भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी के उम्मीदवारों को वोट दो!
लोकसभा चुनाव में मेहनतकश जनता का अपना स्वतन्त्र राजनीतिक पक्ष तैयार करो!
भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी के उम्मीदवारों को वोट दो!
मेहनतकश भाइयो और बहनो!
सत्रहवीं लोकसभा का चुनाव आने के साथ तमाम पूँजीवादी चुनावबाज़ पार्टियाँ मतदाताओं को लुभाने में लग गयी हैं। लेकिन क्या हम आम मेहनतकशों लोगों के पास वास्तव में कोई विकल्प है?क्या इस समय कोई ऐसी पार्टी है जो वास्तव में हमारी नुमाइन्दगी करती हो?नहीं! इस विकल्पहीनता में हम कभी इस तो कभी उस पूँजीवादी चुनावी पार्टी को वोट देते हैं, हालाँकि इनमें से हरेक पार्टी समाज में मालिकों, ठेकेदारों, दलालों, धनी व्यापारियों, बड़े फार्मरों की ही नुमाइन्दगी करती हैं। जब हम किसी पूँजीवादी पार्टी की सरकार के प्रति गुस्सा ज़ाहिर करना चाहते हैं, तो दूसरी पूँजीवादी पार्टी को वोट दे आते हैं, जब दूसरी से परेशान हो जाते हैं तो उसे सज़ा देने के लिए किसी तीसरी पूँजीवादी पार्टी या गठबन्धन को वोट दे देते हैं। लेकिन इससे हमें क्या हासिल हुआ है? ग़रीबी,बेरोज़गारी,भुखमरी,कुपोषण, असुरक्षा!क्यों? क्योंकि चाहे कांग्रेस हो,भाजपा हो,सपा-बसपा हो,आम आदमी पार्टी हो,या कोई भी अन्य पूँजीवादी चुनावबाज़ पार्टी,सभी देश की बड़ी-बड़ी कम्पनियों,मालिकों,ठेकेदारों,दलालों के ही पैसों पर चल रही हैं। इसलिए सरकार किसी की भी बने,राज मालिक वर्ग करता है। आज हमारा कोई स्वतन्त्र राजनीतिक पक्ष नहीं है, हमारी अपनी कोई राजनीतिक पार्टी नहीं है जो हमारे ही संसाधनों पर, हमारी ही शक्ति पर खड़ी हो। यही हमारी सबसे बड़ी कमज़ोरी रही है। इसी को दूर करने के लिए देश भर के मज़दूरों और मेहनतकशों ने मिलकर नवम्बर 2018 में मेहनतकश वर्गों की अपनी इंक़लाबी पार्टी का गठन किया है,जिसका नाम है: भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (Revolutionary Workers’ Party of India – RWPI)! यह पार्टी किसी भी देशी या विदेशी कम्पनी,फण्डिंग एजेंसी,पूँजीवादी चुनावी ट्रस्टों से कोई भी सहयोग या समर्थन नहीं लेती और पूरी तरह से मज़दूरों और मेहनतकशों के संसाधनों पर चलती है। यह पार्टी ही मज़दूरों और मेहनतकश वर्गों के हितों की सही मायने में नुमाइन्दगी कर सकती है।
देश की वर्तमान राजनीतिक,आर्थिक,सामाजिक स्थिति
भाजपा की फ़ासीवादी मोदी सरकार ने पाँच वर्षों में साफ़ कर दिया है कि जितनी बेशर्मी,नंगई और ढिठाई से यह पार्टी अम्बानी,अडानी,टाटा,बिड़ला,जिन्दल,मित्तल जैसे पूँजीपतियों की सेवा कर सकती है,वह कोई नहीं कर सकता। मोदी सरकार की पूँजीपरस्त यानी कि मेहनत और कुदरत की खुली लूट की छूट देने वाली नीतियों का नतीजा यह हुआ है कि देश में बेरोज़गारी की दरफ़रवरी 2019 में 7.2 प्रतिशत तक पहुँच गयी, जो कि पिछले पाँच दशकों में सबसे ज़्यादा है। यह सरकारी दर बेरोज़गारी की वास्तविक दर को दिखलाती भी नहीं है। रोज़गार गारण्टी कानून व बेरोज़गारी भत्ता की कोई नीति न होने के कारण, सरकार बहुत से बेरोज़गारों को गिनती ही नहीं है। सारे बेरोज़गार आत्महत्या नहीं कर लेते। 99 प्रतिशत बेरोज़गार रेहड़ी-खोमचा लगाकर, चाय-पकौड़ा या बीड़ी-पान-सिगरेट बेचकर, या छोटे-मोटे अस्थायी काम करके किसी तरह बस जी लेते हैं। इन्हें क्या रोज़गारशुदा माना जाय? नहीं! इन्हें जोड़ दिया जाये तो हमारे देश में बेरोज़गारों की संख्या 27 से 30 करोड़ के क़रीब है जिनमें से कम-से-कम पौने पाँच करोड़ लोगों की बढ़ोत्तरी मोदी सरकार के दौर में हुई है। देश में सरकारी नौकरियों में ही 24 लाख पद खाली पड़े हैं।
देश में काम करने वाले क़रीब 25 करोड़ शहरी मज़दूरों में से 90 प्रतिशत से भी ज़्यादा ठेका, दिहाड़ी या कैज़ुअल के तौर पर काम करते हैं। उनके औसत काम के घण्टे 9 से 11 हैं और औसत मासिक मज़दूरी 7 से 9 हज़ार रुपये। ठेका प्रथा की आधुनिक गुलामी ने देश के 94 प्रतिशत मज़दूरों की कमर तोड़ दी है। मोदी सरकार ने अब रहे-सहे श्रम कानूनों की बाधा भी समाप्त कर दी है। अप्रेण्टिस, ट्रेनी आदि के नाम पर अब बाल मज़दूरी और बेगार को सम्भव बनाया जा रहा है। बेरोज़गारी ने मज़दूरों की औसत मज़दूरी को बेहद कम कर दिया है। करोड़ों ग्रामीण मज़दूरों की हालत भी भयंकर है क्योंकि उनके ऊपर कोई श्रम क़ानून भी नहीं लागू है। साल के अच्छे-ख़ासे हिस्से के दौरान वे भयंकर आर्थिक असुरक्षा में जीते हैं। मज़दूर वर्ग के यूनियन बनाने और संगठित होने के हक़ पर भी मोदी सरकार ने अभूतपूर्व हमला किया है, ताकि वे अपने हक़ों के लिए लड़ भी न सकें।
देश में ग़रीब किसानों की संख्या कुल किसानों की संख्या में क़रीब 86 प्रतिशत है,जिनके पास 2 हेक्टेयर से कम ज़मीन है। मोदी सरकार के कार्यकाल में छोटे किसानों की पहले से ख़राब हालत और भी तेज़ी से ख़राब हुई है। वे सूदखोरों के क़र्ज़ के बोझ तले और भी ज़्यादा दब गये हैं। आत्महत्या करने वाले किसानों में बड़ा हिस्सा ग़रीब और निम्न मध्यम किसान का है जो किसी भी क़र्ज़ माफ़ी की योजना के दायरे में नहीं आते। उनकी स्थिति वास्तव में मज़दूर वर्ग जैसी है क्योंकि उनका जीविकोपार्जन खेती से कम और मज़दूरी से ज़्यादा चलता है। यह भयंकर ग़रीबी में जीने वाली आबादी है। शहरी निम्न मध्य वर्ग,यानी कि तीसरे या चौथे श्रेणी के सरकारी नौकर,छोटी-मोटी प्राइवेट नौकरी करने वाले लोग,पढ़े-लिखे बेरोज़गार नौजवानों,आदि के हालात इतने बुरे कभी नहीं थे। पढ़े-लिखे बेरोज़गारों की संख्या 4 करोड़ से ऊपर जा रही है। यह अभूतपूर्व है। छोटे-मोटे धन्धे करने वाले अर्द्धमज़दूर लोग पूरी तरह से सड़क पर आ गये हैं क्योंकि महँगाई की स्थिति अब उनके बर्दाश्त के बाहर है।
दलित आबादी के लिए,जिसका 90 फ़ीसदी से ज़्यादा मज़दूर और आम मेहनतकश है,साम्प्रदायिक फ़ासीवादी और जातिवादी भाजपा सरकार ने नर्क जैसे हालात पैदा कर दिये हैं। दलित-विरोधी उत्पीड़न की घटनाओं में अभूतपूर्व बढ़ोत्तरी, गोरक्षा के नाम पर ग़रीब मेहनतकश दलितों पर हमले जिस भयंकरता से भाजपा की मोदी सरकार के दौर में बढ़े हैं, उससे सभी वाकिफ़ हैं। दलित मेहनतकश आबादी अपनी मुक्ति के संघर्ष के लिए व्यापक मेहनतकश अवाम के साथ संगठित न हो पाये,इसके लिए पहचान की राजनीति करने वाले तमाम संगठन उन्हें भटकाने में लगे हुए हैं और इस रूप में मोदी सरकार की ही सेवा कर रहे हैं। लाखों-लाख आदिवासियों को उनके जल-जंगल-ज़मीन से उजाड़ने में मोदी सरकार पूरी मेहनत से लगी हुई है। अभी हाल ही में क़रीब 11 लाख आदिवासियों को उजाड़ने की तैयारियाँ की जा चुकी हैं। आदिवासियों से प्राकृतिक संसाधनों के सामुदायिक उपयोग के अधिकार से वंचित करके वास्तव में उनके जीने का ही अधिकार छीना जा रहा है। स्त्रियों के ख़िलाफ़ अपराध और उनके दमन में मोदी सरकार ने पाँच वर्ष में ही भारत को दुनिया में पहले स्थान पर पहुँचा दिया है। वास्तव में, स्वयं मोदी सरकार के मंत्रियों, सांसदों में स्त्रियों के ख़िलाफ़ अपराध के सबसे ज़्यादा आरोपी हैं। बलात्कार से लेकर छेड़छाड़ भाजपा के संस्कारी नेताओं के प्रिय काम लगते हैं। बेरोज़गारी सबसे तेज़ रफ़्तार से महिलाओं में बढ़ी है। पुरुषों के मुकाबले उनके वेतन में अन्तर भी इस दौर में तेज़ी से बढ़ा है, क्योंकि बेरोज़गारी के कारण औरतों की औसत मज़दूरी नीचे चली गयी है। धार्मिक अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ इतनी असुरक्षा का माहौल देश के इतिहास में कभी नहीं था। फ़ासीवादी मोदी सरकार देश की मूलभूत समस्याओं का कोई समाधान नहीं कर सकी, इसलिए अब देश के बहुसंख्यक सम्प्रदाय के मज़दूरों, मेहनतकशों और बेरोज़गारों के लिए एक नकली दुश्मन खड़ा कर रही है। धार्मिक अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ साम्प्रदायिक उन्माद भड़काया जा रहा है, ताकि जनता अपनी वर्ग एकजुटता को भूलकर आपस में ही लड़ पड़े।
वास्तव में,निजीकरण और उदारीकरण की जिन नीतियों के ये भयंकर नतीजे आज देश के 85 करोड़ आम मेहनतकश और निम्न मध्यवर्गीय लोगों को झेलने पड़ रहे हैं,उनकी शुरुआत 1991 में कांग्रेस सरकार ने की थी। भारत के सभी पुराने पूँजीपति घराने देश की मेहनतकश जनता के धन पर खड़े हुए। लेकिन जब पूँजीपतियों की मुनाफ़ाख़ोरी में सार्वजनिक क्षेत्र बाधा बनने लगा, तो 1991 में कांग्रेस सरकार ने ही निजीकरण-उदारीकरण की नीतियों के ज़रिये जनता के पैसों पर खड़े किये गये सार्वजनिक क्षेत्र को पूँजीपतियों को औने-पौने दामों में सौंपना शुरू किया। यही आर्थिक नीतियाँ 1991 से हर पूँजीवादी पार्टी की सरकार ने लागू की हैं। भाजपा की सरकारों ने जनता को लूटने के लिए पूँजीपतियों को खुली छूट देने और बिल्कुल बेशर्मी से अम्बानी,अडानी,टाटा,बिड़ला आदि की सेवा करने में सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिये हैं। जनता अपने हक़ों की आवाज़ संगठित तरीके से न उठा पाये, इसके लिए भाजपा सरकार और संघ परिवार कभी साम्प्रदायिकता, कभी जातिवाद, कभी क्षेत्रवाद तो कभी अन्धराष्ट्रवाद और युद्धोन्माद का मसला उछाल देते हैं।
देश को पूँजीपतियों को हाथों बेच डालने के लिए इसी भाजपा सरकार ने अब तक के सबसे बड़े घोटालों को अंजाम दिया है,जैसे कि राफे़ल घोटाला,एनपीए घोटाला,व्यापम घोटाला,फसल बीमा योजना घोटाला। पूँजीवादी लोकतंत्र की वे संस्थाएँ जो जनता को थोड़े-बहुत जनवादी अधिकार देती हैं, उन्हें भाजपा की मोदी-शाह सरकार ने योजनाबद्ध ढंग से नष्ट या कमज़ोर किया है, जैसे कि रिज़र्व बैंक, कैग, न्यायपालिका। यहाँ तक कि लोकतंत्र का चौथा खम्भा कहा जाने वाला मीडिया भी फ़ासीवादियों के चरणों में बिछा हुआ है। उससे आप किसी भी रूप में सच्ची ख़बरें और सूचनाएँ जानने की उम्मीद नहीं कर सकते हैं। उल्टे वह सक्रिय रूप से झूठ,ग़लत सूचना,अंधविश्वास और अतार्किकता फैलाने में लगा हुआ है। इस रूप में भाजपा सरकार आज पूरे देश की जनता के भविष्य के लिए एक ख़तरा बन चुकी है। लेकिन उसका विकल्प कोई भी दूसरी पूँजीवादी पार्टी या ऐसी पार्टियों का गठबन्धन नहीं दे सकता।
पूँजीवादी चुनावी पार्टियाँ हम मेहनतकशों की नुमाइन्दगी क्यों नहीं कर सकतीं?
कहावत है कि जो जिसका खाता है, उसी का गाता है। किसी भी पार्टी का चरित्र इस बात से तय होता है कि वह किन वर्गों के संसाधनों पर चलती है और उसके नेतृत्व का राजनीतिक वर्ग चरित्र क्या है। भाजपा आज सत्ताधारी पार्टी है। भाजपा को 2017-18 में क़रीब 1035 हज़ार करोड़ रुपये का चन्दा मिला। इनमें से 95 प्रतिशत चन्दा बड़े-बड़े पूँजीवादी चुनावी ट्रस्टोंसे मिला, जिनके मालिक एयरटेल, डीएलएफ, हीरो, एस्सार, आदित्य बिड़ला ग्रुप, टॉरेण्ट पावर, टाटा, अडानी, आदि जैसी बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ हैं। क्या आपको लगता है कि जिस पार्टी को हज़ारों करोड़ रुपये ये पूँजीपति घराने दे रहे हैं वह कभी हम मज़दूरों-मेहनतकशों के हितों की सेवा कर सकती है?कभी नहीं! ज़ाहिर है कि भाजपा इन्हीं कम्पनियों के एजेण्ट के तौर पर काम करेगी। कांग्रेस को भाजपा से कहीं कम चुनावी चन्दा मिला: 200 करोड़ रुपये। लेकिन यह चन्दा भी उन्हीं चुनावी ट्रस्टों से और तमाम अन्य कम्पनियों जैसे कि निरमा कम्पनी, बजाज, गोदरेज आदि से मिला है। सोचने की बात है कि ये पूँजीपति सभी चुनावी पार्टियों को खरीदकर अपनी जेब में रखते हैं,ताकि सरकार चाहे किसी भी पार्टी की बने,लेकिन शासन वही पूँजीपति वर्ग करे। इन दो प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियों के अलावा सभी छोटी राष्ट्रीय पार्टियों और क्षेत्रीय दलों जैसे किसमाजवादी पार्टी, बसपा, आम आदमी पार्टी, राकांपा, जदयू, राजद, द्रमुक, अन्नाद्रमुक, इनेलो, शिवसेना, अकाली दल आदि के चन्दे का 90 प्रतिशत से भी ज़्यादा पूँजीपति वर्ग के ही किसी हिस्से से आता है, चाहे वह बड़ा कारपोरेट पूँजीपति वर्ग हो, मंझोले व छोटे मालिकों, व्यापारियों का वर्ग हो या फिर ठेकेदारों व दलालों का। यही कारण है कि जिन राज्यों में भाजपा या कांग्रेस की सरकार नहीं है, वहां भी मेहनतकश जनता के हक़ों को छीना जा रहा है, उसे सड़कों पर धकेला जा रहा है। मज़दूरों की नुमाइन्दगी करने का दावा करने वाली भाकपा, माकपा, भाकपा (माले) लिबरेशन आदि जैसी नकली कम्युनिस्ट पार्टियों के फण्ड पर ग़ौर करें तो हम पाते हैं इन्हें विशेष तौर पर केरल, बंगाल व त्रिपुरा के छोटे पूँजीपतियों और मालिकों ने, धनी व मंझोले किसानों ने, छोटे व मंझोले व्यापारियों ने फण्ड दिये हैं। इसके अलावा, इन्होंने अपनी केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों के ज़रिये मुख्य तौर पर संगठित क्षेत्र के पक्के कर्मचारियों के वर्ग से फण्ड वसूले हैं। यही कारण है कि ये नकली कम्युनिस्ट पार्टियाँ छोटे पूँजीपतियों, मालिकों, व्यापारियों, धनी व उच्च मध्यम किसानों के वर्ग यानी कि निम्न पूँजीपति वर्ग की नुमाइन्दगी करती हैं। पश्चिम बंगाल की वाम मोर्चा सरकार ने सिंगूर, नन्दीग्राम और लालगढ़ में बड़े पूँजीपतियों के लिए मज़दूरों, किसानों और आदिवासियों पर जो बर्बर दमन किया था, वह सभी को याद है। ज़रा सोचिये साथियो! क्या देश के मज़दूर और आम मेहनतकश वर्ग इन पूँजीवादी व निम्न पूँजीवादी पार्टियों पर किसी भी रूप में भरोसा कर सकते हैं? कभी नहीं!
भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI) आपके बीच क्यों?
RWPI का अन्तिम लक्ष्य है: क्रान्तिकारी रास्ते से मज़दूर वर्ग की सत्ता की स्थापना और समाजवादी व्यवस्था का निर्माण,जिसमें उत्पादन,राज-काज और समाज के ढाँचे पर उत्पादन करने वाले वर्गों का हक़ हो और फैसला लेने की ताक़त सच्चे मायने में उनके हाथों में हो। यह दूरगामी लक्ष्य पूरा करने के लिए RWPI मज़दूरों, ग़रीब किसानों व आम मेहनतकशों को संगठित करने की मुहिम में सतत् सक्रिय है। इसी मुहिम का एक अहम हिस्सा है कि मौजूदा व्यवस्था के चुनावों में मज़दूरों और मेहनतकशों का अपना स्वतन्त्र राजनीतिक पक्ष खड़ा किया जाये। RWPIकिसी भी रूप में पूँजीपति वर्ग से कोई सहायता,समर्थन,चन्दा नहीं लेती और पूरी तरह से आम मेहनतकश जनता के संसाधनों पर टिकी है। इस पार्टी का नेतृत्व मज़दूर वर्ग,आम मेहनतकश आबादी और उनके आन्दोलनों में तपे क्रान्तिकारी संगठनकर्ताओं से आता है। यही कारण है कि यह पार्टी सच्चे मायने में हमारे हितों का प्रतिनिधित्व कर सकती है और उनकी सेवा कर सकती है। हम निम्न प्रमुख माँगों के साथ आने वाले लोकसभा चुनावों में मज़दूर वर्गीय हस्तक्षेप कर रहे हैं:
1. ठेका प्रथा हर प्रकार के नियमित कार्य से पूरी तरह समाप्त की जाये।
2. ‘भगत सिंह राष्ट्रीय रोज़गार गारण्टी कानून‘पारित किया जाय,जिसके तहत सबको साल भर का पक्का रोज़गार या फिर रु. 10,000 बेरोज़गारी भत्ता देना सरकार की जिम्मेदारी हो।
3. राष्ट्रीय न्यूनतम मज़दूरी कम-से-कम रु. 20,000 की जाये।
4. तकनीक के विकास और मज़दूरों की औसत उत्पादकता में बढ़ोत्तरी को देखते हुए काम के घण्टे 6 किये जायें।
5. ऋणग्रस्त और ऋण ग़बन करने वाली सभी कम्पनियों का राष्ट्रीकरण किया जाये।
6. सभी बैंकों का राष्ट्रीकरण किया जाये और एक केन्द्रीय बैंक की स्थापना की जाये।
7. सभी अप्रत्यक्ष कर समाप्त किये जायें और सम्पत्ति पर प्रगतिशील टैक्स व्यवस्था लागू की जाये।
8. ज़मीन का राष्ट्रीकरण किया जाये और सभी बड़े निजी फार्मों पर सामूहिक व सहकारी फार्म बनाकर खेतिहर मज़दूरों और ग़रीब किसानों को सौंपे जायें।
9. राफे़ल घोटाले,फसल बीमा घोटाले,नोटबन्दी घोटाले समेत मोदी सरकार के सभी घोटालों की तत्काल उच्चस्तरीय न्यायिक जाँच करायी जाये।
10. प्राथमिक से लेकर उच्चतर शिक्षा के स्तर तक सभी को निशुल्क एवं समान शिक्षा सरकार की जिम्मेदारी हो।
11. सार्विक स्वास्थ्य देखरेख यानी सभी को समान एवं निशुल्क दवा-इलाज सरकार की जिम्मेदारी हो।
12. सभी मेहनतकशों के लिए राजकीय सामाजिक सुरक्षा बीमा की व्यवस्था हो,जिसके लिए पूँजीपतियों पर विशेष कर लगाया जाये।
13. आँगनवाड़ी व आशा कर्मियों समेत सभी स्कीम वर्कर्स को तत्काल स्थायी किया जाये।
14. सभी घरेलू कामगारों की रोज़गार,पंजीकरण व सामाजिक सुरक्षा हेतु राष्ट्रीय कानून व विशेष एक्सचेंज का गठन किया जाये।
15. समस्त मेहनतकश आबादी के लिए सरकारी आवास की व्यवस्था हो और इसके लिए निजी बिल्डरों, धनिकों आदि के लाखों खाली पड़े मकानों और अपार्टमेण्टों को ज़ब्त किया जाये।
इसके अलावा, मज़दूरों, किसानों व अन्य मेहनतकश आबादी की समस्त आवश्यक माँगों को RWPI के चार्टर में शामिल किया गया है, जिसे आप www.rwpi.org पर या हमारे फ़ेसबुक पेज पर देख सकते हैं या RWPI के कार्यालय से प्राप्त कर सकते हैं।
साथियो! अब आपका स्वतंत्र पक्ष मौजूद है। अब किसी पूँजीवादी चुनावबाज़ पार्टी को वोट देने और उसका पिछलग्गू बनने की कोई आवश्यकता नहीं है। ज़रा सोचें! यदि आपका अपना मज़दूर पक्षीय उम्मीदवार सांसद हो,तो आपकी माँगों को पूरा करने का संघर्ष कितने शानदार तरीके से आगे बढ़ सकता है। श्रम क़ानूनों को लागू करवाने से लेकर सांसद निधि और अन्य विकास निधियों को पारदर्शी तरीके से मज़दूर इलाकों में सभी सुविधाओं की व्यवस्था करने तक,तमाम कार्यों को अंजाम देना सम्भव होगा। पुलिस द्वारा मज़दूरों और मेहनतकशों के उत्पीड़न पर लगाम कसी जा सकेगी। सभी सरकारी योजनाओं का लाभ आम मेहनतकश जनता तक सही मायने में पहुँचाया जा सकेगा। मज़दूरों-मेहनतकशों के संगठित होने की राह की बाधाओं से पुरज़ोर तरीके से लड़ा जा सकेगा। केवल इतने से ही मज़दूर सत्ता और समाजवादी व्यवस्था नहीं बन सकती, लेकिन उसका संघर्ष निश्चित तौर पर आगे जायेगा। इसलिए हम सभी मज़दूर और मेहनतकश बहनों और भाइयों से,निम्न मध्यवर्ग के साथियों से और सभी प्रगतिशील और इंसाफ़पसन्द नागरिकों से अपील करते हैं कि भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी को वोट दें,उसके उम्मीदवार को विजयी बनायें! यही सच्चे मायने में आपकी जीत होगी। जहाँ कहीं RWPI का उम्मीदवार न हो,वहाँ नोटा का बटन दबायें। यही पूँजीवादी चुनावबाज़ दलों को आईना दिखाने का सही तरीका होगा।
मज़दूर पार्टी को वोट दो! पूँजीवाद को चोट दो!
अन्धकार का युग बीतेगा, जो लड़ेगा वो जीतेगा!
सम्पर्क:
फ़ोन: (दिल्ली) 9599458044, 9873358124, 9289498250;
(हरियाणा) 8685030984, 9812764062, 9991908690;
(उत्तर प्रदेश) 8115491369, 9971196111;
(पंजाब) 9888025102; (महाराष्ट्र) 9892808704, 9156323976;
(बिहार) 9939815231, 8873079266; (उत्तराखण्ड) 9971158783;
(केरल) 8078855342; (आन्ध्र प्रदेश व तेलंगाना) 9971196111
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