अब विकल्प मौजूद है!
- RWPI के दिल्ली-हरियाणा क्षेत्र के बुलेटिन ‘मेहनतकश की आवाज़’ से
मज़दूरों, मेहनतकशों और ग़रीब किसानों ने बनायी अपनी इंक़लाबी पार्टी
भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी 2019 के लोकसभा चुनावों में 7 सीटों पर खड़े करेगी अपने उम्मीदवार
दिल्ली और हरियाणा में दो-दो सीटों पर लड़ेंगे मज़दूर उम्मीदवार
मज़दूर-मेहनतकश साथियो! हम अच्छी तरह से जानते हैं कि आज तक चुनावों में हमारे पास चुनने के लिए कुछ नहीं था। कांग्रेस, भाजपा, आम आदमी पार्टी, सपा, बसपा, इनेलो आदि सभी पूंजीवादी चुनावी पार्टियां मालिकों और ठेकेदारों के चन्दे पर चलती हैं। इन पार्टियों का सारा पैसा पूंजीपतियों से आता है। ऐसे में, वे हमारे हितों और ज़रूरतों को पूरा नहीं कर सकती हैं। चूंकि कोई विकल्प मौजूद नहीं था, इसलिए हर चुनाव में हम इस या उस मालिकों-ठेकेदारों की पार्टी को वोट दे आते थे। लेकिन अब ऐसा नहीं करना है! नवम्बर 2018 में दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, उत्तराखण्ड, राजस्थान आदि राज्यों से आये मज़दूरों, मेहनतकशों और ग़रीब किसानों के चुने हुए प्रतिनिधियों ने एक नयी इंक़लाबी पार्टी का निर्माण किया हैः भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी यानी Revolutionary Workers’ Party of India (RWPI)
यह पार्टी किसी भी रूप में मालिकों, पूंजीवादी घरानों, ठेकेदारों, प्रापर्टी डीलरों, दलालों से कोई चन्दा नहीं लेती है। यह पूरी तरह से मज़दूरों और मेहनतकशों के चन्दे पर चलती है। चूंकि यह मज़दूर वर्ग के राजनीतिक संगठनकर्ताओं द्वारा बनायी गयी पार्टी है और चूंकि यह पूरी तरह मज़दूरों-मेहनतकशों के सहयोग पर चलती है, इसलिए यही पार्टी हम मज़दूरों, आम मेहनतकश आबादी और ग़रीब किसानों के हितों की सेवा कर सकती है। ये हमारी पार्टी है! इसे हमने बनाया है! हम ही इसे चलाते हैं! यह हमारे ही चन्दे पर काम करती है! इसलिए यही हमारी नुमाइन्दगी कर सकती है!
क्या कांग्रेस, भाजपा, सपा, बसपा, आम आदमी पार्टी, भाकपा, माकपा, इनेलो, आदि पार्टियां हम मेहनतकशों के लिए कुछ कर सकती हैं?
मेहतनकश बहनो और भाइयो! ज़रा दिमाग़ पर ज़ोर डालिये! अगर कोई पार्टी टाटा, बिड़ला, अम्बानी, अडानी जैसे बड़े पूंजीपतियों के चन्दों पर चलती है तो क्या वह हम मेहनतकशों के लिए कुछ कर सकती है? अगर कोई पार्टी तमाम व्यापारियों, कारखाना मालिकों, ठेकेदारों, प्रापर्टी डीलरों और दलालों से पैसे लेकर काम करती है, तो क्या वह हम मेहनतकशों के वर्ग हितों की सेवा कर सकती है? अगर कोई पार्टी बड़े धनी किसानों, कुलकों, फार्मरों और आढ़तियों से पैसा लेकर काम करती है, तो क्या वह ग़रीब किसानों और खेतिहर मज़दूरों की ख़ातिर कुछ कर सकती है? इन सबका जवाब हैः नहीं! क्यों? क्योंकि दोस्तो पुरानी कहावत है कि जो जिसका खाता है उसी का बजाता है! अगर कोई पार्टी पूंजीपति वर्ग के ही किसी हिस्से जैसे कि बड़ी कम्पनियों, मंझोले और छोटे कारखाना मालिकों, बड़े दुकानदारों, ठेकेदारों, दल्लालों, प्रापर्टी डीलरों, धनी किसानों, कुलकों, फार्मरों, आढ़तियों, नौकरशाहों से, चन्दे लेकर काम करती है, तो फिर वह हमारी नुमाइन्दगी कैसे कर सकती है? क्या इतनी सामान्य बात समझना मुश्किल है? हम सभी जानते हैं कि ये पार्टियां हमारे पास तो पांच साल में केवल वोट लेने आती हैं, लेकिन सेवा ये गांव और शहर के बड़े, मंझोले और छोटे पूंजीपति की ही करती हैं। इन सभी को ये पूंजीपति ही पैसा देते हैं! यानी चुनावों में हारे कोई भी मगर जीतते मालिक, पूंजीपति, ठेकेदार, दुकानदार ही हैं! क्यों? क्योंकि अब तक हम मज़दूरों-मेहनतकशों की अपनी कोई क्रान्तिकारी पार्टी ही नहीं थी।
नकली लाल झण्डे वाली भाकपा, माकपा, भाकपा (माले) लिबरेशन, एसयूसीआई जैसी पार्टियां मज़दूर वर्ग का नाम लेकर उन्हीं से ग़द्दारी करती हैं। इनकी ट्रेड यूनियनें मज़दूरों के हितों का भाजपा और कांग्रेस की सरकारों से सौदा करती रही हैं। स्थानीय स्तर पर भी हर औद्योगिक क्षेत्र में इनकी यूनियनें मज़दूर संघर्षों को आगे बढ़ने से रोकती हैं और कमीशनखोरी करती हैं। इन्हें देश के 93 प्रतिशत ठेका मज़दूरों से कोई लेना-देना नहीं है। पक्के कर्मचारियों के भी एक बहुत छोटे हिस्से की ये नुमाइन्दगी करती हैं, जिन्हें आप कुलीन मज़दूर/कर्मचारी वर्ग कह सकते हैं। उनके भी बड़े हिस्से से इन्हें कोई मतलब नहीं। ये छोटे मालिकों, व्यापारियों, व्यवसायियों के दुख से दुखी रहते हैं। वास्तव में, ये सभी नकली कम्युनिस्ट पार्टियां केवल छोटे मालिकों, व्यापारियों, ठेकेदारों, व्यवसायियों, मंझोले व धनी किसानों के वर्ग की यानी कि निम्न-पूंजीपति वर्ग की ही सेवा करती हैं। मज़दूरों का तो ये बस नाम लेती हैं। यही तो कारण है कि जब भी कोई वाम मोर्चा किसी राज्य में सत्ता में होता है, तो वह मज़दूरों और ग़रीब किसानों पर वैसे ही लाठियां-गोलियां चलवाता है जैसे कि कांग्रेस व भाजपा की सरकारें चलवाती हैं। पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चा की सरकार ने नन्दीग्राम, लालगढ़ और सिंगूर में यही तो किया था। क्या ऐसे नकली कम्युनिस्टों पर भरोसा किया जा सकता है? कभी नहीं! ये तो आस्तीन के सांप हैं और इनसे तो सबसे ज़्यादा सावधान रहने की ज़रूरत है।
आज हमारे पास एक नया विकल्प मौजूद हैः भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI), यानी एक ऐसी पार्टी जो कि स्वयं हम मज़दूरों और मेहनतकशों ने बनायी है और जो पूरी तरह हमारे और प्रगतिशील और न्यायप्रिय लोगों के चन्दों पर ही चलती है। यह किसी भी पूंजीवादी घराने, कम्पनी, पूंजीवादी चुनावी ट्रस्ट, फण्डिंग एजेंसी, एनजीओ से कोई भी फण्ड नहीं लेती। इसका नेतृत्व और सदस्य मज़दूर वर्ग और आम मेहनतकश वर्गों से आता है, न कि धन्नासेठों, पूंजीपतियों, ठेकेदारों के घरों से। यही कारण है कि यही पार्टी सच्चे मायने में हमारी नुमाइन्दगी कर सकती है।
लोकसभा चुनाव 2019 शुरू होने में चन्द दिन बाकी हैं। दिल्ली व हरियाणा में 12 मई को मतदान है। आपको फैसला करना है साथियो! क्या आप इस या उस पूंजीवादी चुनावी दल को वोट डालेंगे या अपनी मज़दूर पार्टी को वोट डालेंगे? क्या आप चन्द रुपयों, या किसी सामान के बदले अपना वोट बेच देंगे और फिर अगले पांच साल तक पछताएंगे, या फिर आप अपनी मज़दूर पार्टी को वोट देंगे और जिताएंगे? भविष्य आपका है! फैसला आपका है!
भाजपा, कांग्रेस, सपा, बसपा, आप, इनेलो, भाकपा, माकपा, आदि चुनावबाज़ पार्टियां क्यों नहीं कर सकतीं मज़दूरों-मेहनतकशों की नुमाइन्दगी?
जैसा कि पहले बताया गया साथियो, जो जिसका खाता है, उसी का बजाता है। आइये देखते हैं कि किस पार्टी को कितना चुनावी चन्दा मिला है और किसने दिया है।
देश में सत्तासीन फ़ासीवादी भाजपा को सबसे ज़्यादा 1034.27 करोड़ रुपये का चुनावी चन्दा मिला। इसमें से ज्ञात चन्दे का 95 प्रतिशत से भी ज़्यादा बड़े पूंजीपतियों, कम्पनियों, मालिकों से आया है। इनमें सत्या चुनाव ट्रस्ट (एयरटेल लि., डीएलएफ बिल्डर, हीरो मोटरसाईकिल, आदित्य बिड़ला ग्रुप, एस्सार कम्पनी, टॉरेण्ट पावर कम्पनी, आदि), प्रोग्रेसिव चुनाव ट्रस्ट (टाटा), एबी जनरल चुनाव ट्रस्ट (आदित्य बिड़ला), सिपला लिमिटेड, कैडिला हेल्थकेयर कम्पनी, माइक्रो लैब्स आदि प्रमुख हैं। बड़े पूंजीपतियों के टुकड़ों पर पल रही भाजपा भला मज़दूरों, मेहनतकशों और ग़रीब किसानों की सेवा क्यों करने लगी? ज़ाहिर है, कि नरेन्द्र मोदी की फ़ासीवादी सरकार खुले तौर पर देश की मेहनत और कुदरत को लूटने की छूट इन पूंजीपतियों को देगी और देती रही है। यही तो वजह है कि सारे श्रम कानून समाप्त किये जा रहे हैं, बड़े पैमाने पर नोटबन्दी और जीएसटी से मज़दूरों और मेहनतकश आबादी को बेरोज़गार बनाया गया ताकि उनकी औसत मज़दूरी गिर जाये, मन्दी से निपटने के लिए पूंजीपतियों को बैंक में जमा जनता का धन लेकर गबन करने और भागने की इजाज़त दी गयी! स्वयं भाजपा नेताओं-मन्त्रियों ने राफेल घोटाले से लेकर, फसल बीमा घोटाला, व्यापम घोटाला, स्टेशनरी घोटाला कर करोड़ों रुपये कमाये! ये पैसे की रंगत ही है जिससे कि आज भाजपा हत्या, बलात्कार, घोटालों, चोरी, डकैती जैसे आरोपों में फंसे सांसदों-विधायकों और मन्त्रियों की पार्टी बनी हुई है। सबसे ज़्यादा करोड़पति भी भाजपा में ही हैं! क्या आप उम्मीद कर सकते हैं कि भाजपा देश के ग़रीब मज़दूरों, किसानों और आम मेहनतकशों की नुमाइन्दगी करेगी? क्या टाटा, बिड़ला, अम्बानी, अडानी, जिन्दल, मित्तल जैसे बड़े पूंजीपतियों ने हज़ारों करोड़ रुपये का चन्दा भाजपा को समाज-सेवा करने के लिए दिया है? नहीं साथियो! यह चन्दा इसलिए दिया गया है कि मोदी की फासीवादी सरकार पूंजीपतियों के हाथों देश की मेहनत और कुदरत को नंगई से बेच दे और भाजपा की मोदी सरकार ने यही किया है।
कांग्रेस को भाजपा से कहीं कम चन्दा मिला क्योंकि इस समय देश के पूंजीपतियों को मोदी की फासीवादी सरकार चाहिए जो कि मज़दूरों के हक़ो-हुकूक को बेशर्मी से कुचले और उनके हर प्रतिरोध को भी बेरहमी से दबाये। इसीलिए कांग्रेस को भाजपा से पांच गुना कम चन्दा मिला, यानी कि लगभग 200 करोड़ रुपया। लेकिन यह चन्दा भी लगभग उन्हीं पूंजीपतियों और मालिकों-ठेकेदारों ने दिया है, जिन्होंने भाजपा को भी चन्दा दिया। यानी कि चित भी मेरी और पट भी मेरी! जीते चाहे भाजपा या कांग्रेस, मगर जीत पूंजीपति वर्ग की ही होगी और हार आम मेहनतकश जनता की ही होगी! वैसे भी कांग्रेस भारत के पूंजीपतियों की सबसे पुरानी और भरोसेमन्द पार्टी रही है। ऐसे में, भाजपा सरकार के खि़लाफ़ भारी गुस्से के कारण यदि कांग्रेस के नेतृत्व में यदि किसी गठबन्धन की सरकार बनती है तो भी पूंजीपति वर्ग का ही राज चलेगा क्योंकि कांग्रेस भी भाजपा के समान बड़े पूंजीपति वर्ग की ही पार्टी है।
अपने आपको “ׅआम आदमी” की पार्टी बताने वाली आम आदमी पार्टी के चुनावी चन्दे का स्रोत देखें तो पता चल जाता है कि इसके ‘आम आदमी’ कौन हैं! आम आदमी पार्टी को भी सत्या चुनाव ट्रस्ट जिसे एयरटेल, डीएलएफ, आदित्य बिड़ला, एस्सार, हीरो जैसे कई बड़े पूंजीपति चला रहे हैं, ने भारी चुनावी चन्दा दिया है। ‘आप’ को कुल मिलाकर 25 करोड़ रुपया चुनावी चन्दा प्राप्त हुआ है। इसमें बड़े पूंजीपतियों के अलावा दिल्ली के छोटे कारखाना मालिकों, प्रापर्टी डीलरों, बड़े दुकानदारों, ठेकेदारों, ज्यूलरी वालों, दलालों, ने मुख्य रूप से चन्दा दिया है। सही मायने में ‘आप’ दिल्ली के छोटे मालिकों, व्यापारियों, प्रापर्टी डीलरों, दलालों, ठेकेदारों की ही पार्टी है। स्वयं इसके नेताओं व उनके रिश्तेदारों जैसे कि विकास गुप्ता, गिरीश सोनी आदि के दिल्ली में कारखाने चलते हैं। ज़रा सोचिये मज़दूर और मेहनतकश भाइयो और बहनो! क्या कोई कारखाना मालिकों और ठेकेदारों की पार्टी आपके हक़ों की बात कर सकती है? क्या वह आपकी नुमाइन्दगी कर सकती है? कभी नहीं!
इसी प्रकार नकली लाल झण्डे वाली भाकपा को 1 करोड़ 15 लाख, माकपा को 2 करोड़ 76 लाख रुपये चन्दा मिला। इन्हें चन्दे देने वाले लोगों में छोटे मालिक, छोटे दुकानदार, छोटे व्यवसायी, स्थायी सरकारी कर्मचारियों का एक वर्ग और स्वयं इनके नेतागण शामिल हैं। ये पार्टियां बात मेहनतकश वर्ग की करती हैं, लेकिन इनके चन्दों का स्रोत दिखलाता है कि ये सेवा छोटे पूंजीपति वर्ग, मध्य वर्ग और धनी व मंझोले किसानों की करती हैं। ये सुधार के लिए लड़ती हैं, परिवर्तन के लिए नहीं और इसलिए कोई सुधार भी हासिल नहीं कर पातीं। साथ ही, जहां कहीं भी ये सत्ता में आती हैं, मज़दूरों और ग़रीब किसानों पर उसी प्रकार जुल्म करती हैं, जैसे कि कोई भी खुले तौर पर पूंजीवादी पार्टियां। नन्दीग्राम, सिंगूर और लालगढ़ में आम मेहनतकश जनता का वाम मोर्चा की सरकार द्वारा दमन इसी बात को सिद्ध करता है।
दलितों की रहनुमा बनने वाली बसपा की सच्चाई यह है कि इसके चन्दे का अधिकांश हिस्सा दलित जनता के बीच से पैदा हुए एक छोटे-से पूंजीपति वर्ग, निम्न पूंजीपति वर्ग और उच्च मध्य वर्ग से आता है। इसके चन्दों का स्रोत अज्ञात है क्योंकि यह 20 हज़ार से अधिक का चन्दा किसी एक व्यक्ति से नहीं लेती, और इसलिए यह अपने चन्दा देने वालों का नाम नहीं बताती। लेकिन सभी जानते हैं कि इनका चन्दा दलित नौकरशाहों, उच्च और मध्यम स्तर के सरकारी कर्मचारियों आदि से आता है। यह दलित आबादी का इस्तेमाल करते हुए दलित आबादी के मात्र 9 प्रतिशत, यानी कि दलित आबादी में से पैदा हुए पूँजीपति मालिक वर्ग, ठेकेदारों, नौकरशाहों आदि की सेवा करती है। साथ ही, जब यह सरकार में होती है तो यह अन्य पूंजीवादी घरानों की भी जमकर सेवा करती है, जैसा कि उत्तर प्रदेश में अपनी सरकार के दौरान मायावती ने मुख्यमन्त्री के तौर पर किया था।
यही हाल सभी राष्ट्रीय व क्षेत्रीय पूंजीवादी चुनावबाज़ पार्टियों का है। इन सभी के चन्दे मुख्य रूप से बड़े पूंजीपति वर्ग, छोटे पूंजीपति वर्ग, धनी किसानों, मालिकों, ठेकेदारों, उच्च मध्यवर्ग से ही आते हैं। ऐसे में, ये हम मज़दूरों और मेहनतकशों की नुमाइन्दगी कर ही नहीं सकती हैं। इसीलिए हमने कहा कि अब तक चुनावों में मज़दूरों और मेहनतकश आबादी के पास कोई विकल्प नहीं है क्योंकि ऐसी कोई पार्टी ही नहीं है जो पूरी तरह उन्हीं के चन्दों पर चलती हो, उन्हीं के द्वारा बनायी गयी हो। अब एक ऐसी पार्टी बन चुकी है – भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी।
भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI) यानी मज़दूरों और मेहनतकशों की अपनी पार्टी
मज़दूर पार्टी का निर्माण नवम्बर 2018 में दिल्ली, हरियाणा, महाराष्ट्र, बिहार, पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, राजस्थान आदि राज्यों से आये मज़दूरों, मज़दूर आन्दोलन के राजनीतिक संगठनकर्ताओं और क्रान्तिकारी छात्रों-युवाओं ने किया। इस पार्टी का नेतृत्व और काडर मज़दूर वर्ग और आम मेहनतकश आबादी से और उनके राजनीतिक संगठनकर्ताओं के बीच से आते हैं।
यह मज़दूर पार्टी उसूलन किसी पूंजीवादी घराने, कम्पनी, एनजीओ, पूंजीवादी चुनाव ट्रस्ट, फण्डिंग एजेंसी से कोई पैसा नहीं लेती। यह केवल और केवल मज़दूर वर्ग, आम मेहनतकश आबादी और प्रगतिशील व्यक्तियों के बीच से व्यक्तिगत चन्दे लेकर अपने समूचे फण्ड को जुटाती है। यही कारण है कि यह पार्टी सच्चे मायने में ईमानदारी से मज़दूर वर्ग और आम मेहनतकश आबादी की नुमाइन्दगी करती है। यह पार्टी मज़दूर वर्ग का हिरावल दस्ता और समूचे मेहनतकश आबादी का नेतृत्वकारी कोर है। इस पार्टी का अन्तिम लक्ष्य है क्रान्तिकारी रास्ते से देश के सभी खेतों-खलिहानों, कल-कारखानों, और खानों-खदानों पर देश के ग़रीब किसानों और खेतिहर मज़दूरों, औद्योगिक व शहरी मज़दूरों और आम मेहनतकश आबादी का हक़ स्थापित करना और एक ऐसी राजनीतिक व्यवस्था का निर्माण करना जिसमें फैसला लेने की ताक़त वाकई मज़दूर वर्ग और आम मेहनतकश आबादी के हाथ में हो। कहने की आवश्यकता नहीं कि ऐसी क्रान्ति को अंजाम देने और एक नयी समाजवादी व्यवस्था के निर्माण करने के कार्य में अभी एक लम्बा समय लगेगा। लेकिन तब तक क्या मज़दूर वर्ग कांग्रेस, भाजपा, सपा, बसपा, आप, भाकपा, माकपा, इनेलो, आदि जैसी इस या उस पूंजीवादी या निम्न पूंजीवादी पार्टी का पिछलग्गू बना रहेगा? नहीं! क्या वह हर चुनाव में मालिकों-ठेकेदारों की इस या उस पार्टी को वोट दे आयेगा? नहीं! यदि ऐसा हुआ तो वह दिन ही कभी नहीं आयेगा जब कि देश के समूची सम्पदा पर देश के मेहनतकश वर्गों का साझा हक़ होगा और फैसला लेने की ताक़त उनके हाथों में होगी। यदि हम इन पूंजीवादी चुनावी दलों को वोट देते रहे तो देश का पूंजीपति वर्ग मिलकर हमें लूटता रहेगा और हम कुछ भी नहीं कर सकेंगे। इसलिए ज़रूरी है कि मज़दूरों और आम मेहनतश आबादी की अपनी स्वतन्त्र राजनीतिक पार्टी हो, जिसका पूंजीपति वर्ग से कोई भी राजनीतिक या आर्थिक सम्बन्ध न हो और वह पूरी तरह से मज़दूर वर्ग पर निर्भर हो, उसी के बीच मौजूद हो, उन्हीं के बीच से पैदा हुई हो और बनती हो। ऐसी पार्टी के तौर पर ही मज़दूरों-मेहनतकशों और उनके संगठनकर्ताओं ने भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI) का निर्माण किया है।
अब विकल्प मौजूद है, दोस्तो! अब हमें मालिकों, धन्नासेठों, ठेकेदारों की राजनीतिक पार्टियों की पूंछ पकड़कर चलने की कोई ज़रूरत नहीं है! अब हमारे पास अपनी स्वतन्त्र राजनीतिक पार्टी मौजूद है जो कि चुनावों समेत समाज और राजनीति के हर मंच पर हमारे हक़ों और हितों की नुमाइन्दगी कर सकती है। इस पार्टी को हमें बड़ा और ताक़तवर बनाते जाना है।
इस दिशा में पहला कदम यह है कि आप सभी एकजुट होकर आने वाले लोकसभा चुनावों में भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी के उम्मीदवारों को वोट दें! दिल्ली में उत्तर-पश्चिमी दिल्ली से साथी अदिति और उत्तर-पूर्वी दिल्ली से साथी योगेश चुनाव में आपके उम्मीदवार हैं! एकजुट होकर इन्हें वोट दें और इनकी जीत को सुनिश्चित करें! साथ ही, हम सभी मज़दूर भाइयों और बहनों से अपील करेंगे कि अपने मज़दूर प्रतिनिधियों की जीत को सुनिश्चित करने के लिए भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी के वॉलण्टियर बनें, उसका प्रचार करें, हर मज़दूर और मेहनतकश भाई-बहन को समझाएं कि अब हमारे पास विकल्प है और अब हमें उसे ही आगे लेकर जाना है! यदि अब भी हम जाति-धर्म देखकर, पैसे या किसी अन्य वस्तु के लालच में, या किसी अन्य लोभ में किसी पूंजीवादी दल जैसे कि भाजपा, कांग्रेस, आप, इनेलो, बसपा आदि को वोट देते हैं दोस्तो, तो कल हमें शिक़ायत करने का कोई हक़ नहीं होगा! इसलिए चन्द रुपयों, किसी सामान या जाति-धर्म के लिए वोट करके पांच वर्ष के लिए अपने राजनीतिक अधिकार, अपने वोट के अधिकार का दुरुपयोग मत करिये! अपने मज़दूर प्रतिनिधि को चुनिये! ज़रा कल्पना करें कि यदि आपके इलाके में आपका अपना मज़दूर प्रतिनिधि सांसद होगा तो हम अपने हक़ों के लिए कितने बेहतर तरीके से लड़ सकते हैं और उन्हें हासिल कर सकते हैं। इसलिए एकजुट होकर भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी के मज़दूर उम्मीदवार को वोट दें, पार्टी के वालण्टियर बनें, हर तरह से उसका समर्थन करें, उसे चन्दा दें और उसका प्रचार करें।