है। देश के 86 प्रतिशत किसान गरीब हैं, जिनके पास 5 एकड़ से कम ज़मीन है। सूदखोरों के बोझ तले आत्महत्या करने वाले किसानों का बड़ा हिस्सा गरीब और निम्न मध्यम किसान का है जो किसी कर्ज़माफी के दायरे में आते ही नहीं हैं। जाति और सम्प्रदाय के नाम पर होने वाले दंगों और हिंसा में अभूतपूर्व बढ़ोतरी हुई है। स्त्री विरोधी अपराध में भारत दुनियाभर में अव्वल नम्बर पर पहुंच गया है। है ‘अच्छे दिनों’ का वायदा करती हुई आयी फासीवादी भारतीय जनता पार्टी ने 5 वर्षों में मज़दूरों, मेहनतकशों और बेरोज़गारों के सामने एक नकली दुश्मन खड़ा कर दिया है। मज़दूर वर्ग के प्रतिनिधित्व को मज़बूत करने की कोशिशें आज से पहले भी की गयी हैं, लेकिन ऐसे तमाम प्रयास अपने असल मुक़ाम तक पहुँच पाने में असफल रहे हैं। ऐसे में भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी का निर्माण मेहनतकश आवाम के बीच एक क्रान्तिकारी विकल्प को खड़ा करने के मकसद में एक नयी उम्मीद है। यह पार्टी पूरी तरह से जनता से जुटाये गये संसाधनो पर ही चलती है।

भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी के प्रवक्ता अभिनव सिन्हा ने कहा कि RWPI का मक़सद सिर्फ़ चुनाव लड़ना नहीं है। भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी का अन्तिम लक्ष्य क्रान्तिकारी तरीके से व्यवस्था परिवर्तन करना है। चुनाव में भागीदारी मेहनतकश आबादी के स्वतन्त्र राजनीतिक पक्ष को मज़बूत करने और मेहनतकश वर्गों के हितों की पूँजीवादी व्यवस्था के भीतर अधिकतम हिफाज़त करने का साधन मात्र है। मौजूदा व्यवस्था श्रम की लूट पर टिकी हुई मुनाफ़ा केन्द्रित व्यवस्था है जहाँ उत्पादन और वितरण समाज की आवश्यकताओं को पूरा करने के मक़सद से नहीं बल्कि मुनाफ़े के लिये होते हैं। एक ओर इस देश के गोदामों हर वर्ष लाखों टन अनाज सड़ जाता है और दूसरी ओर देश में बच्चे ‘भात-भात’ की रट लगाते दम तोड़ देते हैं। एक ओर करोड़ों मकान और अपार्टमेंट खाली पड़े हैं और दूसरी ओर 36 करोड़ आबादी के सिर पर पक्की छत नहीं है। ऐसी व्यवस्था में जनतन्त्र केवल उनका होता है जो पूँजीपति वर्ग, निम्न- पूँजीपति वर्ग, धनी किसानों, ठेकेदारों, दलालों, नौकरशाहों और उच्च मध्यवर्ग से आते हैं। ऐसी व्यवस्था के क्रान्तिकारी परिवर्तन के लक्ष्य के साथ भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी का गठन किया गया है। पूँजीवादी और निम्नपूँजीवादी चुनावबाज़ राजनीतिक पार्टी का पुछल्ला बनने को मज़बूर आम मेहनतकश वर्ग के सामने एक विकल्प है। हम भले इस इस चुनाव में देश भर की सिर्फ सात सीटों पर हस्तक्षेप कर रहे हैं, लेकिन आगे आने वाले समय में RWPI अपनी ताक़त का और विस्तार करेगी।

भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी की प्रवक्ता शिवानी कौल ने बताया कि एक मज़दूर पक्ष का उम्मीदवार जीतने पर किन कार्यों को प्राथमिकता देगा। उन्होंने कहा कि RWPI का उम्मीदवार अपने लोकसभा क्षेत्र में श्रम क़ानूनों, जैसे कि न्यूनतम वेतन, काम के घण्टे, साप्ताहिक छुट्टी, डबल रेट से ओवरटाइम, ईएसआई और पीएफ़ को सख्ती से लागू करवाने के लिये ज़रूरी कदम उठाएगा। मज़दूरों और मेहनतकशों की बस्तियों में पीने के पानी, साफ-सफाई, शौचालय, प्रकाश व बिजली, सामुदायिक केन्द्र, अस्पताल और प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र और स्कूलों की व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिये संघर्ष करेगा। इसके अलावा अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर के कार्य सम्पन्न करवाने के लिये हमारा सांसद संघर्ष करेगा। भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी का उम्मीदवार विजयी होने पर समूची सांसद निधि को पारदर्शी तरीके से और समूहिक निर्णय से विकास कार्यों को पूरा करने में उपयोग करेगा। RWPI का सांसद केवल एक कुशल मज़दूर जितना वेतन लेगा और बाकी वेतन को विकास निधि में डालेगा। सभी योजनाओं को पारदर्शी तरीके से लागू करने के लिये उसका सार्वजनिक ऑडिट कराया जायेगा। हमारी प्राथमिक माँग ठेका प्रथा के खात्मे की माँग है। दूसरा, हम जीतने पर रोज़गार गारण्टी के लिये ‘भगतसिंह राष्ट्रीय रोज़गार गारण्टी क़ानून’ को व्यक्तिगत बिल के रूप में प्रस्तावित करेंगे और उसके पास होने के लिये न सिर्फ संसद में बल्कि सड़क पर भी संघर्षरत रहेंगे। तीसरा, हम न्यूनतम मज़दूरी बढ़ा कर 20,000 रुपये किये जाने की माँग उठायेंगे। काम के घण्टे, तकनीकी विकास के हिसाब से कम करके 6 घण्टे करने की माँग हमारी चौथी माँग होगी। तमाम ऋणग्रस्त व ऋण गबन करने वाली कम्पनियों के राष्ट्रीयकरण की माँग उठायी जायेगी। सभी बैंकों के राष्ट्रीयकारण कर एक केन्द्रीय बैंक की स्थापना के लिये हम प्रयासरत रहेंगे। अप्रत्यक्ष करों को समाप्त कर सम्पत्ति पर प्रगतिशील टैक्स लगाये जाने के लिये हम संघर्ष करेंगे। भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी यह मानती है कि ज़मीन किसी की निजी सम्पत्ति नहीं हो सकती। इसलिए ज़मीन का राष्ट्रीयकरण कर सभी बड़े निजी फार्मों पर समूहिक व सरकारी फार्म बनाकर खेतिहर मज़दूरों और गरीब किसानों के बीच इसके बँटवारे के लिये हम प्रयासरत रहेंगे। तमाम घोटालों जैसे राफ़ेल घोटाला, फसल बीमा घोटाला, नोटबन्दी घोटाला समेत सभी घोटालों की उच्चस्तरीय न्यायिक जाँच की माँग उठायी जायेगी। प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा सरकार की ज़िम्मेदारी होनी चाहिये और इसके लिये RWPI प्रयत्नशील रहेगी। इसके साथ ही सार्विक स्वस्थ्य देखरेख का इन्तजाम भी सरकार की ज़िम्मेदारी होनी चाहिये। सभी मेहनतकशों के लिये राजकीय सामाजिक सुरक्षा बीमे की व्यवस्था के लिये पूँजीपतियों पर विशेष कर लगाया जाये। सभी स्कीम वर्करों (आशा, आँगनवादी व मिड-डे मील वर्कर) को तत्काल कर्मचारी घोषित किया जाये। घरेलू कामगारों की रोज़गार, पंजीकरण व सामाजिक सुरक्षा हेतु राष्ट्रीय क़ानून व विशेष एक्सचेंज के गठन की माँग की जायेगी। मेहनतकश आबादी के लिये सरकारी आवास की व्यवस्था की जाएगी।

अंत में शिवानी कौल ने कहा कि चुनावी राजनीति की परिपाटी ही ऐसी बन गयी है कि धनबल-बाहुबल से ही तमाम चुनाव सम्पन्न होते हैं। तमाम तरह से अवसरवादी नेता जो कभी इस पार्टी तो कभी उस पार्टी में होते हैं संसद और विधायिकाओं में भरे पड़े हैं। चुनाव में आमतौर पर जीते कोई भी हार जनता की ही होती है। जो उम्मीदवार अपने चुनावी प्रचार में पैसा-शराब बाँटने और जाति-धर्म के आधार पर वोटों की फिक्सिंग करने में करोड़ों रुपये खर्च करता है तो वह एक तरह से निवेश कर रहा होता है ताकि जीतने के बाद ब्याज़ समेत उसकी वसूली कर सके। जनता के सामने कोई सही-सच्चा विकल्प ही मौजूद नहीं होता। और जनता इसी विकल्पहीनता को ही अपनी नियति मान बैठती है। बदलाव से अपना भरोसा खो बैठती है। RWPI इस परिपाटी को तोड़ने और बदलाव की एक नयी बयार लाने के लिए प्रतिबद्ध है। इतिहास बताता है कि बदलाव निश्चित है और इतिहास ही सुन्दर भविष्य में भरोसा पैदा कर सकता है। शिवानी ने कहा कि RWPI जनता की उम्मीदों पर पूरी तरह से खरी उतरेगी। यदि इसके उम्मीदवार जीतते हैं तो जनता के संघर्षों को एक नये मुकाम तक पहुँचायेंगे, जनता की अधिकतम सम्भव बुनियादी ज़रूरतों को पूरा कराने का प्रयास करेंगे और जीवन को बेहतर बनाने की कोशिश करेंगे किन्तु यदि हारते भी हैं तो भी जनता के संघर्षों को बढ़-चढ़कर उठायेंगे और मेहनतकशों के संघर्ष के झण्डे को सदैव की तरह बुलन्द करते रहेंगे।

आज RWPI के चुनाव घोषणापत्र में वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य का मज़दूर वर्ग के दृष्टिकोण से विश्लेषण प्रस्तुत करने के साथ ही 84 सूत्री एजेंडा में मज़दूरों-मेहनतकशों से जुड़े मुद्दों को उठाया गया है।