अम्बेडकरनगर के अराजी देवारा गाँव में मई दिवस की पूर्व संध्या पर सभा का आयोजन
#RWPI और बिगुल मज़दूर दस्ता की ओर से अम्बेडकरनगर के अराजी देवारा (हंसू का पुरवा) गाँव में मई दिवस की पूर्व संध्या पर सभा का आयोजन किया गया। सभा में विभिन्न मुद्दों पर बातचीत की गयी तथा नुक्कड़ नाटक ‘मशीन’ का मंचन किया गया। प्रसेन ने मई दिवस के इतिहास पर बातचीत रखते हुए कहा कि 1886 में अमेरिका के शिकागो शहर में मज़दूरों ने आठ घंटे काम, आठ घंटे आराम, आठ घंटे मनोरंजन की माँग को लेकर आन्दोलन की शुरुआत की। उनके आन्दोलन को कुचलने के लिए पूँजीपतियों ने हे मार्केट में मज़दूरों की सभा के दौरान बम फेंकवा कर मज़दूर नेताओं फंसा दिया। चार मज़दूर नेताओं पार्सन्स, स्पाइस, फिशर और एंजेल्स को फाँसी की सज़ा दी गयी। लेकिन उन क्रान्तिकारियों के संघर्षों की ज्वाला ने पूरे विश्व को अपने चपेट में ले लिया और पूरी दुनिया के पूँजीपतियों को आठ घंटे काम के अधिकार को कानूनी मान्यता देनी पड़ी। 1887 में फ़्रेडरिक एंगेल्स के प्रस्ताव पर 1 मई को अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस की मान्यता दी गयी। आज जब विश्व पूँजीवादी व्यवस्था भयंकर आर्थिक मंदी की शिकार है तो मज़दूर वर्ग ने अपनी कुर्बानियों से जो कुछ भी हक़-अधिकार लड़कर हासिल किये थे, वो एक-एक करके छीने जा रहे हैं। फ़ासीवाद का दैत्य अपना मुँह फैलाए खड़ा है। ऐसे में अपने क्रान्तिकारी इतिहास से सबक लेते हुए मज़दूर वर्ग को आज इस पूँजीवादी लूट के ढाँचे को उखाड़ कर मेहनतकश का राज कायम करने के लिए फैसलाकुन संघर्ष की ओर बढ़ना होगा। बातचीत रखते हुए अजय ने कहा कि मई दिवस के शहीदों ने अपने समय में जिन अधिकारों को हासिल करने के लिए कुर्बानी दी थी, वे आज भी ग्रामीण मज़दूरों की बहुत बड़ी आबादी के लिए सपना ही हैं। 12-12 घंटे मेहनत करने के बाद भी 150-200 रुपये से ज़्यादा मज़दूरी नहीं मिलती। आज इस लूट के खिलाफ़ संगठित प्रतिरोध खड़ा करना होगा। बिगुल मज़दूर दस्ता की ओर से ग्रामीण मज़दूर यूनियन के निर्माण की पहल इसी दिशा में एक शुरुआती क़दम है। मित्रसेन ने कहा कि पूँजीवादी व्यवस्था को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए ज़रूरी है कि इस व्यवस्था की कमज़ोरियों-खामियों, पूँजीवाद के विनाश की अपरिहार्यता, क्रान्ति के विज्ञान आदि को समझा जाये। मित्रसेन ने प्रस्ताव रखा कि गाँव में मज़दूरों-गरीब किसानों के संसाधनों के दम पर एक पुस्तकालय तथा ‘शिक्षा सहायता मण्डल’ की स्थापना की जाये, जिस पर उपस्थित ग्रामवासियों ने अपनी सहमति दी। मित्रसेन ने अराजी देवारा गाँव में पुल-निर्माण के आन्दोलन के अगले चरण पर बातचीत करते हुए कहा कि आचार संहिता का हवाला देकर सर्वे, बजट आदि औपचारिकताओं के बाद ही पुल निर्माण का काम रोका गया है। ऐसे में चुनाव बीतते ही अगर पुल निर्माण का काम आगे नहीं बढ़ाया गया तो आन्दोलन को और व्यापक बनाते हुए और अधिक जुझारू संघर्ष की शुरुआत की जायेगी। इतना ही नहीं, गाँव की भयंकर बदहाली में जीने वाली आबादी को न तो वृद्धा पेंशन, विधवा पेंशन जैसी सुविधाएँ मिल पाती हैं और न ही सरकारी आवास के हवा-हवाई दावे ही कभी इन इलाकों तक पहुँच पाते हैं। आज भी गाँव की एक बड़ी आबादी घास-फूस के घरों में रहती है। इन मुद्दों पर व्यापक संघर्ष के लिए #RWPI के वालण्टियर नागरिकों को संगठित करने की शुरुआत करेंगे। नीशू ने कहा कि इस व्यवस्था में मज़दूर वर्ग से आने वाली स्त्रियाँ पूँजीवाद और पितृसत्ता की दोहरी मार झेल रही हैं। मेहनत-मज़दूरी करने वाली स्त्रियों को हाडतोड़ मेहनत करने के बाद भी पुरुषों से बहुत कम वेतन मिलता है। ऐसे में स्त्री-पुरुष के एक समान वेतन के लिए जुझारू संघर्ष में हर इंसाफ़पसंद नागरिक को शामिल होना होगा।