#RWPI की ललकार! पक्का रोज़गार – पूरी पगार!!

ये दाग़ दाग़ उजाला, ये शबगज़ीदा सहर
वो इन्तज़ार था जिस का, ये वो सहर तो नहीं…

फै़ज़ की ये लाइनें आज भी देश के तमाम गाँवों का सूरत-ए-हाल दिखा रही हैं। अम्बेडकरनगर के इन गाँवों में आज भी रोशनी अँधेरे में दाग़ की तरह कहीं-कहीं दिखाई देती है। अधिकतर आबादी के बदन पर पूरे कपड़े भी नहीं हैं। इन गाँवों में जो दो-चार कोठियाँ दिखाई देती हैं, वह प्रधानों, नेताओं के चमचों, ठेकेदारों-भट्ठा मालिकों की हैं। उनके बच्चे पढ़ने के लिए विलायत जाते हैं तो दूसरी तरफ़ गाँवों में जो प्राइमरी स्कूलों में अध्यापकों से लेकर इन्फ्रास्ट्रक्चर तक कुछ भी दुरुस्त नहीं है। प्राइवेट स्कूल खुले हैं वो गरीबों की जेब से हर पाई निकाल लेने की जुगत में रहते हैं लेकिन उनमें से अधिकतर की हालत इन प्राइमरी स्कूलों से बहुत बढ़िया नहीं है। 16-17 की उम्र तक पहुँचते-पहुँचते युवा दिल्ली, मुंबई, पंजाब, हरियाणा जैसी जगहों की ओर काम की तलाश में पलायन कर जाते हैं। पूरे क्षेत्र की चिकित्सा व्यवस्था झोलाछाप डॉक्टरों के हवाले है, क्योंकि प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर न तो ढंग से दवाइयाँ हैं और न ही डॉक्टर। प्राइवेट अस्पतालों में इलाज करा पाना एक आम आदमी के बस की बात नहीं है। छोटी-छोटी बीमारियों के इलाज के लिए लोग 50 किलोमीटर दूर शहर की ओर भागते हैं। आज सुबह अम्बेडकरनगर के निजामपुर-रतिगरपुर और बहोरिकपुर गाँव में प्रचार अभियान के दौरान RWPI के वक्ताओं ने कहा कि आज एक ऐसे प्रत्याशी को ही जनता को चुनना होगा जो सही मायने में इन सवालों को लेकर संघर्ष करे। एक-एक पाई का हिसाब जनता को सौंपे। एक ऐसी व्यवस्था को बनाने की लड़ाई लड़े जहाँ मेहनतकश भी इंसान जैसी ज़िन्दगी जी सकें। RWPI इसी रूप में मेहनतकश अवाम की आवाज़ बनकर उभरा है।